Jashn-e-Rekhta is now a “club of the rich: भव्य आयोजन के बीच व्यावसायीकरण पर उठे सवाल, उर्दू की बजाय कमर्शियलिज़्म” का उत्सव

Jashn-e-Rekhta is now a “club of the rich: दुनिया के सबसे बड़े उर्दू भाषा उत्सव जश्न-ए-रेख़्ता का 10वां संस्करण 5 से 7 दिसंबर 2025 तक नई दिल्ली के बांसेरा पार्क में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। तीन दिनों में करीब 1.5 लाख लोग इस उत्सव में शामिल हुए, जहां उर्दू शायरी, संगीत, कव्वाली और साहित्यिक चर्चाओं ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। गुलजार, जावेद अख्तर, शबाना आज़मी, सुखविंदर सिंह, सलीम-सुलैमान जैसे प्रमुख कलाकारों की मौजूदगी और 300 से अधिक कलाकारों के 35 से ज्यादा सत्रों ने उत्सव को यादगार बना दिया।

रेख़्ता फाउंडेशन द्वारा आयोजित इस उत्सव में मेहफिल-ए-खाना, रेख़्ता बाज़ार, ऐवान-ए-ज़ायक़ा जैसे विभिन्न मंच और गतिविधियां शामिल थीं। आयोजकों के अनुसार, यह उर्दू भाषा को मुख्यधारा में लाने और इसके प्रचार-प्रसार का एक बड़ा मंच बन चुका है। पिछले 10 वर्षों में उत्सव ने हजारों से बढ़कर लाखों दर्शकों तक पहुंच बनाई, जो उर्दू के प्रति बढ़ते रुझान को दर्शाता है।

हालांकि, इस बार उत्सव व्यावसायीकरण के आरोपों और बहस के केंद्र में रहा। पहली बार बड़े पैमाने पर टियरड टिकट सिस्टम लागू किया गया, जिसमें सामान्य एंट्री टिकट के अलावा मेहफिल-ए-खाना स्टेज के लिए ब्रॉन्ज़, सिल्वर, गोल्ड और प्लैटिनम जैसी श्रेणियां थीं। टिकटों की कीमतें कुछ सौ रुपये से लेकर हजारों रुपये तक थीं, जिसको लेकर कई उर्दू प्रेमी निराश हो गए। पहले मुफ्त प्रवेश वाले इस उत्सव को अब “अमीरों का क्लब” बनाने का आरोप लगा।

कुछ मीडिया रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है की यरड टिकट और एलीट एक्सेस से उत्सव अपनी मूल भावना खो रहा है। उन्होंने पूछा कि उर्दू को बचाने और फैलाने का मकसद रखने वाला आयोजन अब व्यापारिक हो गया है, तो क्या यह आम लोगों से दूर हो रहा है? लेख में यह भी कहा गया कि कॉन्सर्ट जैसी संस्कृति और अंग्रेजी साइनबोर्ड्स से उत्सव की मूल उर्दू आत्मा प्रभावित हो रही है।

सोशल मीडिया पर भी मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आईं। कुछ लोगों ने टिकट प्रणाली की सराहना की, कहते हुए कि पहले मुफ्त प्रवेश से भीड़ अनियंत्रित हो जाती थी, जबकि अब आयोजन बेहतर ढंग से प्रबंधित हुआ। वहीं, कई यूज़र्स ने कीमतों पर एतराज जताया और इसे “उर्दू की बजाय कमर्शियलिज़्म” का उत्सव बताया। कुछ लोग फ्लाइट रद्द होने के कारण नहीं पहुंच सके और रिफंड की मांग की।

आयोजकों की ओर से इस बहस पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन उत्सव की वेबसाइट और सोशल मीडिया पर इसे “उर्दू प्रेमियों का घर” बताकर प्रचार किया गया। विशेषज्ञों का मानना है कि बड़े पैमाने पर आयोजन के लिए फंडिंग ज़रूरी है, लेकिन सांस्कृतिक उत्सवों में संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण होता है।

कुल मिलाकर, जश्न-ए-रेख़्ता 2025 उर्दू की लोकप्रियता का प्रमाण बना, लेकिन स्केलिंग और आत्मा बचाने की बहस जारी है। अगला संस्करण क्या नई दिशा लेगा, यह देखना दिलचस्प होगा।

यहां से शेयर करें