संक्षिप्त जीवन परिचय
• मूल नाम : मनिकर्णिका (प्यार से मनु)
• जन्म : 19 नवंबर 1828, वाराणसी
• पिता : मोरोपंत तांबे (मराठा सरदार, पेशवा बाजीराव द्वितीय के दरबार में कार्यरत)
• माँ : भागीरथी बाई
• विवाह : 1842 में झाँसी के राजा गंगाधर राव नेवालकर से
• पुत्र : दामोदर राव (जन्म के कुछ माह बाद स्वर्गवासी), इसके बाद गोद लिया गया आनंद राव (नाम बदलकर दामोदर राव रखा गया)
• राज्यारोहण : 1853 में पति की मृत्यु के बाद रानी रीजेंट के रूप में
1857 का संग्राम और अमर बलिदान
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने “डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स” (हड़प नीति) के तहत झाँसी को अपने अधीन करने की घोषणा कर दी। रानी ने यह कहते हुए चुनौती स्वीकार की –
“मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी!”
मार्च 1858 में सर ह्यूग रोज़ के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने झाँसी पर आक्रमण किया। रानी लक्ष्मीबाई ने तात्या टोपे, नाना साहब और कुंवर सिंह जैसे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर अद्भुत युद्ध कौशल दिखाया। किले की रक्षा करते-करते जब स्थिति असहनीय हो गई, तो रानी ने अपने गोद लिए पुत्र दामोदर राव को पीठ से बाँधकर घोड़े पर सवार होकर कालपी की ओर प्रस्थान किया।
18 जून 1858 को ग्वालियर के निकट कोटा की सराय में अंग्रेज़ों से अंतिम युद्ध हुआ। हाथ में नंगी तलवार, मुँह में लगाम दबाए, रानी वीरगति को प्राप्त हुईं। ब्रिटिश सेनापति ह्यूग रोज़ ने स्वयं स्वीकार किया था –
“She was the bravest and the best military leader of the rebels.”
आज के कार्यक्रम
• झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई पार्क और किले पर विशेष श्रद्धांजलि कार्यक्रम
• राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्म्बू और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोशल मीडिया पर श्रद्धासुमन अर्पित किए
• देश भर के स्कूल-कॉलेजों में निबंध, कविता पाठ और नाटक आयोजित
• महिला शक्ति सम्मेलनों में रानी को “भारत की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी” के रूप में याद किया जा रहा है
सुभद्रा कुमारी चौहान की अमर पंक्तियाँ आज भी हर भारतीय के रोंगटे खड़े कर देती हैं :
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
वीरता, देशभक्ति और नारी गरिमा की जीती-जागती मिसाल –
महारानी लक्ष्मीबाई अमर रहें! जय हिंद! जय माँ भारती

