Dadri lynching case: उत्तर प्रदेश की एक फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 2015 के चर्चित दादरी लिंचिंग मामले में बड़ी राहत देते हुए राज्य सरकार की मुकदमा वापस लेने की याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने सरकार की इस अर्जी को ‘तुच्छ और आधारहीन’ (frivolous and baseless) करार दिया। यह मामला ग्रेटर नोएडा के दादरी क्षेत्र के बिसहड़ा गांव में मोहम्मद अखलाक की भीड़ द्वारा हत्या से जुड़ा है।
मामले की पृष्ठभूमि
28 सितंबर 2015 की रात को बिसहड़ा गांव में गोमांस रखने और गाय काटने की अफवाह फैलने के बाद एक उग्र भीड़ ने 52 वर्षीय मोहम्मद अखलाक के घर पर हमला कर दिया। भीड़ ने अखलाक को घर से बाहर घसीटकर लाठी-डंडों से पीट-पीटकर मार डाला। उनके बेटे दानिश भी गंभीर रूप से घायल हो गए थे। इस घटना ने पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव और लिंचिंग के मुद्दे पर व्यापक बहस छेड़ दी थी।
पुलिस ने मामले में कई लोगों को आरोपी बनाया और चार्जशीट दाखिल की। मुकदमा सूरजपुर की फास्ट ट्रैक कोर्ट में चल रहा है, जहां गवाहों के बयान दर्ज हो रहे हैं। हाल के महीनों में उत्तर प्रदेश सरकार ने क्रिमिनल प्रोसीजर कोड (CrPC) की धारा 321 के तहत मुकदमा वापस लेने की अर्जी दाखिल की थी। सरकार का तर्क था कि सबूतों की कमी और सामाजिक सौहार्द बहाल करने जैसे मुद्दों को आधार बनाया गया हैं।
कोर्ट का फैसला
आज 23 दिसंबर को सुनवाई के दौरान अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश की कोर्ट ने सरकार की याचिका को पूरी तरह खारिज कर दिया। कोर्ट ने इसे ‘frivolous and baseless’ बताते हुए कहा कि ऐसे गंभीर मामले में वापसी की मांग उचित नहीं है। यह फैसला पीड़ित परिवार के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है, क्योंकि परिवार ने पहले ही इस कदम का विरोध किया था और इलाहाबाद हाईकोर्ट में भी याचिका दाखिल की थी।
अखलाक के परिवार के वकील यूसुफ सैफी ने पहले कोर्ट में कहा था कि हत्या का मुकदमा बीच में वापस लेना न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है। परिवार का कहना है कि लाठी-डंडों से की गई हत्या को छोटा अपराध नहीं माना जा सकता।
आगे क्या?
मुकदमे की ट्रायल अब जारी रहेगी। पीड़ित परिवार ने सरकार के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी है, जहां जनवरी 2026 में सुनवाई होने की संभावना है। यह मामला लिंचिंग और सांप्रदायिक हिंसा से जुड़े मामलों में न्यायिक प्रक्रिया की मजबूती को जग जाहिर कर रहा है।

