चोंथिरोट पिछले दो साल से गंभीर बीमारी के कारण बिस्तर पर थीं। उनके 57 वर्षीय भाई मोंगकोल ने बताया कि 23 नवंबर की सुबह बहन बेहोश पड़ी मिलीं और उनकी सांसें रुक सी गई थीं।
डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था। चोंथिरोट ने जिंदा रहते हुए अपनी इच्छा जताई थी कि मृत्यु के बाद उनके अंग दान कर दिए जाएं। इसी उद्देश्य से मोंगकोल ने उन्हें ताबूत में रखकर बैंकॉक के एक प्रमुख अस्पताल ले जाने का फैसला किया।
लेकिन अस्पताल ने आधिकारिक डेथ सर्टिफिकेट न होने की वजह से शव स्वीकार नहीं किया। मजबूरी में भाई ने उन्हें फित्सानुलोक के एक गरीबों के लिए मुफ्त अंतिम संस्कार वाले मंदिर ले जाया, जो लगभग 500 किलोमीटर दूर है।
मंदिर प्रबंधक पैराट सूदथूप ने बताया, “हम ताबूत को मुख्य हॉल में ले जाने की तैयारी कर रहे थे, ताकि पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार दाह संस्कार शुरू हो सके। अचानक ताबूत के अंदर से हल्की दस्तक सुनाई दी, जैसे कोई लात मार रहा हो। हम सब सन्न रह गए। कर्मचारी थम्मनुन ने फौरन ताबूत खोला तो चोंथिरोट अंदर जिंदा थीं। वे इधर-उधर करवट ले रही थीं और सांस ले रही थीं।” वीडियो फुटेज में साफ दिख रहा है कि ताबूत खुलते ही महिला धीरे-धीरे उठने की कोशिश कर रही हैं, जबकि परिवार वाले आश्चर्य और खुशी के मिश्रित भावों से घिरे नजर आते हैं।
मोंगकोल ने अपनी बहन को जिंदा देखकर आंसू बहाते हुए कहा, “मैंने सोचा था कि सब खत्म हो गया, लेकिन यह चमत्कार है। मैंने सभी जरूरी दस्तावेज इकट्ठे कर लिए थे, लेकिन यह अनुभव जीवनभर भूल नहीं पाऊंगा।” मंदिर कर्मचारियों ने तुरंत चोंथिरोट को नजदीकी अस्पताल पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने उनकी हालत स्थिर बताई। चिकित्सकों का कहना है कि यह ‘कैटालेप्सी’ नामक दुर्लभ स्थिति हो सकती है, जिसमें व्यक्ति को मृत प्रतीत होता है लेकिन हृदय और मस्तिष्क सक्रिय रहते हैं। थाईलैंड में ऐसी घटनाएं पहले भी हो चुकी हैं—कुछ महीने पूर्व 85 वर्षीय पुआ श्रीफुएंग को भी अंतिम संस्कार से पहले जिंदा पाया गया था।
यह घटना न केवल परिवार के लिए राहत की सांस है, बल्कि चिकित्सा जगत के लिए भी एक सबक। विशेषज्ञों का मानना है कि मृत्यु की पुष्टि के लिए अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए, खासकर बुजुर्गों और लंबे समय से बीमार मरीजों के मामले में। फिलहाल, चोंथिरोट की हालत सुधर रही है और परिवार आभार प्रकट कर रहा है कि समय रहते यह ‘दस्तक’ सुन ली गई।

