मास्टर प्रभाकर का जन्म एक ऐसे परिवार में हुआ जहां उनके पिता का फोटो स्टूडियो और प्रिंटिंग प्रेस का बिजनेस था। वे छह भाई-बहनों में सबसे बड़े थे। मात्र 6 साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला स्टेज ड्रामा किया, और 9 साल की उम्र में फिल्मों में कदम रखा। 1 उनके पिता ने उन्हें मद्रास (अब चेन्नई) ले जाकर एक प्रोड्यूसर से मिलवाया, जो एक चाइल्ड आर्टिस्ट की तलाश में थे। साल 1966 में रिलीज हुई उनकी डेब्यू फिल्म ‘साधु मिरांडल’ सुपरहिट साबित हुई, और इसके बाद फिल्मों की लाइन लग गई।
प्रभाकर ने ‘मरक्का पलाड्डा’, ‘बामा विजयम’, ‘एंगलुकुम कलाम वरुम’, ‘मूनरेझुथु’, ‘तमराई नेनजाम’ और ‘वा राजा वा’ जैसी कई हिट फिल्मों में काम किया। 4 उन्होंने न सिर्फ तमिल और तेलुगू फिल्मों में काम किया, बल्कि कन्नड़ और हिंदी सिनेमा में भी बतौर टेक्नीशियन योगदान दिया। 60 से ज्यादा टीवी शोज में भी वे नजर आए। लेकिन समय के साथ फिल्मों में मौके कम होने लगे, और आखिरकार 2005 में रिलीज हुई तेलुगू फिल्म ‘देवी अभयम’ उनकी आखिरी फिल्म साबित हुई।
फिल्म इंडस्ट्री से दूरी बनाने के बाद प्रभाकर ने चेन्नई में एक कलर जेरॉक्स की दुकान खोली, जो कथित तौर पर शहर की पहली ऐसी दुकान थी। आज 68 साल की उम्र में वे इसी दुकान से अपना गुजारा चला रहे हैं। उनकी बहन सुमित भी चाइल्ड आर्टिस्ट रहीं, लेकिन प्रभाकर परिवार के पहले सदस्य थे जिन्होंने फिल्मों में एंट्री की। प्रभाकर का एक पुराना इंटरव्यू स्नैपशॉट” “LARGE”
प्रभाकर की कहानी कई पुराने चाइल्ड आर्टिस्ट्स की तरह है, जहां शुरुआती सफलता के बाद जीवन की चुनौतियां सामने आती हैं। 2 उन्होंने 2008 में एक इंटरव्यू में अपने सफर के बारे में खुलासा किया था। आज वे फिल्मों से दूर हैं, लेकिन उनकी यादें सिनेमा प्रेमियों के दिलों में जिंदा हैं।

