Nithari serial killing news: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को निठारी सीरियल किलिंग मामले के मुख्य आरोपी सुरेंद्र कोली को आखिरी बचे एकमात्र मामले में भी बरी कर दिया। इस फैसले के साथ ही करीब दो दशक पुराने इस भयावह मामले की कानूनी लड़ाई समाप्त हो गई। कोर्ट ने कोली को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया, बशर्ते वह किसी अन्य मामले में वांछित न हो।
चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्य कांत और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने 3 अक्टूबर 2025 को फैसला सुरक्षित रखते हुए टिप्पणी की थी कि एक ही तथ्यों और साक्ष्यों पर आधारित 12 मामलों में बरी होने के बाद एक मामले में सजा बरकरार रखना “न्याय का मजाक” होगा। कोर्ट ने कहा कि इससे “असामान्य स्थिति” पैदा हो रही थी।
यह फैसला कोली की क्यूरेटिव पिटीशन (सुप्रीम कोर्ट में अंतिम कानूनी उपाय) पर सुनाया गया, जो असाधारण परिस्थितियों में ही स्वीकार की जाती है। कोर्ट ने पाया कि बचे हुए मामले में कोली की सजा सिर्फ उनके कथित कबूलनामे और घर के पीछे की गली से बरामद चाकू पर आधारित थी—वही साक्ष्य जो अन्य 12 मामलों में उनकी बरीगी का आधार बने थे।
पृष्ठभूमि:
निठारी कांड 2006-07 में सामने आया था, जब नोएडा के डी-5 घर (व्यापारी मोनिंदर सिंह पंधेर का) के पीछे नाले से कई बच्चों के कंकाल बरामद हुए थे। कोली पंधेर का घरेलू नौकर था। सीबीआई जांच में कोली पर बच्चों को लुभाकर हत्या, बलात्कार, शवों को टुकड़े करने और यहां तक कि नरभक्षण का आरोप लगा। 2005-2007 के बीच 16 मामले दर्ज हुए। ट्रायल कोर्ट ने कोली को 13 मामलों में दोषी ठहराया, जबकि पंधेर को शुरू में दो मामलों में सजा मिली लेकिन बाद में सभी में बरी कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने फरवरी 2011 में एक मामले में कोली की मौत की सजा बरकरार रखी थी, जिसे इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2015 में उम्रकैद में बदल दिया। जुलाई 2025 में कोर्ट ने 12 मामलों में कोली को बरी करते हुए जांच में गंभीर खामियां, अविश्वसनीय साक्ष्य और प्रक्रियात्मक अनियमितताएं गिनाईं। कोर्ट ने कहा कि अभियोजन उचित संदेह से परे अपराध साबित नहीं कर सका। बरामदगी भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 27 के तहत पुष्ट नहीं थी।
सीबीआई ने अंग व्यापार की आशंका की जांच न करने पर हाई कोर्ट के 2023 के बरीगी फैसले को चुनौती दी थी। अब क्यूरेटिव पिटीशन के जरिए सुप्रीम कोर्ट ने अपनी ही पुरानी सजा पलट दी—यह दुर्लभ उदाहरण है।
जेल सुपरिंटेंडेंट को फैसले की तुरंत सूचना देने का आदेश दिया गया। इस फैसले से निठारी कांड की कानूनी गाथा खत्म हो गई, जो देश को झकझोर देने वाली घटनाओं में से एक थी।

