Allahabad high court: हाईकोर्ट ने हत्या मामले में 71 वर्षीय दोषी को बरी किया
Allahabad high court: प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हत्या के एक मामले में 71 वर्षीय व्यक्ति को बरी कर दिया। जिसे तीन अन्य लोगों के साथ 1981 के एक हत्या मामले में दोषी ठहराया गया था। दोषी मोफीद, जिसे अब बरी कर दिया गया है, 1985 से जमानत पर था। जबकि तीन अन्य दोषियों खलील, जहीर और जैनुद्दीन की सजा के खिलाफ अपील के लम्बित रहने के दौरान मृत्यु हो गई थी। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ और न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की खंडपीठ ने कहा कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा। हत्या का यह मामला गाजीपुर जिले के थाना जमानियां का था।
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हाईकोर्ट ने दोषी मोफीद को बरी कर निर्देश दिया कि गाजीपुर के अपर सत्र न्यायाधीश का आक्षेपित निर्णय और आदेश को रद्द किया जाता है। जीवित अपीलकर्ता मोफीद को धारा 302/34 आईपीसी के तहत आरोप से बरी किया जाता है। उसे आत्मसमर्पण करने की आवश्यकता नहीं है। जमानत बांड रद्द किए जाते हैं और जमानतदारों को मुक्त किया जाता है।
मोफीद, खलील, जहीर और जैनुद्दीन पर 1981 में शहाबुद्दीन नामक व्यक्ति की हत्या का आरोप था। सभी आरोपित करीबी रिश्तेदार थे और कथित तौर पर उन्होंने देशी पिस्तौल और अन्य हथियारों से पीड़ित की हत्या कर दी थी।
जांच में पता चला कि हत्या से पहले खलील ने मुम्बई में शहाबुद्दीन से 56,000 रुपये की रकम चुराई थी और वहां पुलिस ने उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। जमानत पर रिहा होने के बाद खलील गांव वापस आ गया था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, खलील और अन्य ने शहाबुद्दीन की हत्या तब की जब चोरी के मामले में समझौता करने के लिए एक बैठक आयोजित की गई थी। 1983 में दोषी ठहराए जाने के बाद चारों अपीलकर्ताओं ने हाईकोर्ट में संयुक्त अपील दायर की। इस पर आखिरकार सुनवाई हुई और इस साल फरवरी में फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।
जीवित अपीलकर्ता मोफीद का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने तर्क दिया कि उसे केवल पीड़ित पर लाठी से हमला करने की भूमिका सौंपी गई थी। वकील ने तर्क दिया कि उसे झूठा फंसाया गया क्योंकि वह आरोपी का रिश्तेदार था।
कोर्ट ने कहा कि आश्चर्य की बात यह है कि न तो जांच अधिकारी और न ही मृतक के शव का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर ने कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया है कि शव पर मिट्टी लगाई गई थी। इससे अभियोजन पक्ष द्वारा बताए गए घटनास्थल पर गम्भीर संदेह पैदा होता है। यह भी पाया गया कि एक प्रत्यक्षदर्शी ने विरोधाभासी बयान दिया था कि जिस स्थान पर पीड़ित पर हमला किया गया था, वह ईंटों से ढका हुआ था। न्यायालय ने कहा कि इस बिंदु पर प्रत्यक्षदर्शियों के बयान और जांच अधिकारी के साक्ष्य में असंगति थी।
न्यायालय ने यह भी पाया कि मामले में पीड़ित के खिलाफ इस्तेमाल किये गये हथियार बरामद नहीं किये गये। कोर्ट ने कहा कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दर्शाई गई आग्नेयास्त्र से लगी चोटें एक ही गोली से नहीं लगी हैं। यहां तक कि छर्रे बिखरने के कारण भी नहीं है। घावों की बारीकी से जांच करने पर और अदालत की राय में आग्नेयास्त्र से लगी चोटों के सम्बंध में मिले साक्ष्य और चिकित्सा साक्ष्य के बीच स्पष्ट असंगति थी।
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