यह याचिका वरिष्ठ अधिवक्ता मैथ्यूज जे. नेदुम्पारा ने स्वयं दाख़िल की है, जिसमें वे स्वयं याचिकाकर्ता भी हैं। याचिका में मुख्य न्यायाधीश, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम, केंद्र सरकार और कई राजनीतिक दलों को पक्षकार बनाया गया है।
याचिका में मुख्य दलीलें:
• 2015 में सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने 99वें संविधान संशोधन और NJAC क़ानून को असंवैधानिक क़रार देकर रद्द कर दिया था। याचिका में इसे “जनता की इच्छा को चार जजों की राय से प्रतिस्थापित करने वाला गंभीर अन्याय” बताया गया है।
• कॉलेजियम व्यवस्था को “भाई-भतीजावाद और पक्षपात का पर्याय” क़रार देते हुए कहा गया है कि इसके आने के बाद उच्च न्यायपालिका में नियुक्तियाँ पूरी तरह अपारदर्शी हो गई हैं।
• संसद ने जनता की इच्छा का प्रतिनिधित्व करते हुए NJAC क़ानून पारित किया था, जिसमें सरकार और न्यायपालिका को बराबर का अधिकार था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे ख़ारिज कर संसद को “निम्न न्यायालय” जैसा बना दिया।
याचिका में 2015 के फैसले को “शुरू से अमान्य (void ab initio)” घोषित करने और NJAC को फिर से लागू करने की मांग की गई है।
मुख्य न्यायाधीश सूर्य कांत ने मौखिक उल्लेख के दौरान कहा कि इस याचिका पर उचित पीठ विचार करेगी।
पृष्ठभूमि
2014 में संसद ने सर्वसम्मति से 99वाँ संविधान संशोधन और NJAC क़ानून पारित किया था। इसमें छह सदस्यों का आयोग बनाया गया था: CJI (अध्यक्ष), दो वरिष्ठतम जज, क़ानून मंत्री और दो प्रतिष्ठित व्यक्ति (जिन्हें प्रधानमंत्री, CJI और लोकसभा में विपक्ष के नेता मिलकर चुनते)।
अक्टूबर 2015 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की पीठ ने 4:1 के बहुमत से इसे असंवैधानिक ठहराते हुए रद्द कर दिया और कॉलेजियम व्यवस्था (1993 से चली आ रही, जिसमें जज ख़ुद जज चुनते हैं) को फिर से बहाल कर दिया।
तब से यह मुद्दा लगातार विवाद में रहा है। कई सरकारें और कानूनी विशेषज्ञ कॉलेजियम व्यवस्था में पारदर्शिता की कमी की आलोचना करते आ रही हैं, जबकि अधिकांश जज और बार इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा का ज़रूरी उपाय मानते हैं।
आज CJI का यह बयान कि वे याचिका पर विचार करेंगे, इस लंबे विवाद में एक नया मोड़ माना जा रहा है। अब देखना यह है कि कोर्ट इस याचिका को स्वीकार करता है या नहीं और यदि करता है तो क्या 2015 का ऐतिहासिक फैसला पलटा जा सकता है।

