पठान का यह बयान आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयान के संदर्भ में आया है, जिसमें भागवत ने संगठन की देशभक्ति पर जोर दिया था। पठान ने कहा, “मैं जानता हूं कि आरएसएस वही संगठन है जिसने हमारे तिरंगे का 52 साल तक अपमान किया। उन्होंने अपने मुख्यालय पर 52 साल तक तिरंगा नहीं फहराया। यह संगठन प्रतिबंधित था और आज भी पंजीकृत नहीं है।” उन्होंने आगे जोड़ा कि आरएसएस की कथनी और करनी में भारी अंतर है, और यह संगठन केवल नफरत फैलाने का काम करता है।
वारिस पठान का यह बयान पुरानी विवादास्पद बहस को फिर से जीवंत कर रहा है, जो आरएसएस और राष्ट्रीय ध्वज के बीच के ऐतिहासिक संबंधों को लेकर है। ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार, स्वतंत्रता के बाद 1947 और 1950 में आरएसएस के मुख्यालय पर तिरंगा फहराया गया था, लेकिन उसके बाद लगभग 52 वर्षों तक संगठन ने अपने परिसर में भगवा ध्वज को ही प्रमुखता दी।
2002 में ध्वज संहिता में संशोधन के बाद ही आरएसएस ने नियमित रूप से तिरंगा फहराना शुरू किया। विपक्षी दलों ने कई बार इस मुद्दे को उठाया है, खासकर 2022 के ‘हर घर तिरंगा’ अभियान के दौरान। तत्कालीन कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी आरएसएस पर इसी आधार पर ‘राष्ट्र-विरोधी’ होने का आरोप लगाया था।
आरएसएस के प्रवक्ताओं ने हमेशा इन आरोपों का खंडन किया है। संगठन का दावा है कि उसके हर स्वयंसेवक की रग-रग में देशभक्ति है और तिरंगे का सम्मान हमेशा किया गया। हाल ही में 9 नवंबर को नागपुर में एक कार्यक्रम में मोहन भागवत ने कहा था कि आरएसएस को औपचारिक पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि यह एक स्वैच्छिक संगठन है। भागवत ने सभी धर्मों के प्रति समावेशी रवैया अपनाने की बात कही, जिस पर पठान ने तंज कसते हुए कहा कि भाजपा और आरएसएस एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, जो केवल विभाजन फैलाते हैं।
यह विवाद राजनीतिक दलों के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है, खासकर महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के नजदीक आते हुए। AIMIM ने पहले भी आरएसएस की वैचारिकता पर सवाल उठाए हैं, जबकि संगठन अपनी राष्ट्रवादी छवि को मजबूत करने के प्रयास में लगा हुआ है। पठान के बयान पर सोशल मीडिया पर भी प्रतिक्रियाएं तेज हैं, जहां कुछ लोग इसे ऐतिहासिक सत्य बता रहे हैं, तो कुछ इसे राजनीतिक बयानबाजी करार दे रहे हैं।

