जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उदय उमेश ललित की बेंच ने इस जनहित याचिका (PIL) पर चुनाव आयोग, केंद्र सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार को नोटिस जारी कर चार हफ्तों में जवाब मांग लिया है। अगली सुनवाई 9 दिसंबर 2025 को तय की गई है।
याचिका गैर-सरकारी संगठन “आत्मदीप” ने दायर की है। संगठन के अध्यक्ष तथा याचिकाकर्ता प्रोफेसर अभय सिंह ने कोर्ट को बताया कि:
• ऐसे शरणार्थियों ने 2014 से पहले CAA के तहत ऑनलाइन आवेदन किए थे, लेकिन 11 साल बीत जाने के बाद भी एक भी आवेदन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
• ये लोग बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार होकर भारत आए थे, इसलिए CAA-2019 की धारा 6B उन्हें स्पष्ट रूप से नागरिकता का हक देती है।
• वर्तमान में इन शरणार्थियों को वोट देने, सरकारी नौकरी, राशन कार्ड, आधार कार्ड, बैंक खाता आदि बुनियादी अधिकारों से वंचित रखा जा रहा है।
• याचिकाकर्ता के वकील ने दावा किया कि केवल पश्चिम बंगाल में ही ऐसे प्रभावित लोगों की संख्या 2 करोड़ से अधिक है।
याचिका में मांग की गई है कि जब तक पूर्ण नागरिकता नहीं मिल जाती, तब तक इन सभी को “प्रोविजनल स्टेटस ऑफ इंडियन रेजिडेंट” (SIR) सर्टिफिकेट जारी किया जाए, ताकि वे न्यूनतम नागरिक सुविधाएं प्राप्त कर सकें।
गौरतलब है कि CAA नियम मार्च 2024 में अधिसूचित हो चुके हैं और पूरे देश में 2014 तक आए गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार ने स्पष्ट रूप से CAA लागू करने से इनकार कर रखा है। यही वजह है कि राज्य में सबसे ज्यादा आवेदन लंबित हैं।
कोर्ट ने सभी पक्षों से विस्तृत हलफनामा मांगा है कि आखिर 2014 से अब तक इन आवेदनों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई और प्रोविजनल SIR जारी करने में क्या कानूनी अड़चन है।
यह मामला लाखों शरणार्थियों के भविष्य से जुड़ा होने के कारण देशभर में चर्चा का विषय बना हुआ है। 9 दिसंबर की सुनवाई पर पूरे देश की नजरें टिकी हैं।

