Blood-soaked Bay of Bengal: 1971 के बांग्लादेश नरसंहार पर बनी डॉक्यूमेंट्री ‘Bay of Blood’ रिलीज़

Blood-soaked Bay of Bengal: विश्व इतिहास के सबसे भयावह लेकिन अक्सर भुला दिए गए नरसंहारों में से एक – 1971 का बांग्लादेश नरसंहार – पर बनी अंतरराष्ट्रीय डॉक्यूमेंट्री फिल्म ‘Bay of Blood: The Bangladesh Genocide’ अब दर्शकों के सामने है। यह फिल्म उस दौर की क्रूर सच्चाई को बेनकाब करती है जब पाकिस्तानी सेना ने पूर्वी पाकिस्तान (आज का बांग्लादेश) में नौ महीने तक चले सुनियोजित नरसंहार में लगभग 30 लाख लोगों को मौत के घाट उतार दिया, एक करोड़ शरणार्थियों को भारत की ओर भगा दिया और करीब चार लाख महिलाओं-लड़कियों के साथ बलात्कार व यौन हिंसा की।

फिल्म में दुर्लभ आर्काइव फुटेज, जीवित बचे लोगों के मार्मिक संस्मरण और विशेषज्ञों के विश्लेषण के ज़रिए पूरे संघर्ष का चित्रण किया गया है। इसमें दिखाया गया है कि कैसे 25 मार्च 1971 की रात को शुरू हुई ‘ऑपरेशन सर्चलाइट’ के तहत पाकिस्तानी सेना ने ढाका विश्वविद्यालय, पुलिस लाइन्स और हिंदू बस्तियों पर अंधाधुंध हमले किए। इसके जवाब में मुक्ति बहिनी (मुक्ति वाहिनी) का सशस्त्र प्रतिरोध उभरा और अंततः 3 दिसंबर 1971 को भारत के युद्ध में कूदने के बाद सिर्फ़ 13 दिनों में पाकिस्तानी सेना के 93,000 सैनिकों ने 16 दिसंबर 1971 को ढाका में आत्मसमर्पण कर दिया – द्वितीय विश्व युद्ध के बाद किसी सेना का सबसे बड़ा समर्पण था।

डॉक्यूमेंट्री में प्रमुख बांग्लादेशी शोधकर्ता मेघना गुहठाकुरता, लेखक सलील त्रिपाठी और पाकिस्तानी इतिहासकार शुजा नवाज़ जैसे विशेषज्ञों के साक्षात्कार हैं, जो इस नरसंहार को तीनों पक्षों से विश्लेषित करते हैं। फिल्म यह भी दिखाती है कि कैसे भारत ने एक करोड़ शरणार्थियों को शरण दी, उनकी देखभाल की और अंततः युद्ध लड़कर बांग्लादेश की आज़ादी सुनिश्चित की।

निर्माताओं के अनुसार, ‘Bay of Blood’ सिर्फ़ अतीत की कहानी नहीं, बल्कि आज के दौर में भी चेतावनी है कि जब विश्व समुदाय चुप रहता है, तो नरसंहार होते हैं। यह फिल्म बांग्लादेश के लोगों की अतुलनीय सहनशक्ति और स्वाधीनता संग्राम को सलाम करती है, साथ ही भारत-बांग्लादेश के साझा इतिहास और बलिदान को रेखांकित करती है।

फिल्म अब विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म्स और फिल्म फेस्टिवलों में प्रदर्शित की जा रही है और इसे 1971 के नरसंहार को आधिकारिक रूप से “जेनोसाइड” के रूप में मान्यता दिलाने की मुहिम का अहम हिस्सा माना जा रहा है।

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