Tirupparankundram Temple News: हाईकोर्ट के आदेश की अवहेलना, हिंदू संगठनों का आक्रोश, प्रशासन ने लगाई धारा 144!

Tirupparankundram Temple News: मदुरै के तिरुप्परनकुंड्रम मंदिर क्षेत्र में बुधवार रात को तनाव चरम पर पहुंच गया, जब हिंदू संगठनों ने हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश के बावजूद ‘दीपथून’ पर कार्तिगाई दीपम जलाने की मांग की। लेकिन जिला प्रशासन ने न केवल धारा 144 (बीएनएसएस की धारा 163) लागू कर दी, बल्कि सशस्त्र सीआईएसएफ कर्मियों के साथ पहुंचे याचिकाकर्ताओं को भी पहाड़ी पर चढ़ने से रोक दिया। यह घटना न केवल धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाली है, बल्कि न्यायपालिका की सर्वोच्चता पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है। जनता में गुस्सा भरा हुआ है – क्या राज्य सरकार कोर्ट के फैसले को ठेंगे पर चढ़ाने का हक है?
मदुरै बेंच के जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन ने 1 दिसंबर को सुभ्रमण्य स्वामी मंदिर प्रबंधन को निर्देश दिया था कि कार्तिगाई दीपम को न केवल पारंपरिक स्थानों पर, बल्कि पहाड़ी पर दर्गाह के निकट स्थित ‘दीपथून’ पर भी जलाया जाए। लेकिन मंदिर प्रबंधन ने इसकी अनदेखी की, जिस पर याचिकाकर्ता राम. रविकुमार ने अवमानना याचिका दायर की। बुधवार शाम 6 बजे सुनवाई के दौरान कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्य प्रशासन आदेश की अवहेलना कर रहा है, जो लोकतंत्र के लिए घातक है। जज ने कहा, “नियम का शासन दांव पर है। राज्य ने कोर्ट के आदेश को ठट्ठा उड़ाने का फैसला किया है। अवमानना याचिका स्वीकार करने से काम नहीं चलेगा, यह लोकतंत्र की मौत का संकेत देगा।”

कोर्ट ने याचिकाकर्ता को 10 अन्य व्यक्तियों समेत पहाड़ी पर जाने और दीपम जलाने की अनुमति दी, साथ ही मदुरै हाईकोर्ट की सीआईएसएफ इकाई को सुरक्षा मुहैया कराने का आदेश दिया। लेकिन शाम 9 बजे जब याचिकाकर्ता और हिंदू मुन्नानी, भाजपा समेत संगठनों के सदस्य सीआईएसएफ के साथ पहुंचे, तो पुलिस आयुक्त ने उन्हें रोक लिया। उनका यह तर्क था की? “कानून-व्यवस्था बिगड़ने का खतरा” और “राज्य ने अपील दायर की है”। लेकिन सच्चाई यह है कि न तो राज्य ने कोई वैध अपील की, न ही दर्गाह प्रबंधन ने स्टे ऑर्डर प्राप्त किया। मंदिर प्रबंधन की अपील भी खराब फॉर्मेट में थी, जो केवल आदेश टालने की चाल लगती है।

इस घटना ने जनता में भारी आक्रोश पैदा कर दिया है। एचआरएंडसीई कार्यालय के बाहर करीब 600 हिंदू संगठनों के सदस्यों ने जोरदार विरोध प्रदर्शन किया, राज्य सरकार पर धार्मिक स्वतंत्रता का हनन करने का आरोप लगाया। सोशल मीडिया पर #JusticeForDeepamThoon ट्रेंड कर रहा है, जहां लोग सवाल उठा रहे हैं: “क्या हिंदू रीति-रिवाजों को कुचलना अब कानून है? जज ने कहा था कि याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकार दांव पर हैं, फिर प्रशासन क्यों कोर्ट को चुनौती दे रहा है?”

स्थानीय निवासी और भक्तों का कहना है कि यह केवल दीपम जलाने का मुद्दा नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विरासत और धार्मिक सद्भाव का सवाल है। तिरुप्परनकुंड्रम जैसे पवित्र स्थल पर दर्गाह और मंदिर का सह-अस्तित्व सदियों से चला आ रहा है, लेकिन अब राजनीतिक इच्छाशक्ति इसे तोड़ने पर तुली लगती है। एक बुजुर्ग भक्त ने गुस्से में कहा, “हम शांति चाहते हैं, लेकिन हमारे अधिकारों की रक्षा कौन करेगा? सरकार कोर्ट के फैसले को चुनौती देकर लोकतंत्र को कमजोर कर रही है।”

मंदिर में पारंपरिक ‘महादीपम’ तो पहाड़ी पर जलाया गया, लेकिन ‘दीपथून’ पर नहीं। कोर्ट ने गुरुवार को अनुपालन रिपोर्ट मांगी है, लेकिन जनता का धैर्य अब अंतिम बिंदु पर है। क्या यह विवाद सांप्रदायिक तनाव को जन्म देगा, या न्याय की जीत होगी? समय ही बताएगा, लेकिन एक बात साफ है – राज्य की यह जिद न केवल धार्मिक भावनाओं को आहत कर रही है, बल्कि संवैधानिक मूल्यों को भी खतरे में डाल रही है। जनता की आवाज दबाई नहीं जा सकती!

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