Noida Authority Allotment Process: नोएडा (नवीन ओखला औद्योगिक विकास प्राधिकरण) की स्थापना 1976 में एक सुनियोजित औद्योगिक नगरी के रूप में हुई थी, इसका उद्देश्य राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के बढ़ते औद्योगिक बोझ को कम करना और क्षेत्र में औद्योगिक गतिविधियों को बढ़ावा देना था। नोएडा को यूपी का शो विंडो भी कहा जाता है। तब से लेकर अब तक नोएडा ने एक लंबा सफर तय किया है और उत्तर प्रदेश के प्रमुख औद्योगिक और आर्थिक केंद्रों में से एक बन गया है। इस दौरान, नोएडा प्राधिकरण ने करीब 2580 औद्योगिक भूखंडों का आवंटन किया है, इस संख्या को कैग की रिपोर्ट में शामिल किया है। औद्योगिक गतिविधियों ने विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
औद्योगिक भूखंडों के आवंटन की प्रक्रिया
नोएडा प्राधिकरण द्वारा अब तक कुल कितने औद्योगिक भूखंडों का आवंटन किया गया है, इसकी इसकी संख्या 2580 बताई जा रही है। हालांकि, समय-समय पर प्राधिकरण द्वारा विभिन्न औद्योगिक भूखंड योजनाएं लॉन्च की जाती रही हैं, जिनमें सैकड़ों से लेकर हजारों भूखंडों का आवंटन किया गया है। इन योजनाओं में छोटे, मध्यम और बड़े आकार के भूखंड शामिल होते हैं, जो अलग-अलग उद्योगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए होते हैं।
हाल के वर्षों में, नोएडा प्राधिकरण ने आवंटन प्रक्रिया में पारदर्शिता और निष्पक्षता लाने के लिए कई बदलाव किए हैं। पहले आवंटन ड्रॉ के माध्यम से किए जाते थे जिससे हर एक व्यक्ति अपनी किस्मत पर निर्भर रहता था लेकिन अब अब औद्योगिक भूखंडों का आवंटन मुख्य रूप से दो तरीकों से होता है।
- ई-नीलामी: 8000 वर्ग मीटर तक के छोटे और मध्यम आकार के भूखंडों का आवंटन ई-नीलामी के माध्यम से किया जाता है। यह प्रक्रिया पूरी तरह से ऑनलाइन होती है, जिससे सभी इच्छुक आवेदकों को समान अवसर मिलता है। बोली लगाने वालों को तकनीकी और वित्तीय मूल्यांकन में निर्धारित अंक प्राप्त करने होते हैं।
- साक्षात्कार: 8000 वर्ग मीटर से बड़े भूखंडों के लिए साक्षात्कार प्रक्रिया का पालन किया जाता है। इसमें आवेदकों का विस्तृत मूल्यांकन किया जाता है, जिसमें उनके तकनीकी और वित्तीय प्रस्तावों के साथ-साथ उनके अनुभव और परियोजना की व्यवहार्यता पर भी विचार किया जाता है।
भूखंड आवंटन के नियम और शर्तें
नोएडा प्राधिकरण द्वारा भूखंडों का आवंटन कुछ विशिष्ट नियम और शर्तों के अधीन किया जाता है, जिनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भूखंडों का उपयोग केवल औद्योगिक उद्देश्यों के लिए हो और शहर का नियोजित विकास हो सके। इन नियमों में शामिल हैं:
- पात्रता मानदंड: आवेदक को एक निश्चित तकनीकी और वित्तीय योग्यता मानदंडों को पूरा करना होता है। प्राधिकरण यह सुनिश्चित करता है कि भूखंडों का आवंटन उन उद्यमियों को ही हो, जो वास्तव में उद्योग स्थापित करना चाहते हैं, न कि प्रॉपर्टी डीलरों को।
- लीज़ डीड: भूखंडों का आवंटन लीज़ होल्ड पर किया जाता है, जिसमें लीज़ की अवधि आमतौर पर 90 साल होती है। आवंटन के बाद, आवेदक को एक निश्चित समय सीमा के भीतर लीज़ डीड (पट्टा विलेख) का निष्पादन करना होता है।
- निर्माण की समय सीमा: भूखंड आवंटित होने के बाद, आवंटी को एक निश्चित समय सीमा के भीतर निर्माण कार्य शुरू करना और पूरा करना होता है। यदि आवंटी इस शर्त को पूरा नहीं कर पाता है, तो प्राधिकरण आवंटन को रद्द कर सकता है।
- भुगतान की शर्तें: आवंटी को भूखंड की कीमत का भुगतान किश्तों में करना होता है। यदि आवंटी समय पर भुगतान नहीं करता है, तो पंजीकरण राशि और आवंटन जब्त किया जा सकता है।
- उद्योग का प्रकार: आवंटन के समय, आवंटी को उस उद्योग का प्रकार बताना होता है जिसे वह स्थापित करना चाहता है। प्राधिकरण यह सुनिश्चित करता है कि भूखंड का उपयोग केवल उसी उद्देश्य के लिए हो।
- रोजगार सृजन: औद्योगिक भूखंडों के आवंटन में रोजगार सृजन की क्षमता एक महत्वपूर्ण कारक होती है। प्राधिकरण उन परियोजनाओं को प्राथमिकता देता है जो बड़ी संख्या में रोजगार के अवसर पैदा कर सकती हैं।
तीनों प्राधिकरणों के लिए समान नीति
हाल ही में, नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेसवे प्राधिकरणों के लिए एक समान औद्योगिक भूखंड आवंटन नीति लागू की गई है। इस नीति का उद्देश्य निवेशकों के लिए प्रक्रिया को सरल और पारदर्शी बनाना है। एक समान नीति होने से निवेशकों को नियमों और प्रक्रियाओं को समझने में आसानी होगी, जिससे गौतम बुद्ध नगर जिले में निवेश को बढ़ावा मिलेगा।
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