मुम्बई पुलिस ने महीनो बाद लौटाई खोई बेटी, आँखों में आंसू, दिल में उम्मीद

Mumbai Police News: 14 मई 2025 की रात छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस (CSMT) पर सोलापुर से आए एक गरीब दंपति अपने बीमार पिता के इलाज के लिए मुंबई आए थे। थकी-हारी माँ की गोद में गुलाबी फ्रॉक पहनी उनकी चार साल की बेटी आरुषि (बदला हुआ नाम : मूल नाम आरुषि) सो गई। माँ ने भी पल भर को आँखें बंद कीं।जब आँख खुली, तो गोद खाली थी। बेटी गायब थी।

छह महीने तक माँ-बाप पुलिस स्टेशन के चक्कर काटते रहे। एक ही झुर्रीदार फोटो लेकर लोकल ट्रेनों में, झोपड़पट्टियों में, अनाथालयों में लोगों को दिखाते रहे। पिता रातों को सो नहीं पाते थे, माँ खाना छोड़ चुकी थीं। दोनों बस एक नाम पुकारते थे – “आरुषि… आरुषि…”
वहीं हजार किलोमीटर दूर वाराणसी में जून महीने में रेलवे ट्रैक के पास एक छोटी-सी बच्ची रोती हुई मिली थी। उसके पैरों में चप्पल तक नहीं थे। अनाथालय वालों ने उसे खाना-कपड़ा दिया और नया नाम रख दिया – “काशी”। वह जल्दी हँसने लगी, क्योंकि बच्चे हमेशा हँसते हैं, लेकिन रात को कंबल को कसकर पकड़कर “आई… आआई…” पुकारती। कोई समझ नहीं पाता था कि वह मराठी में “माँ” कह रही है।
मुम्बई पुलिस ने केस बंद नहीं किया था। आरुषि की तस्वीर वाले पोस्टर लोकमान्य तिलक टर्मिनस से भुसावल, भुसावल से वाराणसी कैंट तक हर प्लेटफॉर्म पर चिपकाए गए। अखबारों में विज्ञापन छपे, दरवाजे-दरवाजे खटखटाए गए। कई पुलिसवाले अपनी शर्ट की जेब में उस बच्ची की फोटो रखकर घूमते थे, जैसे अपनी बेटी हो।

फिर 13 नवंबर को वाराणसी के एक स्थानीय पत्रकार की नजर पोस्टर पर पड़ी। उसे याद आया कि अनाथालय में एक बच्ची रात को मराठी में माँ पुकारती है। उसने फोन घुमाया।
अगली सुबह मुम्बई क्राइम ब्रांच के एक इंस्पेक्टर वाराणसी पहुँचे। लैपटॉप खोला, वीडियो कॉल लगाई। स्क्रीन पर वही गुलाबी फ्रॉक वाली बच्ची दिखी। मुंबई में खड़े माँ-बाप ने जैसे ही बेटी को देखा, माँ बिना आवाज के गिर पड़ी। पिता बस बार-बार बोलते रहे, “ये मेरी आरुषि है… मेरी बच्ची…”
14 नवंबर, बाल दिवस के दिन बच्ची को विशेष विमान से मुंबई लाया गया।

सबसे बड़ी बात यह है की आनंद महिंद्रा ने भी एक्स पर धन्यवाद दिया
एयरपोर्ट पर पूरी क्राइम ब्रांच मौजूद थी। गुब्बारे थे, नया आसमानी फ्रॉक था। लेकिन जैसे ही बच्ची बाहर निकली और खाकी वर्दी का समुद्र देखा, वह दौड़ी।
भागी नहीं, दौड़ी सीधे पुलिसवालों की ओर।
छोटे-छोटे पाँव, फैली हुई बाहें। सबसे नजदीक वाले इंस्पेक्टर के गले लग गई और जोर से हँस पड़ी – वो हँसी जो छह महीने से दुनिया में गायब थी।

वो सख्त से सख्त पुलिसवाला भी आँखें पोंछने लगा। उसने बच्ची को गोद में उठाया, बच्ची ने गले लपेट लिया जैसे अपना हो।
माँ-बाप रोते-रोते चल नहीं पा रहे थे।
तो पुलिसवालों ने उनकी बेटी को गोद में उठाकर माँ-बाप तक पहुँचाया।
माँ बार-बार उसका चेहरा छूती रही, जैसे सपना न टूट जाए।
पिता घुटनों पर बैठ गए और बच्ची के छोटे-छोटे पाँवों पर माथा टेककर रोने लगे।

और वो नन्ही बच्ची?
बस मुस्कुराती रही। कभी माँ-बाप को देखती, कभी पुलिस अंकल को। उसे क्या पता कि उसने एक पूरी पुलिस स्टेशन को रोते-हँसते, दुआ माँगते परिवार में बदल दिया था।
छह महीने का अंधेरा एक झटके में खत्म।
आज आरुषि घर लौट आई है।
अपराधी अभी बाहर है, वो कल की लड़ाई है।
आज माँ फिर लोरी सुना रही है।
आज पिता नींद में मुस्कुरा रहे हैं।
और मुम्बई में कुछ पुलिसवाले हैं जो जीवनभर नहीं भूलेंगे कि चार साल की बच्ची की गोद में कितना वजन होता है – एक पूरी जिंदगी का वजन।
कभी-कभी वर्दी सिर्फ चोर नहीं पकड़ती,
कभी-कभी वर्दी खोई हुई बेटियों को माँ की गोद तक वापस ले आती है।
मुम्बई पुलिस…
आपने सिर्फ एक बच्ची नहीं लौटाई,
आपने उम्मीद लौटाई, खुशी लौटाई, जिंदगी लौटाई।
इसके लिए ही आप दुनिया की सबसे बेहतरीन पुलिस फोर्सेस में से एक हैं।
सादर नमन। 🙏

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