शुभ तिथि और मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि 1 नवंबर 2025 को सुबह 9:11 बजे से आरंभ होकर 2 नवंबर को सुबह 7:31 बजे तक रहेगी। इसलिए, देवउठनी एकादशी का व्रत 1 नवंबर को रखा जाएगा और पारण 2 नवंबर को होगा। तुलसी विवाह द्वादशी तिथि पर निर्धारित है, जो 2 नवंबर सुबह 7:31 बजे शुरू होकर 3 नवंबर सुबह 5:07 बजे समाप्त होगी। इस प्रकार, 2 नवंबर को ही तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त माना जाता है, जब भक्त शाम के समय पूजा-अनुष्ठान करते हैं। कुछ क्षेत्रों में 3 नवंबर तक विवाह की तिथियां विस्तारित हो सकती हैं, लेकिन मुख्य उत्सव 2 नवंबर को ही होता है।
पूजा विधि: घर पर कैसे करें तुलसी विवाह?
तुलसी विवाह की पूजा विधि सरल लेकिन अत्यंत भक्तिमय होती है। इसे मुख्य रूप से महिलाएं और कन्याएं संपन्न करती हैं। पूजा के लिए निम्नलिखित सामग्री की आवश्यकता होती है: तुलसी का पौधा (3 वर्ष से अधिक पुराना), शालिग्राम जी, गन्ने के डंडे, आमला-इमली की टहनियां, लाल चुनरी, साड़ी, आभूषण, हल्दी-कुमकुम, चंदन, फूल, अगरबत्ती, दीपक, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, चीनी का मिश्रण), फल (आंवला, बेर, शकरकंद, सिंघाड़ा), मिठाई, चावल, सुपारी, मूली, और घी का दीपक।
चरणबद्ध विधि:
1. मंडप निर्माण: घर के आंगन या बालकनी में तुलसी चौरा पर गन्ने के डंडों से चौकोर मंडप बनाएं। आमला और इमली की टहनियों से सजाएं। तुलसी पौधे को लाल रंग से रंगकर दुल्हन की तरह सजाएं – चुनरी ओढ़ाएं, आभूषण पहनाएं, हल्दी-कुमकुम लगाएं।
2. शालिग्राम स्थापना: शालिग्राम जी को तुलसी के बाएं ओर स्थापित करें। उन्हें वस्त्र, जनेऊ, चंदन और फूल अर्पित करें। ध्यान दें, शालिग्राम को चावल न चढ़ाएं; इसके बजाय तिल या चंदन का उपयोग करें।
3. पूजन और विवाह संस्कार: शाम के समय पूजा शुरू करें। तुलसी पर जल चढ़ाकर सिंदूर लगाएं। पंचामृत, फल और मिठाई का भोग लगाएं। कन्यादान, फेरे और मंगलसूत्र की रस्में करें। मंत्र जाप: “ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्री सिद्ध लक्ष्म्यै नमः” का 108 बार उच्चारण करें। तुलसी परिक्रमा करें और आरती उतारें।
4. समापन: पूजा के बाद प्रसाद वितरित करें। विवाहित महिलाएं सुहाग का सामान (बिंदी, काजल) तुलसी को अर्पित करें। अविवाहित कन्याएं विवाह की कामना से पूजा करें।
इस पूजा से घर में शांति और समृद्धि का वास होता है।
महत्व: क्यों है तुलसी विवाह इतना पावन?
तुलसी विवाह का महत्व असीम है। पौराणिक कथा के अनुसार, माता तुलसी (वृंदा) भगवान विष्णु की परम भक्त थीं। एक बार राक्षस जालंधर ने तुलसी की पतिव्रता शक्ति से अजेय होकर देवताओं पर आक्रमण किया। भगवान विष्णु ने छल से जालंधर का वध कराया, जिससे तुलसी शोकाकुल हो गईं और श्राप देकर पत्थर बन गईं। बाद में विष्णु ने उन्हें पौधे का रूप देकर विवाह किया। इस प्रकार, तुलसी विवाह विष्णु-लक्ष्मी के मिलन का प्रतीक है।
इस पर्व से चातुर्मास समाप्त होता है और भगवान विष्णु के जागरण के साथ शुभ कार्य जैसे विवाह, मुंडन प्रारंभ होते हैं। मान्यता है कि तुलसी विवाह करने से कन्यादान का पुण्य मिलता है, वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि आती है, पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष प्राप्ति होती है। अविवाहित लड़कियां इससे सुयोग्य वर पाती हैं, जबकि विवाहित महिलाओं को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। स्वास्थ्य, धन और पारिवारिक एकता के लिए यह व्रत अचूक माना जाता है।
देशभर के मंदिरों और घरों में इस वर्ष भी तुलसी विवाह का उत्सव भव्य रूप से मनाया जाएगा। भक्तों से अपील है कि श्रद्धा से इस पर्व को निभाएं और तुलसी को प्रतिदिन पूजें। जय श्री हरि! जय माता तुलसी!

