विश्लेषण में पाया गया कि हटाए गए नामों में ज्यादातर गैर-बंगाली सरनेम वाले हैं, खासकर उत्तर भारतीय राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश और बिहार से आए एकल पुरुष प्रवासियों के। सबर इंस्टीट्यूट के रिसर्चर आशिन चक्रवर्ती ने कहा, “यह ट्रेंड दिखाता है कि SIR के पहले फेज में मुख्य रूप से गैर-बंगाली नाम हटाए गए हैं। पुरुष नामों की संख्या ज्यादा होने से लगता है कि उत्तर भारत से आए सिंगल मेल माइग्रेंट्स सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं।”
इस स्टडी में कोलकाता की 17 विधानसभा सीटों का डेटा शामिल है, जिसमें मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की भवानीपुर सीट भी है। यहां ‘दास’ सरनेम वाले 18.81% और ‘सिंह’ वाले 13% नाम हटाए गए। वहीं, कोलकाता पोर्ट सीट (मेयर फिरहाद हकीम की) में ‘सिंह’ सरनेम सबसे ज्यादा (13.27%) प्रभावित हुआ।
SIR प्रक्रिया के तहत 16 दिसंबर को जारी ड्राफ्ट वोटर लिस्ट में राज्य भर से करीब 58.21 लाख नाम हटाए गए हैं, जिससे कुल वोटर संख्या 7.08 करोड़ रह गई। चुनाव आयोग का कहना है कि ये हटाए गए नाम मृतक, स्थानांतरित, अनुपस्थित या डुप्लीकेट वोटरों के हैं और यह प्रक्रिया पारदर्शी है। दावे-आपत्तियों की अवधि में नाम जोड़े या बहाल किए जा सकते हैं।
इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी तेज है। तृणमूल कांग्रेस इसे वोटर दमन बता रही है, जबकि भाजपा का कहना है कि यह फर्जी और घुसपैठिए वोटरों की सफाई है। सबर इंस्टीट्यूट की पिछली स्टडी में मुस्लिम बहुल इलाकों में कम नाम हटने की बात सामने आई थी, जो घुसपैठिए दावों को चुनौती देती है।
वोटर अपनी नाम स्थिति voters.eci.gov.in या CEO वेस्ट बंगाल की वेबसाइट पर चेक कर सकते हैं और जरूरी दस्तावेजों के साथ आपत्ति दर्ज करा सकते हैं। SIR का दूसरा चरण जारी है और फाइनल लिस्ट फरवरी 2026 में आएगी।

