गिरावट के मुख्य कारण
विभिन्न स्रोतों के अनुसार, रुपये की इस कमजोरी के पीछे कई कारक जिम्मेदार हैं:
– भारत-अमेरिका व्यापार समझौते में अनिश्चितता: अमेरिका द्वारा भारतीय निर्यात पर 50% तक टैरिफ लगाए जाने से निर्यात प्रभावित हुआ है। दोनों देशों के बीच फ्रेमवर्क ट्रेड डील पर बातचीत चल रही है, लेकिन देरी से बाजार में जोखिम-विरोधी भावना बढ़ी है।
– विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) की बिकवाली: 2025 में अब तक विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयरों से 18 अरब डॉलर से अधिक की निकासी की है। दिसंबर में ही बॉन्ड से 500 मिलियन डॉलर से ज्यादा बाहर गए। इससे डॉलर की मांग बढ़ी और रुपया दबाव में आया।
– आयातकों की मजबूत डॉलर मांग: आयात बिल बढ़ने और व्यापार घाटे के कारण डॉलर की मांग-आपूर्ति में असंतुलन पैदा हुआ।
– वैश्विक कारक: मजबूत अमेरिकी डॉलर और एशियाई मुद्राओं में कमजोरी ने भी रुपये को प्रभावित किया। रुपया 2025 में एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बन गया है, जो साल भर में करीब 6% कमजोर हुआ है।
बाजार की स्थिति
– रुपया 90.53 पर खुला और पिछले शुक्रवार (12 दिसंबर) के बंद भाव 90.49 से कमजोर रहा।
– डॉलर इंडेक्स 98.32 पर थोड़ा नरम पड़ा, जबकि ब्रेंट क्रूड ऑयल 61.25 डॉलर प्रति बैरल पर चढ़ा।
– घरेलू शेयर बाजार में सेंसेक्स 54 अंक गिरकर 85,213 पर और निफ्टी 19 अंक गिरकर 26,027 पर बंद हुआ।
– भारत के विदेशी मुद्रा भंडार 5 दिसंबर तक 687.26 अरब डॉलर पर पहुंच गए, जो थोड़ी राहत की खबर है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर व्यापार समझौता जल्द नहीं हुआ तो रुपया 91-92 के स्तर को भी छू सकता है। हालांकि, बेहतर व्यापार संतुलन और RBI के हस्तक्षेप से कुछ स्थिरता की उम्मीद है। रुपये की यह गिरावट आयात महंगा बनाएगी, जिससे पेट्रोल-डीजल और अन्य Imported सामान के दाम बढ़ सकते हैं, लेकिन निर्यातकों को फायदा हो सकता है।

