पीड़िता मुकुंदपुर की रहने वाली है और कॉलेज पहुंचने के रास्ते में यह हमला हुआ। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, आरोपी ने पहले पीड़िता को रोकने की कोशिश की, लेकिन जब वह भागने लगी तो एसिड फेंक दिया। अस्पताल में भर्ती पीड़िता की हालत स्थिर बताई जा रही है, लेकिन उसके चेहरे और हाथों पर निशान पड़ने की आशंका है। पीड़िता के भाई ने बताया कि स्टाकर ने लंबे समय से उनकी बहन को परेशान कर रहा था। कुछ दिनों पहले जब परिवार ने स्टाकर की पत्नी से इसकी शिकायत की, तो उसने उल्टा पीड़िता को ‘चरित्रहीन’ कहकर अपमानित किया।
इस मामले में एक नया मोड़ तब आया जब स्टाकर की पत्नी ने पीड़िता के पिता पर बलात्कार का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई। पुलिस दोनों पक्षों की जांच कर रही है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्टॉकिंग और बदले की भावना से प्रेरित हमला है। दिल्ली पुलिस ने कहा कि आरोपी को जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा और पीड़िता को मुफ्त चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी।
यह घटना भारत में महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार की एक कड़ी है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के ताजा आंकड़ों के अनुसार, 2023 में देशभर में 207 एसिड अटैक के मामले दर्ज हुए, जो 2022 के 202 मामलों से थोड़ा अधिक है। 2021 में यह संख्या 176 थी, जो दर्शाता है कि यह समस्या लगातार बनी हुई है। वेस्ट बंगाल इस मामले में सबसे ऊपर है, जहां 2023 में अकेले 57 मामले सामने आए। वहीं, दिल्ली ही एकमात्र केंद्र शासित प्रदेश है जहां एसिड अटैक के केस रिपोर्ट होते हैं। एसिड सर्वाइवर्स फाउंडेशन के अनुसार, भारत में एसिड अटैक के 70-80 प्रतिशत पीड़ित महिलाएं ही होती हैं, जिनमें से अधिकांश स्टॉकिंग, रिजेक्शन या पारिवारिक विवादों के कारण निशाना बनती हैं।
एनसीआरबी डेटा बताता है कि 2017 से 2021 तक एसिड अटैक के मामले 244 से घटकर 176 हो गए थे, लेकिन 2023 में फिर वृद्धि हुई। विशेषज्ञों का कहना है कि एसिड की आसान उपलब्धता और सख्त कानूनों के बावजूद कमजोर प्रवर्तन इस समस्या को बढ़ावा दे रहा है। 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने एसिड बिक्री पर सख्ती के निर्देश दिए थे, लेकिन जमीनी स्तर पर अमल कमजोर है।
महिलाओं के अधिकारों पर काम करने वाली संस्थाओं ने इस घटना की निंदा की है। चाइल्ड राइट्स एंड यू के निदेशक ने कहा, “ये आंकड़े डराते हैं। सरकार को न केवल त्वरित न्याय सुनिश्चित करना चाहिए, बल्कि जागरूकता अभियान और स्टॉकिंग रोकथाम पर फोकस करना होगा।” पीड़िता के परिवार ने न्याय की मांग की है और कहा है कि वे आरोपी को सजा दिलाने के लिए लड़ेंगे।
यह घटना एक बार फिर सवाल उठाती है कि क्या हमारी राजधानी, जो महिलाओं की सुरक्षा का दावा करती है, वाकई सुरक्षित है? डीयू जैसे प्रतिष्ठित संस्थान के आसपास भी ऐसी घटनाएं होना शर्मनाक है। समाज को अब जागना होगा, ताकि ऐसी ‘एक और बेटी’ की कहानी न दोहराई जाए।

