चाबड़ हाउस, जो मुंबई के कोलाबा इलाके में स्थित यहूदी समुदाय का सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्र था, इस हमले का सबसे क्रूर निशाना बना। दो पाकिस्तानी आतंकवादियों ने यहां घुसकर छह निर्दोष यहूदियों की हत्या कर दी, जिनमें रब्बी गाब्रिएल नोह्र और उसकी पत्नी रिव्का शामिल थे। यह हमला न केवल एक धार्मिक स्थल पर था, बल्कि पूरी मानवता पर प्रहार था। आज इस बरसी पर इजरायल के राजदूत रुवेन अजार ने सोशल मीडिया पर भावुक संदेश साझा कर कहा, “26/11 सिर्फ मुंबई पर नहीं, बल्कि पूरी मानवता पर हमला था। इजरायल भारत के दर्द को समझता है और हमेशा साथ खड़ा रहेगा।” राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, गृह मंत्री अमित शाह और महाराष्ट्र की राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने भी शहीदों को श्रद्धांजलि दी। गेटवे ऑफ इंडिया पर एनएसजी ने ‘नेवरएवर’ थीम के तहत शपथ समारोह आयोजित किया, जहां शहीदों के परिवारों को सम्मानित किया गया।
इस बीच, ग्लोबल पीस ऑनर्स 2025 समारोह में बॉलीवुड सितारे शाहरुख खान ने चाबड़ हाउस के पीड़ितों समेत सभी शहीदों को याद करते हुए कहा, “इनकी कुर्बानी बेकार न जाए, हमें एकजुट होकर आतंक के खिलाफ लड़ना होगा।” यह आयोजन अमृता फडणवीस की अगुवाई में दिव्यज फाउंडेशन ने किया, जिसमें 26/11 के अलावा पहलगाम हमले के पीड़ितों को भी सम्मान दिया गया।
लेकिन 26/11 की यह त्रासदी भारत में मुस्लिम और यहूदी समुदायों के बीच की गहरी विरासत को भी उजागर करती है। भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश है, जहां यहूदियों को सदियों से शांतिपूर्ण आश्रय मिला, बिना किसी बड़े उत्पीड़न के। इतिहास गवाह है कि 973 ईसा पूर्व में यहूदी समुदाय की पहली लहर भारत पहुंची, जब वे मिस्र के उत्पीड़न से भागे। कोचीन (केरल) के बेने इजरायल यहूदी, मुंबई के बेने मेनाशे और महाराष्ट्र के अलीबाग के यहूदी समुदाय 2,000 साल से ज्यादा पुराने हैं। वे हिंदू-मुस्लिम समाज में घुलमिलकर रहे, कभी अलगाव महसूस नहीं किया।
यहूदी और इस्लाम दोनों अब्राहम की संतान हैं—यहूदी इशाक के वंशज, जबकि मुस्लिम इश्माएल के। कुरान और तोराह में समानताएं हैं, जैसे एकेश्वरवाद और मूर्तिपूजा का निषेध। भारत में मुगल काल से लेकर आजादी तक, यहूदी व्यापारी और विद्वान मुस्लिम शासकों के संरक्षण में फले-फूले। उदाहरणस्वरूप, 18वीं सदी में बॉम्बे (मुंबई) के यहूदी समुदाय ने मुस्लिम व्यापारियों के साथ साझेदारी की। 26/11 के बाद तो यह भाईचारा और मजबूत हुआ—मुस्लिम पड़ोसी और नागरिकों ने चाबड़ हाउस के पुनर्निर्माण में हाथ बंटाया। इजरायल के साथ भारत के रणनीतिक संबंध भी इसी सह-अस्तित्व पर टिके हैं, जहां आतंकवाद विरोधी सहयोग प्रमुख है।
आज जब दुनिया में मुस्लिम-यहूदी तनाव की खबरें सुर्खियां बटोर रही हैं, भारत की यह विरासत एक मिसाल है। चाबड़ हाउस के शहीद हमें याद दिलाते हैं कि आतंक की काली छाया कभी धार्मिक भाईचारे को मिटा नहीं सकती। सरकार की ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति के साथ, हमें इस विरासत को संजोकर रखना होगा। शहीदों को बार-बार नमन, और भाईचारे को मजबूत करने का संकल्प!

