पीड़ित परिवारों का आक्रोश, ‘कानून अंधा है, असली हत्यारा कौन?’

Nithari murder news: देश को सन् 2006 में दहला देने वाले निठारी हत्याकांड के मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली को आज सुप्रीम कोर्ट ने सभी आरोपों से बरी कर दिया। अदालत ने कोली की क्यूरेटिव पिटीशन स्वीकार करते हुए उसे तत्काल रिहा करने का आदेश जारी किया है। कोली, जो 19 वर्षों से जेल में बंद था, अब सभी मामलों से मुक्त हो चुका है। लेकिन यह फैसला नोएडा के निठारी गांव के उन पीड़ित परिवारों के लिए एक और सदमा है, जो आज भी न्याय की आस लगाए बैठे हैं। उनका एक ही सवाल है—अगर कोली और उसके मालिक मोनिंदर सिंह पंढेर निर्दोष हैं, तो आखिर किसने किया यह कांड?

निठारी का काला अध्याय
नोएडा के सेक्टर-31 स्थित निठारी गांव में 29 दिसंबर 2006 को मोनिंदर सिंह पंढेर के डी-5 बंगले के पीछे एक नाले से आठ बच्चों के कंकाल बरामद होने के बाद पूरे देश में सनसनी फैल गई थी। जांच में खुलासा हुआ कि 2005-2006 के बीच यहां 19 बच्चों और युवतियों की क्रूर हत्याएं हुई थीं। ज्यादातर पीड़ित गरीब परिवारों के थे, जो घर-घर जाकर काम मांगते थे। सुरेंद्र कोली, पंढेर का घरेलू नौकर, मुख्य आरोपी बना। कोली पर आरोप था कि उसने इन बच्चों का अपहरण किया, बलात्कार किया, हत्या की और फिर उनके शवों को टुकड़ों में काटकर नाले में फेंक दिया। तोड़फोड़ के दौरान कैनिबलिज्म (मानव मांस खाने) के भी सनसनीखेज दावे सामने आए थे।

पुलिस ने कोली और पंढेर को गिरफ्तार किया। सीबीआई को सौंपे गए केस में गाजियाबाद की विशेष अदालत ने 2009 में दोनों को फांसी की सजा सुनाई। लेकिन कानूनी प्रक्रिया लंबी चली। 2015 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोली की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। फिर 2023 में हाईकोर्ट ने पंढेर को दो मामलों और कोली को 12 मामलों में सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। पंढेर उसी साल अक्टूबर में जेल से बाहर आ गया। सीबीआई और पीड़ित परिवारों ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की, लेकिन 31 जुलाई 2025 को अदालत ने 14 अपीलें खारिज कर दीं।

आज का फैसला कोली के आखिरी बचे मामले का है—15 वर्षीय एक लड़की के बलात्कार और हत्या का। मुख्य न्यायाधीश, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने कहा कि सबूत कमजोर हैं और दोष सिद्ध नहीं हो सका। कोली को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया है, बशर्ते वह किसी अन्य मामले में वांछित न हो। कोली गौतम बुद्ध नगर की लुक्सर जेल में बंद था।

पीड़ित परिवारों का आक्रोश: ‘कानून अंधा है, असली हत्यारा कौन?’

निठारी के पीड़ित परिवारों में यह फैसला एक बम फटा है। एक पीड़ित बच्ची के पिता ने कहा, “पंढेर को बरी होने पर हम दुखी हुए थे। उसने पुलिस के सामने अपना जुर्म कबूला था। अब कोली भी बाहर? अगर ये दोनों निर्दोष हैं, तो 19 साल जेल में क्यों सड़े? जो इन्हें फंसाया, उन्हें फांसी दो। अगर ये हत्यारे नहीं, तो असली हत्यारा कौन है?” ज्यादातर पीड़ित दलित और गरीब थे, और परिवार आज भी आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं।

एक अन्य परिजन ने बताया, “निठारी में आज भी बच्चे डरते हैं। हमने उम्मीद की थी कि कम से कम कोली को सजा मिलेगी। लेकिन अदालत कहती है जांच ‘बोटछेद अप’ (खराब) थी। पुलिस ने सबूत नष्ट कर दिए, सीबीआई फेल हो गई। अब न्याय कहां?” सोशल मीडिया पर भी लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है। एक यूजर ने लिखा, “निठारी के दरिंदे बाहर, लेकिन कानून की आंखें बंद। सत्यमेव जयते कहां?”

जांच पर सवाल: अंग व्यापार की थ्योरी क्यों दब गई?
निठारी कांड की जांच शुरू में पुलिस ने की, लेकिन लापरवाही के कारण सीबीआई को सौंपा गया। कोली के इकबालिया बयानों पर भरोसा किया गया, लेकिन बाद में वे अविश्वसनीय पाए गए। हाईकोर्ट ने 2023 में कहा कि “सबूत इकट्ठा करने के बुनियादी नियमों का उल्लंघन हुआ।” कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि असल में अंग व्यापार का रैकेट था, जो अमीरों को किडनी-लीवर सप्लाई करता था। पंढेर के बंगले से मानव अंगों के निशान मिले थे, लेकिन जांच आगे नहीं बढ़ी। पंढेर ने हमेशा कहा कि वह ज्यादातर बाहर रहता था, और कोली ने सब किया।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यूपी सरकार ने कहा कि वह मामले की समीक्षा करेगी। लेकिन पीड़ित परिवारों को लगता है कि यह सिर्फ बातें हैं। एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, “यह केस साबित करता है कि गरीबों के लिए न्याय कितना मुश्किल है।”

आगे क्या?
कोली की रिहाई के बाद निठारी फिर सुर्खियों में है। क्या सरकार दोबारा जांच कराएगी? या यह काला अध्याय यूं ही दफन हो जाएगा? पीड़ित परिवारों की पुकार है—‘हमारे बच्चों का खून व्यर्थ न जाए।’ निठारी कांड आज भी न्याय व्यवस्था पर एक बड़ा सवालिया निशान है।

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