नोएडा। नोएडा प्राधिकरण एक बार फिर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों को लेकर सुर्खियों में है। पिछले कई वर्षों से प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पर सवाल उठते रहे हैं। खासतौर पर पूर्व मुख्य कार्यपालक अधिकारी (CEO) के कार्यकाल से जुड़े मामलों में लगातार शिकायतें सामने आती रही हैं। इन्हीं शिकायतों के आधार पर पहले SIT (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) का गठन हुआ और अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोबारा जाँच के निर्देश दिए जाने के बाद यह मामला फिर चर्चा के केंद्र में आ गया है।
भ्रष्टाचार के आरोप: क्या हैं मुख्य शिकायतें
नोएडा प्राधिकरण पर लगे आरोप मुख्य रूप से
भूखंड आवंटन में अनियमितता
बिल्डरों को अनुचित लाभ
नियमों को दरकिनार कर लेआउट पास करने
भूमि उपयोग परिवर्तन में कथित गड़बड़ी
विकास कार्यों में वित्तीय अनियमितता
जैसे मामलों से जुड़े रहे हैं। आरोप है कि कुछ मामलों में नियमों को ताक पर रखकर निर्णय लिए गए, जिससे प्राधिकरण को राजस्व का नुकसान हुआ और निजी लाभ को बढ़ावा मिला।
पूर्व CEO के कार्यकाल पर सबसे अधिक सवाल
प्राधिकरण में सामने आए कई विवादों की कड़ी पूर्व CEO के कार्यकाल से जुड़ी बताई जाती है। इसी कारण विभिन्न सामाजिक संगठनों, आवंटी संघों और याचिकाकर्ताओं ने उच्च न्यायालय और बाद में सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया। शिकायतकर्ताओं का कहना है कि यदि निष्पक्ष जाँच हो, तो कई बड़े फैसलों की परतें खुल सकती हैं।
SIT जाँच और उसकी भूमिका
इन गंभीर आरोपों को देखते हुए पहले एक SIT का गठन किया गया था, जिसका उद्देश्य था
1आवंटन प्रक्रिया की जाँच
2दस्तावेज़ों की समीक्षा
3निर्णय लेने की प्रक्रिया की पड़ताल
हालाँकि, जाँच को लेकर पारदर्शिता और उसकी गति पर भी सवाल उठते रहे, जिसके चलते मामला न्यायिक निगरानी तक पहुँचा।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों से फिर तेज़ हुई प्रक्रिया
अब सुप्रीम कोर्ट द्वारा दोबारा जाँच के निर्देश दिए जाने से यह साफ हो गया है कि मामला केवल प्रशासनिक नहीं बल्कि संवैधानिक महत्व का है।
शीर्ष अदालत का यह रुख दर्शाता है कि
मामले की गंभीरता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता
जाँच स्वतंत्र और निष्पक्ष होनी चाहिए
जवाबदेही तय करना आवश्यक है
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होने वाली जाँच से सच्चाई सामने आने की उम्मीद बढ़ जाती है।
आवंटियों और आम जनता की उम्मीदें, नोएडा प्राधिकरण से जुड़े लाखों लोग—आवंटी, निवेशक और आम नागरिक—इस जाँच को उम्मीद की नजर से देख रहे हैं। उनका कहना है कि पारदर्शिता बहाल हो, दोषियों पर कार्रवाई हो, भविष्य में ऐसी अनियमितताओं की पुनरावृत्ति न हो, लंबे समय से लंबित मामलों ने लोगों के भरोसे को गहरी चोट पहुँचाई है। प्राधिकरण की छवि और प्रशासनिक चुनौतियाँ इन मामलों का सीधा असर नोएडा प्राधिकरण की छवि पर पड़ा है। विकास प्राधिकरण होने के बावजूद, भ्रष्टाचार के आरोप विकास कार्यों की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अब आवश्यकता है, सिस्टम में सुधार निर्णय प्रक्रिया में पारदर्शिता और अधिकारियों की जवाबदेही तय करने की जिम्मेदारी होनी चाहिए।
आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद अब सभी की निगाहें जाँच की दिशा और निष्कर्ष पर टिकी हैं। यह जाँच न केवल पूर्व CEO के कार्यकाल से जुड़े मामलों को स्पष्ट करेगी, बल्कि नोएडा प्राधिकरण के भविष्य की कार्यशैली को भी दिशा दे सकती है। नोएडा प्राधिकरण पर लगे भ्रष्टाचार के आरोप, पूर्व CEO के खिलाफ SIT जाँच और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप ने यह साफ कर दिया है कि मामला बेहद गंभीर है। अब यह जाँच व्यवस्था की पारदर्शिता और न्यायिक प्रक्रिया की कसौटी बनेगी। आने वाले समय में इसके नतीजे नोएडा के विकास और प्रशासनिक व्यवस्था के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं।

