यह घोषणा गुरुवार को ट्रिब्यूनल ने की, जिसके बाद ढाका में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है।
ट्रिब्यूनल के तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि यह फैसला जुलाई-अगस्त 2024 में हुई छात्र आंदोलन (जुलाई विद्रोह) के दौरान कथित नरसंहार और हिंसा से जुड़े मामलों पर आधारित होगा।
अभियोजन पक्ष ने हसीना और उनके सहयोगियों पर निर्दोष छात्रों और प्रदर्शनकारियों पर व्यवस्थित हमले, हत्या, उकसावे और अन्य अपराधों के आरोप लगाए हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन घटनाओं में करीब 1,400 लोगों की मौत हुई थी, जबकि सैकड़ों घायल हुए।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला 2024 के जुलाई विद्रोह से जुड़ा है, जब छात्रों ने नौकरी कोटे के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। हसीना सरकार पर दमनकारी कार्रवाई का आरोप है, जिसमें पुलिस और सुरक्षाबलों ने कथित रूप से निर्दोषों पर गोलीबारी की। ट्रिब्यूनल ने पांच प्रमुख आरोप तय किए हैं, जिनमें हसीना के 14 जुलाई 2024 के संवाददाता सम्मेलन के बाद हमलों को उकसाना, चांखारपुल क्षेत्र में छह निहत्थे प्रदर्शनकारियों की हत्या और अन्य घटनाएं शामिल हैं। अभियोजन के दस्तावेजों में 8,747 पेज हैं, जिसमें 2,724 पेज शहीदों की सूची के हैं।
पूर्व आईजीपी मामून ने कोर्ट में अपना अपराध कबूल कर लिया है और राज्य साक्षी बन गए हैं। उन्होंने हसीना और कमाल की भूमिका का खुलासा किया है। हसीना और कमाल भारत भाग चुके हैं, जबकि मामून हिरासत में हैं। अभियोजन पक्ष ने सभी के लिए फांसी की सजा की मांग की है, जबकि राज्य-नियुक्त वकील एम. अमीर हुसैन ने बरी होने की उम्मीद जताई है।
सुरक्षा और तनाव बढ़ा
फैसले की तारीख तय होने के बाद ढाका में तनाव बढ़ गया है। हसीना की पार्टी अवामी लीग ने सुबह से शाम तक हड़ताल का आह्वान किया, जिसके चलते सड़कें वीरान हो गईं। शहर के प्रवेश द्वारों पर चेकपॉइंट लगाए गए हैं और सार्वजनिक परिवहन की जांच हो रही है। आईसीटी भवन के आसपास भारी सुरक्षा बल तैनात हैं, जिसमें पुलिस, बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) और सशस्त्र पुलिस शामिल हैं।
पिछले दो दिनों में ढाका में आगजनी और क्रूड बम विस्फोट की 17 से अधिक घटनाएं हुईं, जिनमें ढाका विश्वविद्यालय के पास एक विस्फोट में तीन लोग घायल हो गए। एक मॉल और डॉक्यूमेंट्री स्क्रीनिंग स्थल को निशाना बनाया गया। पुलिस ने अवामी लीग के 44 सदस्यों को गिरफ्तार किया है। विशेषज्ञों का मानना है कि ये घटनाएं हसीना समर्थकों द्वारा फैसले के विरोध में की गई हैं।
हसीना का पक्ष
भारत में निर्वासित हसीना ने आईसीटी को “कंगारू कोर्ट” करार दिया है। आरटी को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा, “यह ट्रिब्यूनल मेरे राजनीतिक विरोधियों द्वारा बनाया गया है, जो अवामी लीग को खत्म करना चाहते हैं। फांसी की मांग अंतरिम सरकार की असुरक्षा दर्शाती है।” संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त और ह्यूमन राइट्स वॉच ने भी फांसी पर रोक लगाने की अपील की है, लेकिन इसे नजरअंदाज किया गया।
राजनीतिक निहितार्थ
आईसीटी मूल रूप से 1971 के मुक्ति संग्राम के अपराधों के लिए स्थापित हुआ था, जिसका इस्तेमाल हसीना के कार्यकाल में जमात-ए-इस्लामी नेताओं के खिलाफ किया गया। अब अंतरिम सरकार ने इसके कानूनी ढांचे में संशोधन कर हसीना पर मुकदमा चलाया है। चीफ एडवाइजर मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली सरकार के लिए यह फैसला ऐतिहासिक होगा, लेकिन इससे राजनीतिक ध्रुवीकरण बढ़ सकता है। अवामी लीग पर प्रतिबंध लगा हुआ है, और हसीना ने वर्चुअल संबोधनों में लोकतंत्र बहाली पर वापसी का वादा किया है।
विश्लेषकों का कहना है कि 17 नवंबर को फैसला आने पर बांग्लादेश में अशांति बढ़ सकती है। अर्थव्यवस्था पर भी असर पड़ रहा है; ढाका स्टॉक एक्सचेंज में गिरावट आई है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय फैसले पर नजर रख रहा है, खासकर भारत और संयुक्त राष्ट्र।
यह फैसला बांग्लादेश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है, जो न्याय और राजनीतिक स्थिरता के बीच संतुलन की परीक्षा लेगा।

