सीमावर्ती सीटों का महत्व: प्रवासी वोट और जातीय समीकरण
इन सीटों पर बड़ी संख्या में बिहारी मजदूर उत्तर प्रदेश में काम करते हैं, जो चुनाव से पहले लौटकर वोट डालते हैं। 2020 के चुनाव में कोविड-19 के बावजूद लाखों प्रवासी घर लौटे थे, जिससे एनडीए को फायदा हुआ। राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मोहन के अनुसार, “बगहा से सासाराम तक फैली ये सीटें भौगोलिक रूप से जुड़ी होने के कारण यूपी की राजनीतिक हवा का असर लेती हैं। यहां दुसाध (दलित) बनाम रविदास (महादलित) का फैक्टर प्रमुख है, जिसके चलते बसपा जैसी पार्टियां कभी-कभी चौंकाने वाले परिणाम देती हैं।”
इस बार चुनाव दो चरणों में होंगे—पहला चरण 6 नवंबर को 71 सीटों पर, जिसमें कई सीमावर्ती क्षेत्र शामिल हैं, और दूसरा चरण 11 नवंबर को। मतगणना 14 नवंबर को होगी। कुल 243 सीटों में से 38 एससी और 2 एसटी के लिए आरक्षित हैं, जिनमें सीमावर्ती इलाकों की हिस्सेदारी उल्लेखनीय है।
पिछली बार कौन पड़ा भारी? एनडीए की मजबूत पकड़
2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन (आरजेडी-जेडीयू) की लहर के बावजूद सीमावर्ती सीटों पर एनडीए (बीजेपी-जेडीयू) ने 11 सीटें जीतीं, जबकि महागठबंधन को सिर्फ 5 मिलीं। 2020 में तीन चरणों वाले चुनाव में भी यही ट्रेंड जारी रहा—एनडीए ने इन क्षेत्रों में बहुमत हासिल किया।
• सिवान: 2020 में बीजेपी के ओमप्रकाश यादव ने आरजेडी के उम्मीदवार को करारी शिकस्त दी। यह सीट लालू प्रसाद यादव के गढ़ के रूप में जानी जाती है, लेकिन यूपी से सटे होने के कारण बीजेपी का हिंदुत्व एजेंडा यहां काम आया।
• सारण: जेडीयू के राजीव प्रताप रूडी का प्रभाव रहा, जहां यूपी के बलिया जिले का असर दिखा।
• भोजपुर और बक्सर: एनडीए ने पिछली बार 70% से ज्यादा सीटें झटकीं। गोपालगंज में भी बीजेपी का दबदबा रहा।
• कैमूर: यहां महादलित वोटों ने बसपा को एक-दो सीटें दिलाईं, लेकिन कुल मिलाकर एनडीए आगे रहा।
इन परिणामों से साफ है कि सीमावर्ती क्षेत्रों में एनडीए की रणनीति—प्रवासी वोटरों को लुभाने वाली योजनाएं और यूपी के नेताओं का प्रचार—भारी पड़ी। आरजेडी ने मुस्लिम-यादव समीकरण पर दांव खेला, लेकिन सीमा पार हिंदू वोटों ने बैलेंस कर दिया।
वर्तमान परिदृश्य: एनडीए vs इंडिया, यूपी का रोल
2025 के चुनाव में एनडीए (बीजेपी-जेडीयू-हाम) और इंडिया गठबंधन (आरजेडी-कांग्रेस) के बीच कांटे की टक्कर है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने हाल ही में दावा किया कि “नीतीश कुमार की शिक्षा और रोजगार योजनाओं से बिहारी प्रवासी संतुष्ट हैं, यूपी फैक्टर एनडीए के हक में जाएगा।” वहीं, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने पलायन और बेरोजगारी को मुद्दा बनाया है।
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की संभावित सभाएं इन सीटों पर गेम-चेंजर साबित हो सकती हैं। इसके अलावा, जेडीयू ने यूपी में अपनी घुसपैठ बढ़ाई है—नीतीश कुमार की पार्टी 2027 के यूपी चुनाव में 50 सीटों पर दांव लगाने की तैयारी में है, जो सीधे बिहार की सीमावर्ती राजनीति को प्रभावित करेगा।
विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर प्रवासी वोटरों की संख्या बढ़ी, तो एनडीए को फायदा। लेकिन जातीय समीकरणों में बदलाव—जैसे पासवान और कुशवाहा वोटों का बंटवारा—इंडिया को मजबूत कर सकता है। कुल मिलाकर, ये 38 सीटें बिहार की सत्ता की चाबी हो सकती हैं।

