रिकॉल याचिका क्या है?
सुप्रीम कोर्ट में रिकॉल याचिका एक असाधारण कानूनी उपाय है, जिसके तहत अदालत अपनी ही दी गई अंतिम व्यवस्था या फैसले को पूरी तरह रद्द कर सकती है। यह प्रक्रिया तब इस्तेमाल की जाती है जब फैसले में कोई स्पष्ट त्रुटि (जैसे पूर्व फैसलों की अनदेखी) हो या यह सार्वजनिक हित के खिलाफ हो। अनुच्छेद 137 के तहत सुप्रीम कोर्ट को अपनी व्यवस्थाओं की समीक्षा करने का अधिकार है, लेकिन रिकॉल इससे आगे जाता है—यह फैसले को ‘रिकॉल’ करके मामले को मूल स्थिति में बहाल कर देता है, जैसे फैसला कभी दिया ही न गया हो।
यह प्रक्रिया दुर्लभ है क्योंकि अदालतें अंतिम फैसलों की पवित्रता बनाए रखना चाहती हैं। सुप्रीम कोर्ट के नियमों के अनुसार, रिकॉल तभी संभव है जब फैसले में ‘पेर इंक्यूरियम’ (पूर्ववर्ती फैसलों की अवहेलना) या गंभीर अन्याय हो। उदाहरण के लिए, 2015 में एक हाईकोर्ट ने अंकगणितीय त्रुटि के आधार पर फैसला रिकॉल किया था।
रिकॉल, रिव्यू और क्योरेटिव याचिका में क्या अंतर है?
सुप्रीम कोर्ट में फैसले की समीक्षा के लिए तीन मुख्य उपाय हैं—रिकॉल, रिव्यू और क्योरेटिव याचिका। इनमें मुख्य अंतर इस प्रकार है:
• रिव्यू याचिका: यह सबसे सामान्य उपाय है, जो संविधान के अनुच्छेद 137 के तहत उपलब्ध है। फैसले में ‘स्पष्ट त्रुटि’ (एरर अप्पारेंट ऑन द फेस ऑफ रिकॉर्ड) होने पर दायर की जाती है। इसे फैसले के 30 दिनों के अंदर दायर करना होता है, और यह उसी बेंच के समक्ष सुनवाई के बिना (सर्कुलेशन से) तय होती है। रिव्यू का उद्देश्य फैसले में छोटी सुधार करना है, न कि इसे पूरी तरह उलटना। उदाहरण: 2018 में आईपीसी 498ए के दुरुपयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने रिव्यू स्वीकार किया।
चार फैसलों को फिर से खोलने के पीछे क्या कारण?
18 नवंबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की बेंच (मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई, जस्टिस के विनोद चंद्रन और जस्टिस उज्जल भuyan) ने 2:1 के बहुमत से मई 2025 के ‘वंशक्ति’ फैसले को रिकॉल कर दिया। यह फैसला चार याचिकाओं पर आधारित था, जो 2017 की अधिसूचना और 2021 के कार्यालय ज्ञापी (ओएम) के खिलाफ दायर हुई थीं। इनमें पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी को ‘अवैध’ घोषित किया गया था, क्योंकि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत मंजूरी परियोजना शुरू होने से पहले ही लेनी होती है।
चार फैसलों का संदर्भ:
1. वंशक्ति बनाम भारत संघ: मुख्य याचिका, जिसमें पूर्वव्यापी मंजूरी को ‘पर्यावरणीय न्याय के खिलाफ’ बताया गया।
2. इलेक्ट्रोस्टील स्टील्स: औद्योगिक परियोजना पर मंजूरी का मामला।
3. पाहवा प्लास्टोकेम: प्लास्टिक उद्योग से जुड़ी याचिका।
4. डी. स्वामी: सार्वजनिक हित याचिका, जो मंजूरी प्रक्रिया की वैधता पर सवाल उठाती थी।
रिकॉल के कारण:
• पूर्व फैसलों की अनदेखी: मुख्य न्यायाधीश गवई ने कहा कि मई का फैसला पूर्व सुप्रीम कोर्ट फैसलों (जैसे संतोष कुमार बनाम गोवर्नमेंट ऑफ त्रिपुरा, 2021) को नजरअंदाज कर गया, जहां सीमित पूर्वव्यापी मंजूरी को अनुमति दी गई थी।
• सार्वजनिक हित: फैसले से 24 केंद्रीय परियोजनाएं (8,293 करोड़ रुपये) और 29 राज्य परियोजनाएं (11,168 करोड़ रुपये) प्रभावित हो रही थीं, जिनमें अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, एयरपोर्ट और जल शोधन संयंत्र शामिल हैं। रियल एस्टेट डेवलपर्स एसोसिएशन (क्रेडाई) ने 99,000 परियोजनाओं के प्रभाव का हवाला दिया।
• संतुलित दृष्टिकोण: जस्टिस चंद्रन ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण और विकास दोनों महत्वपूर्ण हैं; मई का फैसला ‘सबसे पहले तोड़ो, बाद में मंजूरी दो’ की नीति को बढ़ावा देता था।
• अल्पमत राय: जस्टिस भuyan (मई फैसले के सह-लेखक) ने असहमति जताई, कहा कि पूर्वव्यापी मंजूरी पर्यावरण कानूनों का उल्लंघन है और केंद्र सरकार ने खुद रिव्यू नहीं मांगा।
इस रिकॉल से मूल चार याचिकाएं फिर से सुनवाई के लिए बहाल हो गई हैं। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह पूर्वव्यापी मंजूरी की मेरिट पर फैसला नहीं है, बल्कि मई फैसले की कमियों पर।
प्रभाव और आगे की राह
यह फैसला पर्यावरण कानून में नया मोड़ लाता है। पर्यावरणविदों का कहना है कि इससे उल्लंघनों को प्रोत्साहन मिलेगा, जबकि उद्योग इसे विकास के लिए राहत मान रहे हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, रिकॉल तकनीकी आधार पर हुआ, न कि पूर्वव्यापी मंजूरी का पूर्ण समर्थन। मामला अब बड़ी बेंच के समक्ष जा सकता है।

