घटना का पूरा घटनाक्रम
मोकामा विधानसभा क्षेत्र, जो कभी औद्योगिक केंद्र के रूप में जाना जाता था, अब बाहुबलियों के रक्तरंजित इतिहास के लिए बदनाम है। 30 अक्टूबर को जनसुराज पार्टी के प्रत्याशी पीयूष प्रियदर्शी के समर्थक दुलारचंद यादव प्रचार के दौरान खुशहाल चक के पास थे। अचानक हुई गोलीबारी में दुलारचंद को कई गोलियां लगीं और उनकी मौके पर ही मौत हो गई। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हमलावरों ने अंधाधुंध फायरिंग की, जिससे इलाके में तनाव फैल गया।
दुलारचंद, जो लालू प्रसाद यादव के करीबी माने जाते थे, पर पहले से ही हत्या, रंगदारी और आर्म्स एक्ट जैसे कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। वे 2015 के संजय सिंह हत्याकांड और 2018 के मोकामा थाना कांड से जुड़े रहे। मूल रूप से घोसवरी गांव के किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले दुलारचंद ने ठेकेदारी और कोयला सप्लाई के जरिए अपनी ताकत बढ़ाई थी। इस बार वे जनसुराज के टिकट पर अनंत सिंह के भाई के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे। घटना के बाद शव यात्रा के दौरान भी गोलीबारी की खबरें आईं, जिसने माहौल को और गरमा दिया।
अनंत सिंह की गिरफ्तारी: पुलिस का बड़ा ऐक्शन
हत्याकांड के मुख्य आरोपी के रूप में जेडीयू प्रत्याशी अनंत सिंह (जिन्हें ‘छोटे सरकार’ भी कहा जाता है) पर नामजद एफआईआर दर्ज हुई। 1 नवंबर की देर रात पटना एसएसपी कार्तिकेय शर्मा के नेतृत्व में 150 पुलिसकर्मियों की टीम ने अनंत सिंह को उनके बाढ़ स्थित आवास से गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ के बाद उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। पुलिस अब उन्हें रिमांड पर लेने की तैयारी में है, क्योंकि कई सवाल अनसुलझे हैं—जैसे हमलावरों का काफिला, हथियारों का स्रोत और घटना का मास्टरमाइंड।
बिहार के डीजीपी विनय कुमार ने स्पष्ट किया कि मोकामा में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम थे, लेकिन घटना के बाद सेंट्रल फोर्स और 2,000 से अधिक जवानों ने इलाके को घेर लिया। अब तक 29 गिरफ्तारियां हो चुकी हैं और 80 लोग हिरासत में हैं। वीडियो फुटेज से उपद्रवियों की पहचान जारी है। अनंत सिंह ने गिरफ्तारी के बाद फेसबुक पर पोस्ट किया: “सत्यमेव जयते… अब चुनाव मोकामा की जनता लड़ेगी।”
चुनाव आयोग ने भी सख्ती दिखाई। पटना ग्रामीण एसपी का तबादला कर दिया गया, जबकि बाढ़ एसडीपीओ को निलंबित किया गया। कुल चार बड़े अधिकारियों पर कार्रवाई हुई, जिनमें आईपीएस विक्रम सिहाग भी शामिल हैं।
सियासी रंग: विपक्ष का हमला, एनडीए का बचाव
यह घटना बिहार चुनाव के पहले चरण से ठीक पहले हुई, जिसने कानून-व्यवस्था को मुद्दा बना दिया। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने सिवान की रैली में कहा, “दिनदहाड़े हत्या होती है, नामजद एफआईआर दर्ज होती है, लेकिन आरोपी थाने के सामने से गुजरता है और प्रचार करता है। 40 गाड़ियों का काफिला हथियारों से लैस घूम रहा है। गुंडों को कौन बचा रहा है?” उन्होंने एनडीए सरकार और चुनाव आयोग पर निशाना साधा, “हत्या हुई लेकिन एक भी व्यक्ति पर कार्रवाई नहीं हुई। बिहार में एके-47 का राज चल रहा है।”
कांग्रेस सांसद रंजीत रंजन ने भी कहा, “मोकामा और सिवान जैसी घटनाएं बिहार की जटिल कानून-व्यवस्था की समस्या दर्शाती हैं।” जनसुराज प्रमुख प्रशांत किशोर ने टिप्पणी की, “मृतक आधिकारिक सदस्य नहीं थे, लेकिन हमले की निंदा करते हैं। पुलिस और प्रशासन की विफलता है।”
वहीं, एनडीए ने इसे विपक्ष का षड्यंत्र बताया। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एनडीटीवी पावरप्ले में कहा, “मोकामा जैसी घटनाएं दुखद हैं, लेकिन बिहार की जनता असली मुद्दों को पहचानती है। महागठबंधन सत्ता में आया तो जंगलराज लौटेगा।”
जेडीयू के केंद्रीय मंत्री ललन सिंह अनंत सिंह के लिए प्रचार संभाल रहे हैं। भाजपा सांसद मनोज तिवारी पर बक्सर में हमले की कोशिश हुई, जिसे उन्होंने “मोकामा जैसा कांड” बताते हुए राजद पर आरोप लगाया। पुलिस ने 6 लोगों को गिरफ्तार किया।
प्रियंका गांधी ने बेगूसराय में कहा, “नीतीश-मोदी सरकार ने बिहार को अव्यवस्था और पलायन की भूमि बना दिया।” एक वायरल वीडियो में गोलीबारी का नया फुटेज सामने आया, जो सोशल मीडिया पर तहलका मचा रहा है।
मोकामा का ‘रक्तरंजित अतीत’
मोकामा की मिट्टी खून से लाल होती रही है। 1980 के दशक से अनंत सिंह, सूरजभान, सोनू-मोनू और टाल जैसे बाहुबलियों का दबदबा रहा। इस बार चुनाव में दो भूमिहार बाहुबली—अनंत सिंह और दूसरा—आमने-सामने हैं, जबकि जनसुराज का 32 वर्षीय उम्मीदवार पीयूष प्रियदर्शी (धानुक जाति से) अतिपिछड़ों का विकल्प बनकर उभरा है। मोकामा में एक लाख अतिपिछड़े वोटर हैं, जिनमें 60 हजार धानुक। क्या इस बार वोट गोली पर भारी पड़ेगा?
पुलिस का कहना है कि जांच तेज है, लेकिन विपक्ष का सवाल वही है—क्या बिहार फिर जंगलराज की ओर बढ़ रहा है? पहले चरण की वोटिंग नजदीक आते ही मोकामा की नजरें दिल्ली और पटना पर टिकी हैं।

