विकास पुरुष, सुशासन बाबू, क्या पलायन को रोक पाएंगे?

20 Years of Sushasan Babu News: बिहार की राजनीति में ‘सुशासन बाबू’ के नाम से मशहूर नीतीश कुमार ने एक बार फिर इतिहास रच दिया है। हाल ही में संपन्न विधानसभा चुनावों में एनडीए की प्रचंड जीत के बाद वे दसवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं। 2000 से अब तक बिहार की कमान संभाल चुके नीतीश के राजनीतिक सफर में उतार-चढ़ाव तो रहे, लेकिन विकास की रफ्तार ने उन्हें जनता का भरोसा दिलाया। उनके कार्यकाल में बिहार ने सड़कों, बिजली, शिक्षा और कानून-व्यवस्था में लंबी छलांग लगाई, लेकिन पलायन का दर्द आज भी बिहारियों को परेशान कर रहा है। आइए, नजर डालते हैं उनके कार्यकाल, उपलब्धियों और चुनौतियों पर।

कितनी बार और कब संभाली कमान?
नीतीश कुमार का मुख्यमंत्री पद पर आना-जाना बिहार की राजनीति का एक अनोखा अध्याय रहा है। उन्होंने कुल नौ पूर्ण या आंशिक कार्यकाल पूरे किए हैं, और दसवां जल्द ही शुरू होने वाला है। यहां संक्षिप्त नजर:
• पहला कार्यकाल (मार्च 2000): मात्र सात दिनों का रहा। एनडीए के समर्थन से सत्ता में आए, लेकिन बहुमत साबित न कर पाने पर इस्तीफा दे दिया।
• दूसरा कार्यकाल (नवंबर 2005-नवंबर 2010): 2005 के चुनावों में आरजेडी को हराकर पूर्ण बहुमत हासिल किया। यह उनका पहला लंबा कार्यकाल था, जहां सुशासन की नींव पड़ी।
• तीसरा कार्यकाल (नवंबर 2010-मई 2014): 2010 के विधानसभा चुनावों में एनडीए की भारी जीत। विकास पर फोकस के साथ चार साल पूरे किए, लेकिन 2014 लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन पर इस्तीफा।
• चौथा कार्यकाल (फरवरी 2015-मई 2015): जीतन राम मांझी के इस्तीफे के बाद संक्षिप्त वापसी। महागठबंधन के साथ सत्ता में आए।
• पांचवां कार्यकाल (नवंबर 2015-जुलाई 2017): 2015 चुनावों में महागठबंधन की जीत। लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों पर गठबंधन तोड़ा।
• छठा कार्यकाल (जुलाई 2017-नवंबर 2020): एनडीए के साथ वापसी। महागठबंधन से अलग होकर फिर सत्ता।
• सातवां कार्यकाल (नवंबर 2020- अगस्त 2022): 2020 चुनावों में एनडीए की जीत। उपमुख्यमंत्री सुशील मोदी के साथ।
• आठवां कार्यकाल (अगस्त 2022-जनवरी 2024): महागठबंधन में वापसी, लेकिन फिर एनडीए की ओर लौटे।
• नौवां कार्यकाल (जनवरी 2024-नवंबर 2025): एनडीए के साथ मजबूत सरकार। 2025 चुनावों में भारी जीत के बाद दसवां कार्यकाल शुरू।

कुल मिलाकर, नीतीश के नेतृत्व में बिहार ने 20 सालों में कई गठबंधनों का दौर देखा, लेकिन उनकी कुर्सी पर कायम रहने की कला ने उन्हें ‘पलटी मार’ नेता का तमगा दिलाया।

