पटना साहिब के सिख समुदाय ने बिहार चुनावों पर खोली सरकार की पोल, कहा- जो बिहार का विकास करेगा साथ उसी को मिलेगा

Bihar Assembly Elections/Patna Sahib News: बिहार विधानसभा चुनावों की सरगर्मी चरम पर है और पटना साहिब जैसे ऐतिहासिक इलाके में सिख समुदाय के लोग भी राजनीतिक बहसों से अछूते नहीं हैं। गुरुद्वारा पटना साहिब, जो सिखों का पवित्र तीर्थस्थल है, के आसपास बसे सिख परिवार विकास, रोजगार और राज्य के भविष्य को लेकर चिंतित नजर आ रहे हैं। ग्राउंड रिपोर्ट में लोगों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और महागठबंधन के चेहरे तेजस्वी यादव पर खुलकर राय रखी। अधिकांश का मानना है कि बिहार को अब नई दिशा की जरूरत है, लेकिन ‘जंगल राज’ की आशंका भी उन्हें परेशान कर रही है।

मोदी पर भरोसा, लेकिन बिहार के लिए कम ध्यान
सिख समुदाय के बुजुर्गों में पीएम मोदी की छवि मजबूत है। एक रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी, हरप्रीत सिंह ने बताया, “मोदी जी राष्ट्रीय स्तर पर विकास के प्रतीक हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर, डिजिटल इंडिया जैसी योजनाओं से देश मजबूत हुआ है। लेकिन बिहार के लिए क्या? गुजरात को तो उन्होंने फैक्ट्रियां दीं, यहां तो 1 प्रतिशत भी नहीं मिला।” तेजस्वी यादव की ही तरह कई लोग मानते हैं कि केंद्र सरकार बिहार को उपेक्षित रख रही है। एक युवा व्यवसायी, अमृतपाल सिंह बोले, “मोदी जी का विजन अच्छा है, लेकिन बिहार में उद्योग क्यों नहीं? हम सिख समुदाय व्यापार से जुड़े हैं, हमें रोजगार चाहिए, न कि सिर्फ भाषण।”
हालांकि, एनडीए समर्थक सिख मतदाता मोदी की लोकप्रियता को ही जीत का आधार मानते हैं। एक स्थानीय गुरुद्वारा समिति सदस्य ने कहा, “मोदी जी की गारंटी पर भरोसा है। उन्होंने ट्रंप को भी जवाब दिया, बिहार के युवाओं के सपनों को भी पूरा करेंगे।”

नीतीश कुमार: सुशासन बाबू या थका हुआ चेहरा?
नीतीश कुमार पर राय बंटी हुई है। 20 साल के शासन के बावजूद, पटना साहिब के सिख परिवारों में सुशासन की पुरानी यादें ताजा हैं, लेकिन स्वास्थ्य और उम्र को लेकर सवाल उठ रहे हैं। एक महिला, जसप्रीत कौर ने कहा, “नीतीश जी ने बिहार को पटरी पर तो लगाया, लेकिन अब लगता है वे थक चुके हैं। रिमोट कंट्रोल से सरकार चल रही है, जैसा राहुल गांधी कहते हैं। सिख समुदाय को शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार चाहिए, जो रुका हुआ लगता है।”

दूसरी ओर, एनडीए के समर्थन वाले कुछ लोग नीतीश को ‘अंतिम वोट’ देने को तैयार हैं। “उनकी सेहत खराब है, लेकिन अनुभव की कमी नहीं। एनडीए 225 सीटें जीतेगा, नीतीश जी ही सीएम रहेंगे,” एक दुकानदार ने जोड़ा। प्राशांत किशोर के जन सुराज को युवा सिख आकर्षित कर रहे हैं, जो नीतीश विरोधी वोट काट सकता है। एक छात्र ने बताया, “पीके भैया रोजगार और शिक्षा पर सही बोलते हैं। नीतीश जी को बदलाव की जरूरत है।”

तेजस्वी यादव: युवाओं का चेहरा या अवास्तविक वादे?
तेजस्वी यादव को युवा सिख समुदाय में काफी समर्थन मिल रहा है। पटना साहिब के एक कोचिंग सेंटर चलाने वाले गुरदीप सिंह बोले, “तेजस्वी जी युवा हैं, बदलाव ला सकते हैं। 10 लाख नौकरियां, महिलाओं को 2500 रुपये, गैस सिलेंडर 500 में—ये वादे आकर्षक हैं। बिहार सबसे गरीब राज्य क्यों बना रहा? 20 साल नीतीश और 11 साल मोदी के बाद भी पलायन रुका नहीं।” महागठबंधन का ‘तेजस्वी प्रण पत्र’ घोषणा-पत्र सिख परिवारों में चर्चा का विषय है, खासकर वक्फ एक्ट को रद्द करने और सामाजिक न्याय के वादों पर।

लेकिन आलोचना भी है। एक बुजुर्ग सिख ने कहा, “तेजस्वी जी का अंदाज बदल गया है, अंग्रेजी में बोलना और चेहरे के हाव-भाव अच्छे नहीं लगते। आरजेडी का जंगल राज याद है, भ्रष्टाचार बढ़ेगा तो सिख व्यापारियों को नुकसान।” मुस्लिम बहुल इलाकों में तेजस्वी का समर्थन मजबूत है, लेकिन सिख समुदाय में ये डर है कि सांप्रदायिक सद्भाव प्रभावित न हो।

विकास और बिहार का भविष्य: सिख समुदाय की चिंताएं
पटना साहिब में सिखों की आबादी करीब 5-7% है, लेकिन उनका प्रभाव व्यापार और शिक्षा में गहरा है। लोग चिंता जताते हैं कि बेरोजगारी और पलायन से समुदाय प्रभावित हो रहा है। एक सिख व्यवसायी संघ के सदस्य ने कहा, “हमें उद्योग चाहिए, विश्वविद्यालय चाहिए। एनडीए विकास की बात करता है, लेकिन जमीन की कमी का बहाना बनाता है। महागठबंधन नौकरियों का वादा करता है, लेकिन क्या पूरा होगा?” प्राशांत किशोर को ‘वोट कटवा’ मानने वाले कई हैं, लेकिन युवा उनसे प्रभावित हैं—3-5% वोट शेयर 30-40 सीटें प्रभावित कर सकता है।

कुल मिलाकर, सिख समुदाय में एनडीए को हल्का बढ़त है, लेकिन तेजस्वी की युवा अपील और मोदी-नीतीश पर असंतोष से मुकाबला कड़ा है। एक मतदाता ने कहा, “हम सिख शांति और समृद्धि चाहते हैं। जो बिहार को नंबर वन बनाए, वही जीते।” चुनाव परिणाम पटना साहिब जैसे सीटों पर निर्भर करेंगे, जहां जातिगत समीकरण और विकास मुद्दे निर्णायक होंगे।

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