6 दिसंबर की साजिश, बाबरी बरसी पर ‘बदले’ का खौफनाक प्लान

December 6 Conspiracy News: राजधानी दिल्ली के लाल किले मेट्रो स्टेशन के पास 10 नवंबर को हुए कार बम धमाके ने पूरे देश को स्तब्ध कर दिया था। इस विस्फोट में 13 से अधिक निर्दोष लोगों की जान चली गई, जबकि दर्जनों घायल हुए। धमाके की तीव्रता इतनी भयावह थी कि आसपास की गाड़ियां जलकर राख हो गईं और शवों के टुकड़े सड़क पर बिखर गए। लेकिन जांच एजेंसियों के सामने सबसे बड़ा सवाल यह उभरा कि इतने शक्तिशाली विस्फोट के बावजूद सड़क पर कोई गड्ढा क्यों नहीं बना? साथ ही, खुलासा हुआ कि यह धमाका किसी बड़ी साजिश का हिस्सा था, जिसका मुख्य लक्ष्य 6 दिसंबर—बाबरी मस्जिद विध्वंस की 33वीं बरसी—पर दिल्ली समेत कई शहरों में सिलसिलेवार हमले करना था।

धमाके का मंजर
10 नवंबर की शाम करीब 6:52 बजे चांदनी चौक इलाके में एक सफेद हुंडई i20 कार रुकी ही थी कि उसमें जोरदार धमाका हो गया। लाल किले मेट्रो स्टेशन गेट नंबर-1 के ठीक पास यह घटना हुई, जहां बाजार की चहल-पहल चरम पर थी। धमाके की ताकत इतनी थी कि एक व्यक्ति का शव हवा में उछलकर पास के पेड़ पर लटक गया, जबकि कई अन्य के शरीर के अंग सड़क पर बिखर गए। गवाह मोहम्मद दाऊद ने बताया, “धमाका इतना तेज था कि 50 मीटर दूर खड़ी मेरी बाइक हिल गई। चारों तरफ धुआं और चीख-पुकार मच गई। आसपास की गाड़ियां चकनाचूर हो गईं।”

फिर भी, सड़क पर कोई गहरा गड्ढा या क्रेटर नहीं बना। विशेषज्ञों के मुताबिक, इसका कारण विस्फोट की प्रकृति है। प्रारंभिक जांच से पता चला कि यह पारंपरिक IED (इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस) या हाई-एक्सप्लोसिव बम जैसा नहीं था, जो जमीन में गहराई पैदा करता। बल्कि, विस्फोट मुख्य रूप से कार के अंदर केंद्रित था, जो ऊपर ओर चारों ओर फैला। इससे नीचे की सड़क पर दबाव कम पड़ा। जैसे 1995 के ओक्लाहोमा सिटी बमिंग में जमीन पर विस्फोट होने से क्रेटर बना था, वहीं 2010 के पुणे ब्लास्ट में ऊपरी विस्फोट से ऐसा नहीं हुआ।

एनआईए (नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी) के फॉरेंसिक विशेषज्ञों ने पुष्टि की कि अमोनियम नाइट्रेट और अन्य केमिकल्स से बने इस बम ने ऊर्ध्वमुखी दिशा में ऊर्जा छोड़ी, न कि भूमिगत।

इस घटना में मरने वालों में दिल्ली के ही निवासी शामिल थे—कई परिवारों के चिराग बुझ गए। लोक नायक अस्पताल और मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज के शवगृहों पर परिजनों की चीखें गूंज रही थीं। एक पिता ने अपने बेटे का शव देखकर बेसुध हो गए, तो एक दिव्यांग पत्नी पति की तलाश में भटकती रहीं।

जांच में अब तक का सबसे चौंकाने वाला खुलासा यह है कि 10 नवंबर का धमाका किसी अकेले हमले का हिस्सा नहीं था, बल्कि एक व्यापक साजिश का पूर्वाभ्यास था। मुख्य आरोपी डॉक्टर उमर नबी—जो पुलवामा का निवासी है—जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के फरीदाबाद मॉड्यूल से जुड़ा था। मूल योजना अगस्त 2025 में थी, लेकिन देरी के कारण इसे 6 दिसंबर पर शिफ्ट कर दिया गया। इस दिन बाबरी मस्जिद विध्वंस की बरसी पर दिल्ली, फरीदाबाद, कश्मीर और अन्य शहरों में 32 पुरानी कारों से समन्वित धमाके करने का प्लान था।

पुलिस ने बताया कि उमर नबी ने तुर्की यात्रा के बाद गनई के साथ मिलकर अमोनियम नाइट्रेट, पोटेशियम नाइट्रेट और सल्फर जैसे विस्फोटक इकट्ठे किए। 32 पुरानी कारें (जिन्हें पुराने डीलरों से खरीदा गया ताकि ट्रेस न हो) IED से लैस की जा रही थीं।

प्रत्येक कार को PUC और बीमा अपडेट कर ट्रैफिक चेक से बचाया जा रहा था। योजना के चरण थे: टोह लेना, बम वितरण, और अंत में 6-7 जगहों पर एक साथ विस्फोट—जिसमें रासायनिक हमला, सिलसिलेवार ब्लास्ट और 26/11 जैसा अटैक शामिल था। यह सब हिंदू-मुस्लिम दंगे भड़काने के लिए था।

9-10 नवंबर को फरीदाबाद में मुजम्मिल और अदील की गिरफ्तारी और 360 किलो अमोनियम नाइट्रेट जब्ती से उमर घबरा गया। टीवी पर खबर देखकर वह दिल्ली की एक मस्जिद में तीन घंटे छिपा, फिर हड़बड़ी में 10 नवंबर को धमाका कर डाला। एनआईए ने उमर की दूसरी कार (लाल ईकोस्पोर्ट) बरामद कर ली है, और अब तक चार कारें जब्त हो चुकी हैं।

केंद्रीय कैबिनेट ने इसे आधिकारिक तौर पर आतंकी हमला घोषित किया है। पीएम मोदी की अध्यक्षता में हुई CCS बैठक में मृतकों को श्रद्धांजलि दी गई।

जांच का दायरा बढ़ा
फरीदाबाद के अल फलाह यूनिवर्सिटी को मॉड्यूल का केंद्र बताया जा रहा है। गिरफ्तार आठ संदिग्धों से पूछताछ में POK में लश्कर-ए-तैयबा की बैठकें भी सामने आईं, जहां आतंकियों का फूलों से स्वागत हुआ। यह साजिश ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में मसूद अजहर के जीजा की मौत का बदला लेने से जुड़ी हो सकती है।

विपक्ष ने सरकार से सवाल उठाए हैं कि क्या पूर्व चेतावनियां मिली थीं? लेकिन गृह मंत्रालय ने कहा कि खुफिया तंत्र सक्रिय है। अब एनआईए पूरे नेटवर्क को तोड़ने पर जुटी है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर यह साजिश सफल होती, तो नरसंहार का आलम होता।

यह घटना देश की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करती है, लेकिन एक साथ इतने बड़े प्लॉट को नाकाम करना भी एजेंसियों की सफलता है। शोकाकुल परिवारों के लिए न्याय और सुरक्षा का वादा ही एकमात्र सांत्वना है।

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