अपराध से सुधार तक का सफर
योगेंद्र सिंह की जिंदगी 20 जून 2010 को उस घटना से बदल गई, जब उनकी भाभी की मौत हो गई। इस मामले में परिवार पर हत्या का आरोप लगा और 1 सितंबर 2012 को सतना की अदालत ने योगेंद्र, उनके बड़े भाई राजेंद्र बहादुर सिंह, माता सरस्वती देवी, पिता लक्ष्मण सिंह और बहन अंजू सिंह को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। बाद में अपील में भाई राजेंद्र और बहन अंजू दोषमुक्त होकर रिहा हो गए। माता सरस्वती देवी को पिछले साल स्वास्थ्य कारणों से घर भेजा गया, लेकिन कुछ दिनों बाद उनका निधन हो गया। पिता लक्ष्मण सिंह अभी भी सतना जेल में सजा काट रहे हैं और उनकी रिहाई अगले 12 महीनों में होने की उम्मीद है।
जेल प्रवेश के बाद योगेंद्र ने हार नहीं मानी। उन्होंने पढ़ाई को अपना सहारा बनाया। इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (IGNOU) से हिंदी और इतिहास में डबल एमए की डिग्री हासिल की। इसके अलावा, भोज ओपन यूनिवर्सिटी से 2024 में ‘श्री रामचरित मानस से सामाजिक विकास’ में डिप्लोमा पूरा किया। हिंदी-अंग्रेजी टाइपिंग और कंप्यूटर डिप्लोमा भी उनके खाते में जुड़े।
अच्छा आचरण: खुली जेल और कोचिंग का मौका
योगेंद्र के अच्छे व्यवहार को देखते हुए उन्हें सतना की ‘खुली जेल’ में शिफ्ट किया गया। यहां से उन्होंने शहर के एक निजी कोचिंग संस्थान में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। हर महीने करीब 5,000 रुपये की कमाई वे घर भेजते थे, जिससे परिवार का भरण-पोषण होता रहा। जेल प्रशासन के अनुसार, यह सुविधा केवल चुनिंदा कैदियों को मिलती है जो सुधार के पथ पर चलते हैं।
रिहाई का भावुक पल
शनिवार को सतना जेल अधीक्षक लीना कोष्टा ने योगेंद्र सिंह के अलावा मैहर निवासी अरुण केसरवानी और पन्ना के कल्लू उर्फ कलुआ चौधरी को रिहा किया। रिहाई के समय जेल प्रशासन ने सभी को श्रीमद्भागवत गीता की प्रति और एक पौधा भेंट कर नई जिंदगी की शुभकामनाएं दीं। कोष्टा ने कहा, “अच्छे आचरण और सुधार की मिसाल देने वाले कैदियों को यह मौका मिलता है। योगेंद्र ने जेल में रहकर समाज के लिए प्रेरणा बनने का काम किया।”
प्रदेश स्तर पर रिहाई अभियान
मध्य प्रदेश जेल विभाग के आंकड़ों के अनुसार, जनजातीय गौरव दिवस पर यह रिहाई राज्य सरकार की नीति का हिस्सा है। इससे पहले स्वतंत्रता दिवस पर 177 कैदियों को रिहा किया गया था, लेकिन गंभीर अपराधों जैसे बलात्कार, हत्या के लिए मौत की सजा बदली गई मामलों में यह सुविधा नहीं मिलती। सतना जेल से रिहा तीनों कैदी आजीवन कारावास की सजा काट चुके थे और उनके आचरण रिपोर्ट उत्कृष्ट रही।
प्रेरणा की मिसाल
योगेंद्र की कहानी अपराध, सजा और पुनर्वास की जीती-जागती मिसाल है। जेल में शिक्षा और रोजगार के अवसर देकर कैदियों को मुख्यधारा में लौटाने की यह पहल मध्य प्रदेश सरकार की सराहनीय कोशिश है। रिहा होने के बाद ‘सिंटू’ अब परिवार के साथ नई शुरुआत करेंगे। उनकी मेहनत साबित करती है कि सही दिशा में प्रयास से जिंदगी बदल सकती है।

