भारत की मध्य एशिया में पहली सैन्य छलांग
आयनी एयरबेस, जिसे गिस्सार मिलिट्री एयरोड्रोम (GMA) भी कहा जाता है, ताजिकिस्तान की राजधानी दुशांबे से महज 15 किलोमीटर दूर स्थित है। यह सोवियत काल का पुराना एयरबेस था, जो 1990 के दशक में ताजिकिस्तान के गृहयुद्ध के दौरान जर्जर हो चुका था। भारत ने 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान इसकी मरम्मत और आधुनिकीकरण का बीड़ा उठाया। रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस और तत्कालीन NSA अजीत डोभाल की सलाह पर यह कदम उठाया गया, जो 1999 के कारगिल युद्ध के बाद भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा रणनीति का हिस्सा था।
भारत ने रनवे को लंबा किया, हैंगर बनाए, ईंधन डिपो और एयर ट्रैफिक कंट्रोल सिस्टम स्थापित किए। 2010 में इसका औपचारिक उद्घाटन हुआ। यहां स्थायी लड़ाकू विमान तो नहीं थे, लेकिन भारतीय वायुसेना (IAF) के 150 से ज्यादा कर्मी तैनात थे। मिग-17 हेलीकॉप्टर ताजिकिस्तान को दान किए गए थे, जिन्हें IAF ही संचालित करता था। कभी-कभी सुखोई-30 एमकेआई जेट भी तैनात होते थे। यह एयरबेस नॉर्दर्न अलायंस (अफगानिस्तान में तालिबान विरोधी गठबंधन) को समर्थन देने के लिए बनाया गया था, जहां भारत ने लॉजिस्टिक्स, खुफिया जानकारी और मानवीय सहायता दी। 2021 में तालिबान के कब्जे के बाद भारत ने इसी बेस से अपने नागरिकों को निकाला था।
भौगोलिक रूप से, आयनी का महत्व अपार था। यह अफगानिस्तान से सटा हुआ है, पाकिस्तान से करीब 500 किलोमीटर दूर, और चीन की शिनजियांग सीमा के निकट। पाकिस्तान के प्रभाव को काउंटर करने और अफगानिस्तान में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए यह भारत का ‘आंख और कान’ था।
तो फिर क्यों खाली करना पड़ा? लीज एग्रीमेंट का अंत और छिपे दबाव
यह विदाई अचानक नहीं हुई। 2021 में ताजिकिस्तान ने भारत को सूचित किया कि 2002 का द्विपक्षीय समझौता, जो एयरबेस के विकास और संयुक्त संचालन के लिए था, नवीनीकृत नहीं होगा। 2022 में ही भारत ने अपने सभी कर्मियों और उपकरणों को हटाना शुरू कर दिया, और प्रक्रिया अक्टूबर 2025 में पूरी हुई। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायस्वाल ने कहा, “यह व्यवस्था कई साल चली, और 2022 में समाप्त हो गई। हमने सुविधा ताजिकिस्तान को सौंप दी।”
लेकिन असल वजह क्या है? विशेषज्ञों के मुताबिक, यह क्षेत्रीय भू-राजनीति का नतीजा है। रूस और चीन ने ताजिकिस्तान पर दबाव डाला, जो गैर-क्षेत्रीय सैन्य मौजूदगी (जैसे भारत) के खिलाफ हैं। रूस, जो मध्य एशिया को अपना पारंपरिक प्रभाव क्षेत्र मानता है, पहले ही ताजिकिस्तान में 201 सैन्य अड्डा संचालित करता है। चीन, जो ताजिकिस्तान के साथ 470 किलोमीटर सीमा साझा करता है, अपनी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के तहत यहां निवेश बढ़ा रहा है। रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत की मौजूदगी से बीजिंग असहज था, क्योंकि यह उसके पश्चिमी प्रांत शिनजियांग की निगरानी का साधन बन सकती थी।
इसके अलावा, अफगानिस्तान में नॉर्दर्न अलायंस के पतन और तालिबान के पूर्ण कब्जे के बाद एयरबेस की उपयोगिता कम हो गई। भारत ने सुखोई जेट तैनाती का प्रस्ताव दिया, लेकिन ताजिकिस्तान ने अस्वीकार कर दिया। अब रूसी सेनाएं इस बेस का नियंत्रण संभाल रही हैं।
क्या यह भारत के लिए झटका है? विपक्ष का तीखा प्रहार
कांग्रेस ने इसे “रणनीतिक कूटनीति के लिए एक और झटका” करार दिया। पार्टी के महासचिव जयराम रमेश ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा, “आयनी में भारत ने शुरुआती 2000 के दशक में बेस बनाया और बुनियादी ढांचा बढ़ाया। इसकी असाधारण स्थिति को देखते हुए विस्तार की बड़ी योजनाएं थीं, लेकिन चार साल पहले साफ संकेत मिल गया था।” उन्होंने दुशांबे के संग्रहालय में 1500 साल पुरानी बुद्ध मूर्ति का जिक्र कर व्यंग्य किया, लेकिन मुद्दा गंभीर था: क्या भारत अपनी सैन्य पहुंच खो रहा है?
विशेषज्ञों का मानना है कि हां, यह झटका है। आयनी भारत की मध्य एशिया में प्रभाव को सीमित करता है, जहां रूस-चीन का दबदबा बढ़ रहा है। पाकिस्तान को अप्रत्यक्ष फायदा मिला, क्योंकि भारत का पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) पर नजर रखने का एक साधन कम हो गया। हालांकि, भारत की क्षेत्र में मौजूदगी बरकरार है—फारखोर बेस (जो 2008 में बंद हुआ था) के अलावा आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग जारी है।
लेकिन सवाल उठता है: क्या भारत अब नए ठिकानों पर फोकस करेगा, जैसे ईरान या अन्य मित्र देशों में? या यह विदेश नीति की कमजोरी का संकेत है? फिलहाल, आयनी की विदाई भारत को सोचने पर मजबूर कर रही है कि मध्य एशिया में उसकी रणनीति को नया आकार देना होगा।

