मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की बेंच ने याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि भयानक प्रदूषण के बीच एयर प्यूरीफायर को लग्जरी आइटम नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने remarked कि पूरे शहर के लोगों का अधिकार है कि उन्हें साफ हवा मिले, लेकिन सरकार इसमें नाकाम रही है। ऐसे में कम से कम एयर प्यूरीफायर पर GST छूट तो दी ही जा सकती है।
कोर्ट ने इसे इमरजेंसी स्थिति मानते हुए सुझाव दिया कि अस्थायी तौर पर भी एक हफ्ते या एक महीने के लिए GST में छूट दी जाए। जस्टिस गेडेला ने खास तौर पर कहा, “हम एक दिन में कम से कम 21,000 बार सांस लेते हैं। इतनी बार जहरीली हवा फेफड़ों में जाने से होने वाले नुकसान की कल्पना कीजिए—यह अनैच्छिक प्रक्रिया है।” कोर्ट ने केंद्र के वकील से निर्देश लेकर दोपहर में जवाब देने को कहा और मामले को वेकेशन बेंच के सामने पालन के लिए रखा। साथ ही GST काउंसिल की अगली बैठक की जानकारी मांगी।
याचिका में एयर प्यूरीफायर को मेडिकल डिवाइस घोषित करने और इसे टैक्स-फ्री करने की मांग की गई है। कोर्ट ने माना कि मौजूदा हालात में प्यूरीफायर साफ हवा का एकमात्र जरिया बन गया है, जो धूल, धुआं और प्रदूषक तत्वों को फिल्टर करता है—खासकर अस्थमा और एलर्जी के मरीजों के लिए जरूरी।
वर्तमान में दिल्ली के कई इलाकों जैसे ITO और इंडिया गेट में AQI 350 के पार है। GRAP स्टेज-4 के उपाय लागू हैं, लेकिन प्रदूषण पर नियंत्रण नहीं हो पाया है।
जलवायु परिवर्तन का बड़ा संकेत, भारत के लिए चेतावनी
सऊदी अरब के रेगिस्तान में इस सर्दी के मौसम में दुर्लभ बर्फबारी हुई है। तबूक जैसे उत्तरी इलाकों और पहाड़ी क्षेत्रों में तापमान गिरने से पहाड़ियां बर्फ से ढक गईं। यह नजारा वायरल वीडियो में देखा जा सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, यह जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट संकेत है।
ग्लोबल वॉर्मिंग से वातावरण में नमी और ऊर्जा बढ़ रही है, जिससे मौसम पैटर्न अस्थिर हो रहे हैं। परिणामस्वरूप गर्मी की लहरें, भारी बारिश और अप्रत्याशित ठंडक जैसी घटनाएं बढ़ रही हैं। सऊदी में यह बर्फबारी पिछले 30 साल में दुर्लभ है।
यह भारत के लिए बड़ा अलर्ट है। इस साल भारत में रिकॉर्ड गर्मी, उत्तराखंड-हिमाचल में क्लाउडबर्स्ट, देर से और अनियमित मानसून तथा बाढ़ देखी गईं। इससे फसलें बर्बाद हुईं, शहरों में बाढ़ आई और गर्मी से मौतें हुईं। विशेषज्ञ चेताते हैं कि पारिस्थितिकी तंत्र ध्वस्त हो रहा है, जो कृषि, जल प्रबंधन, शहरी योजना और बिजली मांग को प्रभावित करेगा।
भारत समेत ग्लोबल साउथ के देश सबसे ज्यादा प्रभावित हैं—घनी आबादी, कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर और जलवायु-निर्भर आजीविका के कारण। तत्काल अनुकूलन जरूरी है: गर्मी-सहिष्णु शहर planning, अर्ली वॉर्निंग सिस्टम, बाढ़-प्रूफ इंफ्रा और क्लाइमेट-स्मार्ट कृषि। COP30 जैसे सम्मेलनों में भी इस बढ़ती अस्थिरता पर चर्चा हो रही है।

