दिल्ली की दादागीरी ने स्वायत्तता बहस को फिर से भड़काया

Panjab University Campus Students Council News: केंद्र द्वारा सीनेट और सिंडिकेट की संख्या कम करने वाली अधिसूचना वापस लेने के बावजूद, छात्र और किसान बड़े मुद्दों के समाधान तक आंदोलन जारी रखने की कसम खा रहे है।
पंजाब यूनिवर्सिटी पिछले लगभग दो सप्ताह से स्वायत्तता बचाने की मांग को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शनों का केंद्र बनी हुई है। यह विवाद ‘दिल्ली की दादागीरी’ के रूप में उभरा है।

आंदोलन की शुरुआत 28 अक्टूबर को हुई, जब केंद्र सरकार ने पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 का हवाला देते हुए यूनिवर्सिटी की 59 साल पुरानी सीनेट (91 सदस्यों वाली शीर्ष निर्णय लेने वाली संस्था) को घटाकर 31 सदस्य और सिंडिकेट (कार्यकारी निकाय) की संख्या भी कम करने की अधिसूचना जारी की। इसे कई लोग यूनिवर्सिटी को ‘भगवाकरण’ करने, केंद्रीकरण करने और ‘पंजाब के चंडीगढ़ पर दावे को कमजोर करने’ की कोशिश मान रहे हैं।

पंजाब यूनिवर्सिटी कैंपस स्टूडेंट्स काउंसिल (PUCSC) ने इसका विरोध करते हुए अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की घोषणा की। PUCSC महासचिव अभिषेक डागर (SOPU से जुड़े) ने पंजाब यूनिवर्सिटी बचाओ मोर्चा के माध्यम से एक सप्ताह तक चले प्रदर्शनों का नेतृत्व किया। इसमें आम आदमी पार्टी (AAP) के मंत्रियों सहित राजनीतिक दिग्गजों ने भी हिस्सा लिया।

सोमवार (10 नवंबर) को प्रदर्शन उस समय उग्र हो गए जब किसान ट्रैक्टरों के साथ कैंपस पहुंचे, बैरिकेड्स तोड़े और मोहाली-चंडीगढ़ बॉर्डर पर पुलिस से भिड़ गए। संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) के नेता बलवीर सिंह राजेवाल ने कहा, “छात्रों का आंदोलन पंजाब के अधिकारों की लड़ाई को नई ताकत दे रहा है। राजनीतिक नेतृत्व जनता के मुद्दे भूल चुका है। हम पंजाब के पानी, चंडीगढ़ और अब स्वायत्तता के लिए लड़ेंगे।” SKM ने 26 नवंबर को चंडीगढ़ में रैली का ऐलान किया है।

राजनीतिक विवाद और केंद्र का यू-टर्न
मामला राजनीतिक विवाद में बदल गया। मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इसे ‘पंजाब की स्वायत्तता पर BJP का एक और हमला’ बताया। कांग्रेस और शिरोमणि अकाली दल (SAD) ने इसे ‘संघवाद पर सीधा हमला’ और ‘143 साल पुरानी विरासत का क्षरण’ करार दिया। BJP को झटका लगा क्योंकि कुछ महीने पहले ही RSS की छात्र इकाई ABVP ने 50 साल बाद यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव जीते थे।

पंजाब BJP के कार्यकारी अध्यक्ष अश्विनी शर्मा ने कहा, “छात्रों की मांगें पूरी हो गईं। मैंने दिल्ली जाकर केंद्र नेतृत्व से बात की। अब पंजाब के विकास पर ध्यान दें, भावनाएं न भड़काएं। राज्य में पहले ही काफी उथल-पुथल हो चुकी है।”

5 नवंबर को केंद्र ने अधिसूचना वापस लेने का ऐलान किया, लेकिन मिनटों बाद ही दूसरी अधिसूचना जारी कर कहा कि इसे ‘स्थगित’ किया जा रहा है और बाद में लागू होगा। प्रदर्शनों के बढ़ते दबाव के बाद 7 नवंबर को इसे पूरी तरह वापस ले लिया गया।

आंदोलन जारी, सीनेट चुनाव मुख्य मांग
अधिसूचना वापसी के बावजूद PUCSC ने आंदोलन जारी रखने का फैसला किया है। मुख्य मांग पिछले अक्टूबर से लंबित सीनेट चुनाव कराने की है। स्टूडेंट्स फॉर सोसाइटी के अध्यक्ष संदीप कुमार ने चेतावनी दी, “अगर केंद्र देरी की रणनीति अपनाता रहा तो हम यूनिवर्सिटी के प्रशासनिक और परीक्षा ब्लॉक को सामान्य रूप से चलने नहीं देंगे। उम्मीद है जल्द मांगें पूरी होंगी।”

सीनेट और सिंडिकेट की संरचना
• सीनेट: चांसलर (भारत के उपराष्ट्रपति), वाइस-चांसलर, पदेन फेलो (पद के आधार पर) और साधारण फेलो शामिल। पदेन में पंजाब के CM, शिक्षा मंत्री, पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश, चंडीगढ़ और पंजाब के वरिष्ठ अधिकारी शामिल।

• सिंडिकेट: वाइस-चांसलर की अध्यक्षता में, पंजाब और चंडीगढ़ के अधिकारी तथा फैकल्टी द्वारा चुने गए 15 सदस्य।

यह आंदोलन सिर्फ यूनिवर्सिटी की स्वायत्तता तक सीमित नहीं रहा, बल्कि पंजाब के जल, राजधानी और संघीय अधिकारों की व्यापक लड़ाई का प्रतीक बन गया है। छात्र-किसान गठजोड़ ने राजनीतिक दलों को भी सक्रिय कर दिया है।

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