विवाद की जड़
विवाद की शुरुआत तब हुई जब जम्मू-कश्मीर बोर्ड ऑफ प्रोफेशनल एंट्रेंस एग्जामिनेशन (JKBOPEE) ने पहली प्रवेश सूची जारी की, जिसमें कश्मीर क्षेत्र के 42 छात्रों का नाम शामिल था, जो ज्यादातर मुस्लिम समुदाय से हैं। इस बीच, जम्मू क्षेत्र से केवल 8 छात्रों को प्रवेश मिला। हिंदू संगठनों, खासकर बजरंग दल और विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी), का आरोप है कि यह कॉलेज वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के दान से बना है, जो हिंदू तीर्थयात्रियों के योगदान से संचालित होता है। इन संगठनों का दावा है कि इस संस्थान में हिंदू छात्रों के लिए 90% आरक्षण होना चाहिए, जैसा कि अन्य धार्मिक अल्पसंख्यक संस्थानों में होता है, जैसे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) या गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी।
कॉलेज का जवाब
विवाद बढ़ने पर मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने स्पष्ट किया है कि यहां किसी भी समुदाय या वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था नहीं है। प्रवेश पूरी तरह से मेरिट आधारित है और जम्मू-कश्मीर के एकीकृत प्रवेश परीक्षा (NEET) के स्कोर के अनुसार छात्रों का चयन किया गया है। कॉलेज का कहना है कि चयन प्रक्रिया में पारदर्शिता बरती गई है और किसी भी धार्मिक या क्षेत्रीय भेदभाव का सवाल ही नहीं उठता।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया
जम्मू-कश्मीर इकाई के भाजपा नेताओं ने भी इस मुद्दे पर चिंता जताई है। पार्टी के विधायक आरएस पथानिया ने कहा कि यह संस्थान वैष्णो देवी तीर्थयात्रियों के दान से बना है और इसके चरित्र को ध्यान में रखते हुए प्रवेश नीति पर पुनर्विचार होना चाहिए। दूसरी ओर, कुछ सोशल मीडिया यूजर्स ने इस विवाद को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश करार दिया है। एक यूजर ने ट्वीट में आरोप लगाया कि कुछ संगठन हिंदू-मुस्लिम तनाव को बढ़ावा दे रहे हैं, जबकि दूसरों ने मेरिट आधारित व्यवस्था का समर्थन किया।
स्थिति का आकलन
वर्तमान में, इस विवाद ने जम्मू क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं, जहां हिंदू संगठन मांग कर रहे हैं कि SMVDIME को अल्पसंख्यक संस्थान घोषित कर हिंदू छात्रों के लिए आरक्षण लागू किया जाए। दूसरी ओर, कश्मीर से आए छात्रों का कहना है कि उनका चयन मेरिट के आधार पर हुआ है और धार्मिक आधार पर भेदभाव अस्वीकार्य है। राज्य के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से इस मामले में हस्तक्षेप की मांग तेज हो गई है, और आने वाले दिनों में इस पर और चर्चा होने की संभावना है।

