कोर्ट ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव और प्रधान संरक्षक वन (Principal Chief Conservator of Forests) को तत्काल प्रभाव से एक जांच कमेटी (enquiry committee) गठित करने का निर्देश दिया है। यह कमेटी अतिक्रमण की मात्रा और स्थिति का आकलन करेगी तथा अपनी व्यापक रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट में पेश करेगी। साथ ही, कोर्ट ने निजी पक्षकारों को वन भूमि पर कोई तीसरे पक्ष के अधिकार बनाने से रोका है और ऐसी जमीन पर किसी भी तरह का निर्माण कार्य प्रतिबंधित कर दिया है। आवासीय मकानों को छोड़कर खाली पड़ी वन भूमि को वन विभाग के कब्जे में लेने का भी आदेश दिया गया है।
यह मामला हाल ही में जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में हुई कार्रवाई से भी जुड़ा प्रतीत होता है। 8 दिसंबर को रामनगर (नैनीताल जिला) में वन विभाग ने अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया था, जिसमें पुच्छड़ी गांव में 25 हेक्टेयर वन भूमि को मुक्त कराया गया। इस दौरान 52 अतिक्रमणकारियों को नोटिस दिए गए थे, जिनमें से कुछ की अवैध संरचनाएं ध्वस्त की गईं। हालांकि, हाईकोर्ट से स्टे ऑर्डर वाले मामलों को छूट दी गई।
सुप्रीम कोर्ट की यह सख्ती उत्तराखंड में बढ़ते वन अतिक्रमण के मामलों के बीच आई है। राज्य में वन भूमि की सुरक्षा और पर्यावरण संरक्षण को लेकर पहले भी कई निर्देश जारी हो चुके हैं, लेकिन अधिकारियों की सुस्ती पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर की है। मामले की अगली सुनवाई पर अभी कोई स्पष्ट तारीख नहीं बताई गई है, लेकिन जांच रिपोर्ट आने तक सख्त निगरानी जारी रहेगी।
यह घटनाक्रम उत्तराखंड के पर्यावरण प्रेमियों और वन संरक्षण से जुड़े लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि राज्य की बड़ी हिस्सेदारी वनों से घिरी हुई है।

