AAP की सक्रियता कांग्रेस के लिए चुनौती, सबकी निगाह टिकी
New Delhi | मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में आम आदमी पार्टी (आप) की सक्रियता कांग्रेस के लिए किस प्रकार की चुनौती पैदा कर सकती है, इस पर सबकी निगाह टिकी हुई है। जानकारों की मानें तो आम आदमी पार्टी की सक्रियता से कांग्रेस को बहुत ज्यादा नुकसान की संभावना नहीं है। लेकिन, यदि भाजपा और कांग्रेस में टिकट नहीं मिल पाने के कारण आप को कुछ सीटों पर दमदार उम्मीदवार मिल जाते हैं तो फिर मुकाबला रोचक हो सकता है। इसलिए दोनों दलों खासकर कांग्रेस को अपनी रणनीति बनाते समय इस कारक को ध्यान में रखना चाहिए।ज्यादातर चुनावों में यह देखा गया है कि आप ने कांग्रेस के मतों में ही सेंध लगाई है।
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गोवा और गुजरात में भी ऐसा ही हुआ है। हालांकि, यहां यह बात भी गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में पिछले साल हुए चुनावों में भी आप ने खूब ताकत लगाई थी, लेकिन इन राज्यों में उसे जरा भी सफलता नहीं मिली है।एक तर्क यह भी है कि जिन राज्यों में कांग्रेस या अन्य क्षेत्रीय दल की स्थिति मजबूत है और वह सत्ता में आने की स्थिति में है, वहां आप को कोई खास लाभ नहीं मिलेगा। लेकिन, जहां भाजपा मजबूत है और कांग्रेस की स्थिति कमजोर है और कोई तीसरा विकल्प नहीं है, वहां आप कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब हो जाती है।
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पांच वर्षों में स्थितियां बदल गईं
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इन पांच वर्षों में स्थितियां काफी बदली हैं। आप ने दिल्ली में दोबारा जीत हासिल की। पंजाब में भी शानदार बहुमत से सरकार बनाई। पिछले साल गोवा और गुजरात में भी ठीकठाक प्रदर्शन किया। गुजरात में करीब 13 फीसदी मत लेकर 5 सीटें जीती। गोवा में 7 फीसदी मत लेकर दो सीटें जीती। इसी के आधार पर उसे राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा मिला है। इसलिए आगामी विधानसभा चुनावों में उसकी सक्रियता को इन तीनों राज्यों में पूरी तरह से अनदेखा करना भी एक चूक होगी।
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2018 में असफल साबित हुई थी आप
2018 में हुए विधानसभा चुनावों में आप ने इन तीनों राज्यों में किस्मत आजमाई थी। लेकिन, वह तीनों राज्यों में असफल साबित हुई। उसने छत्तीसगढ़ में 90 में से 85 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन महज 0.9 फीसदी ही वोट मिल पाए। मध्य प्रदेश में 230 से 208 सीटों पर लड़कर महज 0.7 फीसदी मत मिले। जबकि राजस्थान में 199 में से 142 सीटों पर लड़कर उसे महज 0.4 फीसदी मत मिले। इससे कई गुना ज्यादा मत नोटा को मिले थे। लेकिन, यह बात पांच साल पुरानी है।