कार्यकाल में कितना काम हुआ?
नीतीश कुमार के आने से पहले बिहार ‘बिमारू’ राज्यों की श्रेणी में था—कानून-व्यवस्था ध्वस्त, सड़कें टूटी, बिजली का नामोनिशान नहीं। लेकिन 2005 के बाद ‘सुशासन’ मॉडल ने चमत्कार कर दिखाया। राज्य का बजट 2004-05 में मात्र 24,000 करोड़ था, जो अब 3.16 लाख करोड़ से ज्यादा हो गया। यहां प्रमुख उपलब्धियां:
• इंफ्रास्ट्रक्चर का जादू: सैकड़ों गांवों में बिजली पहुंचाई, हाईवे और एक्सप्रेसवे बनाए। पटना में निवेश बढ़ा, जिससे निर्माण क्षेत्र में रोजगार के अवसर पैदा हुए। ऐतिहासिक इमारतों का जीर्णोद्धार किया, पर्यटन को बढ़ावा मिला।
• शिक्षा क्रांति: 1 लाख से ज्यादा स्कूल शिक्षकों की नियुक्ति, लड़कियों की साक्षरता दर आधी हुई। साइकिल योजना से लाखों लड़कियां स्कूल पहुंचीं। 2024-25 में 1.8 लाख शिक्षकों का ट्रांसफर डिजिटल हुआ। आउट-ऑफ-स्कूल बच्चों की संख्या घटी।
• महिला सशक्तिकरण: ‘जीविका’ प्रोजेक्ट (2006-07) से 10 लाख सेल्फ-हेल्प ग्रुप बने, 1.4 करोड़ महिलाएं आत्मनिर्भर। 50% पंचायत आरक्षण, शराबबंदी (हालांकि विवादास्पद)। ‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ से 1.21 करोड़ महिलाओं को 10,000 रुपये ट्रांसफर।
• कानून-व्यवस्था: 70,000 से ज्यादा अपराधी जेल पहुंचे। डॉक्टरों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर तैनाती सुनिश्चित की। महादलितों के लिए विशेष योजनाएं।
• आर्थिक उछाल: प्रति व्यक्ति आय दोगुनी, जीडीपी ग्रोथ गुजरात के करीब। ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन से रोजगार सृजन में बिहार अव्वल।
विशेषज्ञ मानते हैं कि नीतीश ने जाति से ऊपर उठकर विकास का एजेंडा चलाया, जिससे बिहार राष्ट्रीय औसत से बेहतर प्रदर्शन करने लगा।

पलायन का दर्द
विकास के बावजूद पलायन बिहार की सबसे बड़ी विडंबना बनी हुई है। नीतीश के कार्यकाल में कुछ कमी आई—2005 के बाद 25-30% घटा, क्योंकि स्थानीय रोजगार बढ़े—लेकिन समस्या जड़ से नहीं सुलझी।
• आंकड़े: हर साल 75 लाख लोग (राज्य की 7% आबादी) रोजगार के लिए पलायन करते हैं। कुल 2.9 करोड़ बिहारी दूसरे राज्यों में काम कर रहे हैं। बिहार उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर है। युवाओं (15-29 साल) में बेरोजगारी दर 23.2% (राष्ट्रीय औसत 15.9%)।
• कारण: प्राइवेट जॉब्स की कमी, कृषि पर निर्भरता (आधी आबादी), औद्योगिक विकास धीमा। विपक्ष का आरोप है कि 20 सालों में नीतीश ने पलायन रोकने के वादे पूरे नहीं किए।
• प्रयास: नीतीश ने 1 करोड़ युवाओं को नौकरियां देने का वादा किया है। कौशल विकास योजनाएं, शिक्षा लोन (4 लाख तक) चला रही हैं। लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं, उद्योगीकरण तेज करना होगा।

आगे की राह
2025 चुनावों में एनडीए की जीत ने नीतीश को मजबूत बनाया, लेकिन बेरोजगारी, पलायन और गरीबी अब भी चुनौतियां हैं। विश्लेषकों का मानना है कि अगले पांच सालों में औद्योगिकरण, शिक्षा और शहरीकरण पर फोकस से बिहार टॉप-10 राज्यों में शामिल हो सकता है। नीतीश की ‘लाखपति दीदी’ योजना और युवा रोजगार वादे उम्मीद जगाते हैं।

बिहार के सियासी सफर में नीतीश कुमार एक अध्याय हैं—विकास के प्रतीक, लेकिन पलायन के सवालों से जूझते। क्या उनका दसवां कार्यकाल बिहार को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा? वक्त ही बताएगा।

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