‘Inhumane’ treatment of female students in hostels: छुट्टियों के बाद प्रेग्नेंसी टेस्ट का आरोप, शिक्षा संस्थानों में सवालों का दौर

‘Inhumane’ treatment of female students in hostels: भारत के कई राज्यों में लड़कियों के हॉस्टलों में एक ऐसी प्रथा चल रही है, जो न सिर्फ़ छात्राओं की निजता का उल्लंघन कर रही है, बल्कि उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से परेशान भी कर रही है। मीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, कुछ हॉस्टलों में छुट्टियों के बाद लौटने पर छात्राओं को अनिवार्य रूप से प्रेग्नेंसी टेस्ट कराने पर मजबूर किया जाता है। यह आरोप छात्राओं ने खुद लगाए हैं, जो शिक्षा के नाम पर हो रहे इस ‘निगरानी तंत्र’ से त्रस्त हैं।

रिपोर्ट में दिल्ली-एनसीआर के एक प्रतिष्ठित निजी विश्वविद्यालय के हॉस्टल की छात्राओं ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि दीवाली या गर्मी की छुट्टियों के बाद हॉस्टल लौटते ही वार्डन या प्रबंधन द्वारा प्रेग्नेंसी टेस्ट कराया जाता है। “यह हमारे सम्मान का अपमान है। हम पढ़ने आए हैं, न कि अपनी निजी जिंदगी की जांच के लिए,” एक छात्रा ने बताया। एक अन्य छात्रा ने कहा, “अगर टेस्ट पॉजिटिव आता है, तो न सिर्फ़ हॉस्टल से निकाल दिया जाता है, बल्कि माता-पिता को भी सूचित कर दिया जाता है। इससे हमारी पढ़ाई और भविष्य दोनों खतरे में पड़ जाते हैं।”

यह मुद्दा सिर्फ़ एक संस्थान तक सीमित नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान जैसे राज्यों के कई सरकारी और निजी हॉस्टलों में भी ऐसी ही शिकायतें सामने आई हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रथा 2010 के दशक से चली आ रही है, जब ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान के तहत लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा दिया गया। लेकिन इसके उलट, हॉस्टल प्रबंधन ‘सुरक्षा’ के नाम पर छात्राओं की निगरानी बढ़ा देते हैं। राष्ट्रीय महिला आयोग (एनसीडब्ल्यू) की पूर्व सदस्य और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. वंदना महावर ने मीडिया को बताया, “यह प्रथा पूर्णतः असंवैधानिक है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निजता का अधिकार मौलिक है। ऐसे मामलों में पीड़ित छात्राओं को कानूनी सहायता मिलनी चाहिए।”

सोशल मीडिया पर भड़की बहस
इस पोस्ट पर एक्स (पूर्व ट्विटर) पर प्रतिक्रियाओं का दौर चल पड़ा है। एक यूजर ने लिखा, “डबल इंजन सरकार में OBC छात्राओं के साथ ऐसा अन्याय? शर्मनाक!” वहीं, एक अन्य ने व्यंग्य कसा, “फ्री मेडिकल चेकअप मिल रहा है, क्या बुराई है?” लेकिन अधिकांश प्रतिक्रियाएं नकारात्मक हैं। रबिया पठान जैसी यूजर्स ने इसे “अमानवीय और अपमानजनक” बताया, और कड़ी कार्रवाई की मांग की। अब तक इस पोस्ट को 2,000 से अधिक व्यूज मिल चुके हैं, और बहस तेज़ हो रही है।

कानूनी और सामाजिक आयाम
कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक, यह प्रथा ‘यौन उत्पीड़न’ के दायरे में आ सकती है। सुप्रीम कोर्ट के 2017 के पुडुचेरी यूनिवर्सिटी मामले में भी इसी तरह की निगरानी पर रोक लगाई गई थी। शिक्षा मंत्रालय ने 2023 में दिशानिर्देश जारी किए थे कि हॉस्टलों में छात्राओं की गोपनीयता का सम्मान किया जाए, लेकिन अमल में कमी बरती जा रही है। सामाजिक कार्यकर्ता रंजना कुमारी ने कहा, “यह पितृसत्तात्मक सोच का परिणाम है। लड़कियों को ‘संरक्षित’ करने के नाम पर उन पर नियंत्रण थोपा जा रहा है।”

सरकारी प्रतिक्रिया का इंतज़ार
मानव संसाधन विकास मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय से इस मुद्दे पर तत्काल प्रतिक्रिया की मांग हो रही है। एनसीपीसीआर (राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग) ने भी ऐसे मामलों में हस्तक्षेप का वादा किया है। छात्र संगठन जैसे एआईएसएफ़ ने देशव्यापी विरोध प्रदर्शन की चेतावनी दी है।

यह मुद्दा न सिर्फ़ शिक्षा प्रणाली की कमियों को उजागर करता है, बल्कि लैंगिक समानता की दिशा में भारत की प्रगति पर सवाल भी खड़े करता है। अगर ऐसी प्रथाएं जारी रहीं, तो लाखों छात्राओं का भविष्य दांव पर लग सकता है। क्या सरकार इस पर ठोस कदम उठाएगी? यह तो समय ही बताएगा।

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