हवा में जहर: 40 साल की सुप्रीम कोर्ट की जंग, फिर भी सांस लेना मुश्किल

Poison in the Air News: चार दशकों से ज्यादा समय हो गया। सैकड़ों आदेश, कई नियामक संस्थाएं, लेकिन दिल्ली-एनसीआर की हवा आज भी जहरीली बनी हुई है। पर्यावरणविद् और वकील एम.सी. मेहता द्वारा दायर याचिकाओं से शुरू हुई यह कानूनी लड़ाई आज भी जारी है, लेकिन प्रदूषण का स्तर कम होने का नाम नहीं ले रहा। सुप्रीम कोर्ट ने सीएनजी रूपांतरण से लेकर ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP), कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (CAQM), पटाखा प्रतिबंध, पराली जलाने पर रोक और प्रवर्तन में खाली पड़े पदों की समस्या तक हर मोर्चे पर हस्तक्षेप किया, लेकिन अमल की कमी ने सबकुछ नाकाम कर दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह ‘कागजी क्रांति’ मात्र है।

1980-90 का दौर: प्रदूषण के खिलाफ पहली आवाज
दिल्ली के वायु प्रदूषण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की यात्रा 1980 के दशक में शुरू हुई। 1985 में एम.सी. मेहता ने वाहनों के उत्सर्जन, औद्योगिक धुएं और अनियंत्रित ईंधन जलाने के खिलाफ याचिका दायर की। 1987 के एम.सी. मेहता बनाम भारत संघ मामले में कोर्ट ने स्वच्छ पर्यावरण को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया। 1988 के ग्रामीण मुक्ति एवं अधिकार केंद्र बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले ने पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी।

1990 के दशक में कोर्ट ने कड़े कदम उठाए। नवंबर 1996 में 1,300 अत्यधिक प्रदूषणकारी उद्योगों और 246 ईंट भट्टों को बंद या स्थानांतरित करने का आदेश दिया। जुलाई 1998 का ऐतिहासिक फैसला था- दिल्ली के सार्वजनिक परिवहन (बसें, टैक्सी, ऑटो-रिक्शा) को 31 मार्च 2001 तक सीएनजी पर चलाने का निर्देश। पुराने वाहनों (15 साल से अधिक) पर प्रतिबंध लगाया और ‘पॉल्यूटर पेज प्रिंसिपल’ लागू किया, जिसके तहत उद्योगों को ईंधन बदलना पड़ा या बंद होना पड़ा।

ताज ट्रेपेजियम जोन मामले (1996-97) में आगरा के 292 उद्योगों को कोयले से प्राकृतिक गैस पर शिफ्ट करने या 10,400 वर्ग किमी क्षेत्र से बाहर स्थानांतरित करने का आदेश दिया, ताकि ताजमहल पर अम्ल वर्षा का असर न हो।

2000 का दशक: संस्थागत सुधार और चुनौतियां
1998 में कोर्ट ने पर्यावरण प्रदूषण (निवारण एवं नियंत्रण) प्राधिकरण (EPCA) को सशक्त बनाया, जो औद्योगिक ईंधन, वाहन मानकों, लैंडफिल आग और धूल प्रदूषण की निगरानी करता। EPCA ने पॉल्यूशन अंडर कंट्रोल (PUC) प्रमाणन, डीजल जेनसेट चरणबद्ध हटाना और निर्माण मानकों को सख्त करने के निर्देश जारी किए। लेकिन वाहनों की संख्या बढ़ी, कचरा प्रबंधन लापरवाह रहा और प्रवर्तन कमजोर पड़ा, जिससे 2010 के शुरुआती वर्षों में सर्दियों का कोहरा और घना हो गया।

2010-20: GRAP, पराली और पटाखों पर फोकस
2015 के अर्जुन गोपाल याचिका में प्रदूषित हवा को अनुच्छेद 21 का उल्लंघन बताया गया। 2016 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने अनियंत्रित निर्माण, लैंडफिल आग और कचरा जलाने पर आदेश दिए। 2017 में GRAP लागू हुआ, जो एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) के आधार पर चरणबद्ध कार्रवाई करता है- ‘गंभीर’ या ‘गंभीर प्लस’ स्तर पर डीजल जेनसेट प्रतिबंध, निर्माण रोक और ट्रक प्रवेश सीमित।

