एक सांस्कृतिक परंपरा जो आने वाली पीढ़ियों को चुपचाप बर्बाद कर रही

Cousin Marriage News: दुनिया भर में कई संस्कृतियों में चचेरे भाई-बहन (कजिन) के बीच शादी को सामान्य माना जाता रहा है। प्राचीन मिस्र के फिरौन से लेकर मध्यकालीन यूरोप के शाही खानदानों, दक्षिण भारत की पारंपरिक व्यवस्था और आज के पाकिस्तान तक — यह प्रथा सदियों से चली आ रही है। लेकिन आधुनिक जेनेटिक्स और मेडिकल साइंस इसे मानव इतिहास की सबसे बड़ी आनुवंशिक जोखिमों में से एक मानती है।

इतिहास के पन्नों से सबक
• प्राचीन मिस्र: तूतनखामुन (King Tutankhamun) के माता-पिता भाई-बहन थे। उनके डीएनए टेस्ट में गंभीर आनुवंशिक विकृतियां मिलीं — क्लब फुट, हड्डियों की कमजोरी और संभवतः मार्फन सिंड्रोम जैसी बीमारियां। उनका शव बताता है कि वे चलने-फिरने में भी असमर्थ थे।

• हैब्सबर्ग राजवंश (यूरोप): 200 साल तक भाई-बहन और चचेरे भाई-बहनों की शादियां करने वाले इस स्पेनिश-पुर्तगाली राजपरिवार का अंत “हैब्सबर्ग जॉ” (बड़ा जबड़ा) और लगातार गर्भपात, मंदबुद्धि और शारीरिक विकलांगता के कारण हुआ। आखिरी वारिस चार्ल्स द्वितीय इतने कमजोर थे कि बोल भी नहीं पाते थे।

• दक्षिण भारत: तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और केरल में “मामा-भांजी” या “मौसी की बेटी” से शादी आज भी सामाजिक स्वीकृति रखती है। कई समुदायों में इसे “संपत्ति घर में रखने” और रिश्ते मजबूत करने का तरीका माना जाता है।

• पाकिस्तान: दुनिया में सबसे ज्यादा चचेरे भाई-बहनों की शादियां (60-70%) यहीं होती हैं। परिणामस्वरूप बच्चों में जन्मजात बीमारियों की दर बेहद चिंताजनक है।

विज्ञान क्या कहता है?
जब दो करीबी रिश्तेदार शादी करते हैं तो उनके डीएनए में एक ही हानिकारक रिसेसिव जीन (recessive genes) होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है।

नतीजा:
• बच्चों में आनुवंशिक बीमारियों का खतरा 2-3 गुना बढ़ जाता है।
• थैलेसीमिया, सिस्टिक फाइब्रोसिस, माइक्रोसेफली (छोटा दिमाग), बहरापन, अंधापन, हृदय रोग, मंदबुद्धि जैसी बीमारियां आम हो जाती हैं।
• पाकिस्तान में हर साल 20,000 से ज्यादा बच्चे थैलेसीमिया के साथ पैदा होते हैं — इनमें से ज्यादातर कजिन मैरिज का परिणाम।
• WHO के अनुसार, कजिन मैरिज से पैदा हुए बच्चों में जन्म के समय मृत्यु दर दोगुनी और गंभीर विकलांगता का खतरा 6-8% तक बढ़ जाता है (सामान्य आबादी में यह 2-3% होता है)।
• ब्रिटेन में पाकिस्तानी मूल के लोग सिर्फ 4% आबादी हैं, लेकिन जेनेटिक डिसऑर्डर के 33-50% मामले इन्हीं से आते हैं।

भारत में स्थिति
भारत में हिंदू मैरिज एक्ट 1955 के तहत पहली चचेरी शादी कानूनी रूप से मान्य है (सपिंडा संबंध न हो तो)। दक्षिण भारत के कई हिंदू समुदायों में तो यह पसंदीदा रिवाज है। उत्तर भारत में मुस्लिम समुदायों में भी यह आम है। लेकिन जागरूकता की कमी के कारण हजारों बच्चे हर साल इन बीमारियों का शिकार हो रहे हैं।

विशेषज्ञों की राय
• AIIMS दिल्ली के जेनेटिक्स विभाग के डॉक्टर बताते हैं, “प्री-मैरिटल जेनेटिक काउंसलिंग और कैरियर स्क्रीनिंग से 90% तक जोखिम को रोका जा सकता है।”
• डॉ. इशवार चंद्र (जेनेटिसिस्ट) कहते हैं, “सांस्कृतिक परंपरा का सम्मान करें, लेकिन अगली पीढ़ी को बीमार बनाने का हक किसी को नहीं है।”

क्या करें?
1. शादी से पहले दोनों पक्षों का जेनेटिक स्क्रीनिंग करवाएं।
2. अगर दोनों कैरियर हैं किसी रिसेसिव जीन के, तो दूसरा विकल्प तलाशें।
3. प्री-नेटल टेस्टिंग (गर्भ में ही जांच) करवाएं।
4. जागरूकता फैलाएं — परंपरा से ऊपर एक स्वस्थ बच्चे का हक है।

चचेरे भाई-बहनों की शादी कोई नया मुद्दा नहीं है, लेकिन आज विज्ञान के पास इसका जवाब है। अब फैसला समाज को करना है — हम परंपरा को चुनेंगे या आने वाली पीढ़ियों को स्वस्थ जीवन?

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