यह समझौता CADE और एपल के बीच वर्षों चली कानूनी लड़ाई का अंत है। CADE ने एपल की ऐप स्टोर नीतियों को प्रतिस्पर्धा-विरोधी करार दिया था। समझौते के अनुसार, एपल को थर्ड-पार्टी स्टोर्स या बाहरी पेमेंट्स के बारे में यूज़र्स को दिखाए जाने वाले चेतावनी संदेशों को तटस्थ रखना होगा। कंपनी इन-ऐप खरीदारी पर कमीशन वसूल सकती है, लेकिन नई फीस स्ट्रक्चर की डिटेल्स अभी स्पष्ट नहीं हैं।
एपल को इन बदलावों को लागू करने के लिए 105 दिन का समय दिया गया है। अगर कंपनी समझौते का उल्लंघन करती है, तो उसे 15 करोड़ ब्राज़ीलियाई रियाल (लगभग 27 मिलियन डॉलर) तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है।
एपल के एक प्रवक्ता ने कहा, “CADE की नियामक मांगों का पालन करने के लिए हम ब्राज़ील में आईओएस ऐप्स में बदलाव कर रहे हैं। इन बदलावों से यूज़र्स के लिए प्राइवेसी और सिक्योरिटी रिस्क बढ़ सकते हैं, लेकिन हमने कुछ खतरों से बचाव के लिए उपाय किए हैं, खासकर युवा यूज़र्स के लिए। हम आईओएस को ब्राज़ील में सबसे सुरक्षित प्लेटफॉर्म बनाए रखने की कोशिश करेंगे।”
ब्राज़ील अब उन देशों की सूची में शामिल हो गया है जहां एपल को अपनी बंद नीतियां ढीली करनी पड़ी हैं। यूरोपीय संघ (EU) और जापान में पहले से ही थर्ड-पार्टी ऐप स्टोर्स की अनुमति है। अमेरिका में एपिक गेम्स के मुकदमे के बाद कोर्ट ने एपल को डेवलपर्स को बाहरी पेमेंट ऑप्शन्स की ओर निर्देशित करने की छूट दी है।
भारत में क्या होगा?
भारत में एपल का मुकाबला प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) से चल रहा है। 2024 में CCI की जांच इकाई ने पाया कि एपल ने ऐप्स मार्केट में अपनी प्रमुख स्थिति का दुरुपयोग किया है। नवंबर 2025 में एपल ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर CCI की उस शक्ति को चुनौती दी है जिसमें ग्लोबल टर्नओवर के आधार पर जुर्माना लगाया जा सकता है। एपल का कहना है कि इससे उसे 38 अरब डॉलर तक का जुर्माना झेलना पड़ सकता है, जो असंवैधानिक और असमानुपाती है।
CCI का कहना है कि ग्लोबल टर्नओवर आधारित जुर्माना बड़े टेक कंपनियों पर सख्त कार्रवाई के लिए ज़रूरी है। फिलहाल, भारत में CCI की जांच जारी है, लेकिन ब्राज़ील जैसे बदलाव (साइडलोडिंग या थर्ड-पार्टी स्टोर्स) लागू करने का कोई आदेश नहीं आया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर CCI का केस मजबूत रहा, तो भारत भी EU और ब्राज़ील की राह पर चल सकता है, लेकिन यह प्रक्रिया लंबी हो सकती है।
यह बदलाव डिजिटल मार्केट में प्रतिस्पर्धा बढ़ाने की वैश्विक कोशिशों का हिस्सा हैं, जहां एपल और गूगल जैसी कंपनियों की बंद इकोसिस्टम पर सवाल उठ रहे हैं।