2017-18 में जस्टिस मदन बी. लोकुर की बेंच ने पराली जलाने पर ध्यान केंद्रित किया। केंद्र को टास्क फोर्स बनाने और किसानों को प्रोत्साहन देने का निर्देश दिया। 2018 में जस्टिस एके सिकरी और अशोक भूषण की बेंच ने पटाखों पर विनियमन लगाया। NGT ने ईंट भट्टों के लिए जिगजैग तकनीक अनिवार्य की और गंभीर प्रदूषण में निर्माण प्रतिबंधित किया।

2019-20 में कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने को सर्दी के कोहरे का मुख्य कारण माना। तत्काल रोक, मुख्य सचिवों को अवमानना चेतावनी, निर्माण प्रतिबंध और ‘पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी’ घोषणा की। न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) रोकने की धमकी दी। अक्टूबर 2020 में EPCA भंग कर CAQM का गठन किया गया। जस्टिस लोकुर की एक सदस्यीय निगरानी समिति बनी, जो NCC जैसी छात्र इकाइयों की मदद से पराली जलाने की फॉर्टनाइटली रिपोर्ट दे रही थी।
2021 में जस्टिस एमआर शाह और एएस बोपन्ना की बेंच ने स्पष्ट किया कि पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक वाले प्रतिबंधित, खासकर बुजुर्गों और बच्चों के लिए।

2021-25: CAQM का पुनरुद्धार और प्रवर्तन संकट
2021 के CAQM एक्ट ने GRAP लागू करने, औद्योगिक ईंधन, कचरा जलाने और सैटेलाइट निगरानी की जिम्मेदारी सौंपी। लेकिन 2024-25 में कोर्ट ने CAQM की आलोचना की। नवंबर 2024 में AQI ‘गंभीर प्लस’ पहुंचने पर GRAP स्टेज IV लागू, स्कूल बंद और 113 ट्रक एंट्री पॉइंट्स पर जांच का आदेश। दीवाली पर 37 में से सिर्फ 9 मॉनिटरिंग स्टेशन काम कर रहे थे। 19 नवंबर 2024 को तत्कालीन चीफ जस्टिस बीआर गवई ने CAQM को GRAP III में वर्क-फ्रॉम-होम और 50% उपस्थिति लागू करने की शक्ति दी।

अक्टूबर 2024 (दीवाली से पहले) में हरे पटाखों के निर्माण-बिक्री की सीमित अनुमति दी। मई 2025 में दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल कमिटी (DPCC) को 55% पद खाली (204 में से 83 भरे) होने पर फटकार लगाई। सितंबर तक सभी पद भरने और अग्रिम भर्ती का निर्देश। हरियाणा में 35%, राजस्थान-यूपी में 45% रिक्तियां। सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) में 21% खाली। अगस्त 2024 के निर्देश का उल्लंघन पर मुख्य सचिवों को अवमानना नोटिस। कोर्ट ने CAQM के ‘वेट एंड वॉच’ रवैये और अपूर्ण डेटा को अस्वीकार्य बताया।

आज की हकीकत: कागजों पर जीत, हवा में जहर
दिसंबर 2025 में चीफ जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस जे. बागची ने कहा, “उपाय कागजों पर ही हैं।” विशेषज्ञों के मुताबिक, ट्रैफिक, निर्माण धूल, पराली (जो सैटेलाइट निगरानी से चकमा दे रही) और अवैध कचरा जलाना मुख्य वजहें। 2025 में भी GRAP के तहत स्कूलों में आउटडोर स्पोर्ट्स निलंबित, लेकिन AQI 300 पार जाता रहा है। कोर्ट ने लंबी अवधि की योजना मांगी, लेकिन सरकारें ‘विकसित देशों के मानक न लागू’ कहकर टाल रही।

दिल्लीवासी अब सवाल पूछ रहे: क्या 40 साल की जंग व्यर्थ गई? या समय आ गया है सख्त अमल का?

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