पुरुष बांझपन के पीछे प्रमुख कारण
डॉ. पिन्नी के अनुसार, भारत में पुरुष बांझपन के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, खासकर शहरी क्षेत्रों में। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) के अनुसार, वैश्विक स्तर पर प्रजनन आयु के छह में से एक जोड़े को बांझपन की समस्या हो रही है, और भारत में यह संख्या 2.2 से 3.3 करोड़ जोड़ों तक पहुंच चुकी है। प्रमुख कारणों में शामिल हैं:
• जीवनशैली संबंधी कारक: तनाव, धूम्रपान, अत्यधिक शराब का सेवन, मोटापा और अनियमित नींद। डॉ. पिन्नी बताते हैं, “तनावपूर्ण कामकाजी जीवन और खराब आहार स्पर्म की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं। स्मार्टफोन या लैपटॉप का ज्यादा इस्तेमाल भी टेस्टिस के तापमान को बढ़ा सकता है।”
• पर्यावरणीय प्रभाव: प्रदूषण और रसायनों का बढ़ता संपर्क। 2025 तक के आंकड़ों के मुताबिक, पर्यावरणीय प्रदूषक स्पर्म काउंट को 20-30 प्रतिशत तक कम कर रहे हैं।
• चिकित्सकीय कारण: वेरिकोसील (टेस्टिस के आसपास नसों का फैलाव), हार्मोनल असंतुलन (जैसे टेस्टोस्टेरोन की कमी), जेनेटिक विकार (क्लाइनफेल्टर सिंड्रोम), संक्रमण या सर्जरी के बाद की जटिलताएं। डॉ. पिन्नी ने वेरिकोसील पर जोर देते हुए कहा, “यह टेस्टिस के तापमान को बढ़ाकर स्पर्म उत्पादन को बाधित करता है, जो पुरुष बांझपन का एक प्रमुख छिपा कारण है।”
ये कारक स्पर्म की संख्या (ओलिगोस्पर्मिया), गतिशीलता (एस्थेनोजूस्पर्मिया) या आकार (टेराटोजूस्पर्मिया) को प्रभावित करते हैं, जिससे गर्भधारण मुश्किल हो जाता है।
समस्या की पहचान के लिए जरूरी जांचें
डॉ. पिन्नी की सलाह है कि अगर एक साल तक प्रयास के बावजूद गर्भधारण न हो, तो पुरुषों को बिना देरी के जांच करानी चाहिए। प्रमुख टेस्ट इस प्रकार हैं:
• सीमेन एनालिसिस: स्पर्म की संख्या, गतिशीलता और आकार की जांच। यह बुनियादी टेस्ट है, जो 80 प्रतिशत मामलों में समस्या का पता लगाता है।
• हार्मोनल टेस्टिंग: टेस्टोस्टेरोन, FSH और अन्य हार्मोन्स के स्तर की जांच, जो असंतुलन को उजागर करती है।
• जेनेटिक टेस्टिंग: क्रोमोसोमल असामान्यताओं के लिए, खासकर गंभीर मामलों में।
• इमेजिंग टेस्ट: अल्ट्रासाउंड या MRI से वेरिकोसील या ब्लॉकेज का पता लगाना।
• टेस्टिकुलर बायोप्सी: अगर सीमेन में स्पर्म न हों, तो टेस्टिस से स्पर्म उत्पादन की जांच।
ये टेस्ट किफायती हैं और भारत के प्रमुख अस्पतालों में उपलब्ध हैं। डॉ. पिन्नी कहते हैं, “जल्दी जांच से 70 प्रतिशत मामलों में आसान उपचार संभव हो जाता है।”
उपलब्ध उपचार विकल्प
सौभाग्य से, पुरुष बांझपन का कोई भी मामला असाध्य नहीं है। डॉ. पिन्नी ने बताया कि उपचार कारण पर निर्भर करता है, और सफलता दर 50-70 प्रतिशत तक है। प्रमुख विकल्प:
• जीवनशैली सुधार: वजन नियंत्रण, धूम्रपान छोड़ना, संतुलित आहार और व्यायाम। “ये बदलाव अकेले स्पर्म क्वालिटी में 30 प्रतिशत सुधार ला सकते हैं,” उन्होंने कहा।
• दवाइयां और हार्मोन थेरेपी: हार्मोनल असंतुलन के लिए इंजेक्शन या गोलियां, जो स्पर्म उत्पादन बढ़ाती हैं।
• सर्जिकल उपचार: वेरिकोसीलेक्टॉमी (वेरिकोसील की सर्जरी), वासेक्टॉमी रिवर्सल या ब्लॉकेज हटाने की प्रक्रिया।
• सहायक प्रजनन तकनीक (ART):
• IUI (इंट्रायूटेराइन इंसेमिनेशन): स्वस्थ स्पर्म को सीधे गर्भाशय में डालना।
• IVF/ICSI: इन विट्रो फर्टिलाइजेशन के साथ इंट्रासाइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन, जहां एक स्पर्म को अंडे में इंजेक्ट किया जाता है। भारत में IVF की सफलता दर 40-50 प्रतिशत है।
• स्पर्म रिट्रीवल: टेस्टिस से सर्जरी द्वारा स्पर्म निकालना।
डॉ. पिन्नी ने जोर दिया कि स्पर्म फ्रीजिंग जैसे आधुनिक विकल्प पुरुषों को भविष्य के लिए सुरक्षित रखते हैं। भारत में ये उपचार किफायती हैं, जहां IVF का खर्च 1-2 लाख रुपये तक होता है।
जागरूकता का संदेश
पुरुष बांझपन को लेकर सामाजिक कलंक अभी भी बरकरार है, लेकिन डॉ. पिन्नी कहते हैं, “यह पुरुषत्व से जुड़ा नहीं, बल्कि जैविक समस्या है। जोड़े साथ मिलकर सामना करें।” विशेषज्ञों का आह्वान है कि नवंबर के इस मास में पुरुष स्वास्थ्य जांच को प्राथमिकता दें। अगर आप या आपका साथी इस समस्या से जूझ रहे हैं, तो तुरंत यूरोलॉजिस्ट से संपर्क करें। स्वस्थ भारत के लिए, जागरूकता ही पहला कदम है।

