यह बयान फॉक्स न्यूज के एक इंटरव्यू में आया, जहां बेसेन्ट ने ट्रंप की नई एच-1बी रणनीति पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा, “हम विदेशी विशेषज्ञों को लाना चाहते हैं ताकि वे अमेरिकी वर्कर्स को स्किल्स सिखाएं। फिर, अमेरिकी वर्कर्स पूरी तरह से काम संभाल लेंगे और विदेशी वापस चले जाएंगे।” यह नीति ट्रंप के पहले कार्यकाल की सख्ती से अलग है, जब एच-1बी वीजा पर पाबंदियां लगाई गई थीं। अब ट्रंप का कहना है कि अमेरिका को कुशल विदेशी टैलेंट की जरूरत है, लेकिन स्थायी रूप से नहीं।
पृष्ठभूमि में, एच-1बी वीजा अमेरिकी कंपनियों को विदेशी आईटी प्रोफेशनल्स और इंजीनियर्स को हायर करने की अनुमति देता है। भारत और चीन जैसे देशों से ज्यादातर आवेदक आते हैं।
ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में वीजा फीस को 1,00,000 डॉलर तक बढ़ा दिया है, जिससे कंपनियां विदेशी हायरिंग में हिचकिचा रही हैं। अंतरराष्ट्रीय छात्रों के लिए स्पॉन्सरशिप भी कम हो गई है। ट्रंप ने एक हालिया इंटरव्यू में कहा, “अमेरिका में भी बहुत टैलेंटेड वर्कर्स हैं, लेकिन हमें विदेशी एक्सपर्टिस से सीखना चाहिए।”
यह बदलाव ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ पॉलिसी का हिस्सा माना जा रहा है, जो अमेरिकी जॉब्स को प्राथमिकता देती है। एक्स (पूर्व ट्विटर) पर इस मुद्दे पर बहस छिड़ गई है। एएनआई डिजिटल ने ट्वीट किया, “‘ट्रेन यूएस वर्कर्स, दैन गो होम’: यूएस ट्रेजरी सेक्रेटरी ने ट्रंप के एच-1बी रिफॉर्म पर नरम रुख स्पष्ट किया।” कई यूजर्स ने इसे भारत जैसे देशों के लिए झटका बताया, जबकि कुछ ने इसे व्यावहारिक कदम कहा।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह नीति अमेरिकी टेक इंडस्ट्री को प्रभावित करेगी, जहां 70% से ज्यादा एच-1बी वीजा आईटी सेक्टर के लिए होते हैं। बिजनेस टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन का यह प्लान विदेशी वर्कर्स को ‘उपयोग’ करने तक सीमित रखेगा, न कि उन्हें स्थायी रूप से बसने की अनुमति। फिलहाल, व्हाइट हाउस से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन बेसेन्ट के शब्दों को ट्रंप टीम की ओर से नीति का संकेत माना जा रहा है।
यह विकास ट्रंप के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में आया है, जब इमिग्रेशन पॉलिसी पर बहस तेज हो रही है। भारतीय आईटी कंपनियां जैसे टीसीएस और इंफोसिस पर इसका असर पड़ सकता है, जो एच-1बी पर निर्भर हैं। अधिक अपडेट्स के लिए बने रहें।

