गांव में
तुगलकपुर गांव की तंग गलियों में प्राइमरी स्कूल टीचर सुमन लता सुबह 8:30 बजे से घर-घर जा रही हैं। उनके कंधे पर काला बैग है जिस पर लिखा है – “भारत निर्वाचन आयोग विशेष प्रगाढ़ पुनरीक्षण”।
सुमन बताती हैं, “लोगों को 2003 की वोटर लिस्ट में अपना या अपने माता-पिता/दादा-दादी का नाम ढूंढकर बताना पड़ रहा है। ज्यादातर लोगों को याद ही नहीं कि 22 साल पहले उन्होंने कहां वोट डाला था।”
30 साल की अमन कौर आंगनबाड़ी केंद्र में चारपाई पर बैठी फॉर्म भर रही थीं। सुमन ने व्हाइटनर लगाकर गलत कॉलम में लिखी बात सुधारी और समझाया, “आप 2003 में वोटर ही नहीं थीं। आपको अपने पिता या माता या नाना-नानी में से किसी एक का 2003 का रिकॉर्ड दिखाना होगा।”
किसी का जन्मतिथि आधार और वोटर आईडी में अलग है, किसी ने ससुराल आने के बाद अपने मायके का रिकॉर्ड दे दिया, किसी ने दोनों कॉपी खो दी। सुमन हर सवाल का जवाब देती हुई, फोन पर दूसरे लोगों की समस्याएं सुलझाती हुई आगे बढ़ती रहीं।
हाई-राइज़ सोसाइटी
दूसरी तरफ पूर्वांचल रॉयल सिटी सोसाइटी के क्लबहाउस में BLO खुशबू राय (जो खुद इसी सोसाइटी में रहती हैं) सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक डटी रहीं। नीले सोफे पर बुजुर्ग, युवा, किरायेदार – सब पुराने कागज लिए लाइन में लगे थे।
59 साल के बुद्ध पाल पिछले कई साल से वोट नहीं डाला। दिल्ली के बिजवासन, महिपालपुर, करोल बाग और गुरुग्राम में रह चुके हैं। उनके पास 2008 के कागजात हैं, 2003 के नहीं। खुशबू ने चुनाव आयोग की वेबसाइट खोली, लेकिन सर्च नहीं हो रहा। “साइट ही नहीं खुल रही, अब क्या करें?”
65 साल की रिटायर्ड सिविल सर्वेंट आर्यमा सन्याल का वोटर कार्ड जयपुर का है, बेटे-बहू का दूसरे राज्य का। वे बोलीं, “हम यहीं रहते हैं, यहीं वोट डालना चाहते हैं।” खुशबू ने समझाया – पहले जयपुर से नाम कटवाना पड़ेगा।
43 साल के संजय वर्मा ने हताशा से कहा, “2003 में मैंने वोट ही नहीं डाला था। माता-पिता का भी कुछ याद नहीं। फिर क्या भरें?”
ग्रेटर नॉएडा अथॉरिटी से नियुक्त BLO प्रीतम सिंह कहते हैं, “कभी-कभी 10-10 बार बेल बजानी पड़ती है, लेकिन हम तब तक इंतज़ार करते हैं जब तक कोई दरवाजा न खोले। कच्चा काम नहीं करना है।”
खुशबू राय के घर में एक पूरा कमरा कागजों से भरा पड़ा है। उनकी बेटी का बोर्ड एग्जाम चल रहा है, लेकिन वे सुबह से रात तक SIR ड्यूटी में जुटी हैं। स्कूल ने एक घंटे आने को कहा तो मना कर दिया। “मैं पहले से ही ओवरलोडेड हूं।”
आखिर यह SIR इतना मुश्किल क्यों?
चुनाव आयोग का उद्देश्य फर्जी/डुप्लीकेट/मृत/स्थानांतरि
• 22 साल पुराना डेटा किसी के पास नहीं है
• बार-बार पता बदलने वाले किरायेदार/माइग्रेंट सबसे ज्यादा प्रभावित
• चुनाव आयोग की वेबसाइट बार-बार हैंग हो रही
• एक ही व्यक्ति का डेटा अलग-अलग साल की लिस्ट में अलग-अलग स्पेलिंग में है
मतदाताओं का कहना है कि अगर नया फॉर्म भरवाना ही था तो आधार लिंक या मौजूदा वोटर आईडी के आधार पर आसान प्रक्रिया क्यों नहीं रखी गई?
फिलहाल BLO और मतदाता दोनों थके हुए हैं, लेकिन 4 दिसंबर की डेडलाइन नज़दीक आ रही है। गांव हो या कोंडो – हर जगह एक ही आवाज़ है, “ये फॉर्म इतना पेचीदा क्यों बनाया गया?”

