सुप्रीम कोर्ट अजमेर शरीफ दरगाह याचिका सूचीबद्ध करने से इनकार: पीएमओ की चादर चढ़ाने पर रोक की तत्काल सुनवाई से इनकार, चादर चढ़ाई गई

सुप्रीम कोर्ट अजमेर शरीफ दरगाह याचिका सूचीबद्ध करने से इनकार: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) द्वारा अजमेर शरीफ दरगाह में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के उर्स के दौरान चादर चढ़ाने पर रोक लगाने की एक अर्जेंट याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार कर दिया। हालांकि, इस फैसले के बावजूद केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से चादर चढ़ाई।

चीफ जस्टिस सूर्य कांत की अगुवाई वाली विशेष अवकाश पीठ ने याचिका की तत्काल सुनवाई की मांग खारिज कर दी। याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत में कहा कि हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता द्वारा राजस्थान की एक अदालत में दायर मुकदमे में दावा किया गया है कि अजमेर दरगाह एक प्राचीन शिव मंदिर ‘भगवान श्री संकट मोचन महादेव विराजमान मंदिर’ पर बनी है। ऐसे में पीएमओ द्वारा चादर चढ़ाना मुकदमे के पक्षकारों के अधिकारों को प्रभावित करेगा और गलत संदेश देगा।

सीजेआई ने जवाब दिया, “आज कोई मामला सूचीबद्ध नहीं किया जाएगा।” वकील ने 26 दिसंबर को सुनवाई की मांग की, तो अदालत ने कहा कि इसके लिए सामान्य प्रक्रिया का पालन करें। कोर्ट विंटर अवकाश पर है और 5 जनवरी 2026 तक बंद रहेगा।

इस बीच, अजमेर में उर्स के दौरान केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने प्रधानमंत्री की ओर से चादर चढ़ाई। आकाशवाणी और एएनआई सहित कई स्रोतों के अनुसार, रिजिजू ने दरगाह में चादर पेश की और परंपरागत रूप से खादिमों द्वारा दस्तारबंदी भी कराई गई। यह परंपरा कई वर्षों से चली आ रही है।

पृष्ठभूमि: राजस्थान की निचली अदालत में विष्णु गुप्ता का मुकदमा लंबित है, जिसमें दरगाह परिसर का एएसआई सर्वे कराने और शिव मंदिर के अवशेषों की जांच की मांग की गई है। पिछले साल अदालत ने संबंधित पक्षों को नोटिस जारी किया था। दिसंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट से जुड़े मामलों में नए मुकदमों या सर्वे पर रोक लगा दी थी।
यह मामला धार्मिक स्थलों की प्रकृति से जुड़े विवादों का हिस्सा है, जहां एक पक्ष सूफी परंपरा को बनाए रखना चाहता है तो दूसरा पक्ष ऐतिहासिक दावे उठा रहा है। चादर चढ़ाने की घटना बिना किसी रुकावट के पूरी हुई।

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