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मुलायम ने कठोर कदम उठाकर ऐसे रोका था सोनिया के पीएम बनने का रास्ता

 

समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने अप्रत्याशित जोड़ी बनी और इस जोड़ी ने कई ऐसे कार्य कियो जो इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए दर्ज हो गए। 1999 में ऐसी राजनीतिक घटनाओं को अंजाम दिया जिसने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदों पर पानी फेर दिया।दरसल तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के 17 अप्रैल, 1999 को लोकसभा में विश्वास मत हारने के बाद सोनिया गांधी ने केंद्र में सरकार बनाने की दावेदारी पेश की थी। गांधी ने तत्कालीन राष्ट्रपति के आर नारायणन से मुलाकात के बाद राष्ट्रपति भवन में पत्रकारों से कहा था कि हमारे पास 272 सांसद हैं और हमें उम्मीद है कि कुछ और का हमें समर्थन मिलेगा।

 

इसके लगभग एक महीने बाद लोकसभा में कांग्रेस के तत्कालीन नेता शरद पवार ने गांधी के विदेशी मूल का मामला उठाया था और कहा था कि कांग्रेस भाजपा का मुकाबला करने को दमदार नही है। मुलायम द्वारा सोनिया गांधी की प्रधानमंत्री पद की उम्मीदों को झटका देने के बमुश्किल एक महीने बाद 15 मई, 1999 को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में कांग्रेस में विद्रोह हुआ था। हालांकि सोनिया गांधी ने स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया था कि वह प्रधानमंत्री पद के लिए दौड़ में हैं, लेकिन उन्हें शीर्ष कार्यकारी पद पर कांग्रेस नेता देखना चाहते थे।

काग्रेस को समर्थन देने से किया था इंकार
1998 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने 182 सीटें जीती थीं, जिनमें से 57 अकेले उत्तर प्रदेश में थीं, जबकि कांग्रेस 141 संसदीय क्षेत्रों में विजयी हुई थी, लेकिन देश के सबसे बड़े राज्य यूपी में एक भी सीट नहीं मिली थी। 1999 में सोनिया गांधी का समर्थन करने से मुलायम का इनकार एक झटके के रूप में सामने आया क्योंकि एक संभावित केंद्र सरकार का देश के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य में कोई प्रतिनिधित्व नहीं होता।

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