आरएमएल अस्पताल में दवाओं-उपकरणों की किल्लत, गरीब मरीजों को खुद खरीदनी पड़ रही हैं बुनियादी चीजें, प्रशासन ने दी सफाई

RML Hospital is facing a shortage of medicines and equipment.: दिल्ली के प्रतिष्ठित राम मनोहर लोहिया (आरएमएल) अस्पताल में दवाओं और चिकित्सा सामग्री की भारी कमी ने गरीब मरीजों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। केंद्र सरकार के इस प्रमुख अस्पताल में सर्जिकल ग्लव्स, गाउन, कैनुला, बैंडेज, जीवन रक्षक इंजेक्शन जैसे बुनियादी सामान उपलब्ध नहीं होने से मरीजों के परिजनों को बाहर से हजारों रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं। यह समस्या पिछले एक माह से बनी हुई है और विशेष रूप से ट्रॉमा ऑपरेशन थिएटर (ओटी) से लेकर सभी ओटी तक फैल चुकी है। अस्पताल में आने वाले अधिकांश मरीज रेहड़ी-पटरी वाले, रिक्शा चालक और दिहाड़ी मजदूर हैं, जो मुश्किल से अपना गुजारा चला पाते हैं।

आरएमएल अस्पताल दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एआईआईएमएस) के बाद सबसे अच्छा माना जाता है, जहां डॉक्टरों की विशेषज्ञता और इलाज की गुणवत्ता के लिए जाना जाता है। लेकिन हाल की रिपोर्ट्स के अनुसार, यहां सर्जिकल ग्लव्स, डिस्पोजेबल गाउन, आईवी फ्लूइड्स, ऑक्सीजन मास्क, हेपारिन और सक्सिनाइलकोलाइन जैसे महत्वपूर्ण इंजेक्शन, बैंडेज, कॉटन रोल्स, सर्जिकल हैंड वॉश तथा हाइड्रोजन पेरोक्साइड और सोडियम हाइपोक्लोराइट जैसे डिसइन्फेक्टेंट्स की भारी कमी है। अगस्त 2025 में भी इसी तरह की समस्या सामने आई थी, जब पैंटोप्राजोल और लेबेटालोल इंजेक्शन, अल्प्राजोलम और नॉरफ्लॉक्सासिन गोलियां, ट्रिप्सिन-काइमोट्रिप्सिन, क्लोपिडोग्रेल 75 मिलीग्राम, स्टेराइल यूरिन कंटेनर, वैक्यूटेनर, यूपीटी किट्स और क्लोरहेक्सिडाइन हैंड वॉश जैसी चीजें उपलब्ध नहीं थीं।

इस कमी का सबसे ज्यादा असर गरीब मरीजों पर पड़ रहा है। टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक 13 वर्षीय छात्र के पिता, जो सड़क पर ठेला लगाते हैं, को अपने बेटे की फोरआर्म फ्रैक्चर सर्जरी के लिए ग्लव्स और अन्य सामग्री के लिए 4,300 रुपये खर्च करने पड़े। इसी तरह, बिहार के बलिया से आए 33 वर्षीय सिक्योरिटी गार्ड को फीमर सर्जरी के लिए ग्लव्स, गाउन और दवाओं पर 4,600 रुपये तथा नए इम्प्लांट पर अतिरिक्त 12,600 रुपये चुकाने पड़े। एक मरीज के परिजन ने निराशा जताते हुए कहा, “सरकारी अस्पताल में भी गरीबों को खुद ग्लव्स और बैंडेज खरीदने पड़ें, तो वे कहां जाएं?”
डॉक्टरों का कहना है कि यह कमी धीमी खरीद प्रक्रिया के कारण है। अस्पताल प्रशासन के एक अधिकारी ने बताया कि तत्काल जरूरत के लिए शॉर्ट-टर्म खरीद की जा रही है, जबकि बफर स्टॉक बनाने के लिए लॉन्ग-टर्म प्रोक्योरमेंट शुरू कर दिए गए हैं। अगस्त की कमी के पीछे पूर्व निदेशक के मई में जाने के बाद प्रशासनिक खालीपन को जिम्मेदार ठहराया गया था, जिससे आपूर्ति प्रक्रिया रुक गई। डॉक्टरों ने ओपीडी फार्मेसी में ऑटोमैटिक सप्लाई-एंड-डिमांड सिस्टम की कमी का भी जिक्र किया।

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (@MoHFW_INDIA) को इस मुद्दे पर टैग करते हुए सोशल मीडिया पर कई पोस्ट वायरल हो रही हैं। एक पत्रकार ने ट्वीट किया, “आरएमएल में गरीब लोग ही जाते हैं… जो मुश्किल से पेट और परिवार चला पाते हैं।” एक सोशल एक्टिविस्ट ने पहले ही यूनियन हेल्थ मिनिस्टर जेपी नड्डा को पत्र लिखकर चेतावनी दी थी कि ऐसी कमी से आपातकाल में मरीजों की जान को खतरा हो सकता है। अस्पताल प्रशासन का दावा है कि कुछ सामग्री जैसे आईसो सॉर्बिट्रेट पहले ही बहाल हो चुकी है और बाकी जल्द उपलब्ध होंगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारी अस्पतालों में आपूर्ति चेन को मजबूत करने की जरूरत है ताकि ‘फ्री ट्रीटमेंट’ का वादा खोखला न पड़े। इस बीच, मरीजों को सलाह दी जा रही है कि वे नजदीकी निजी फार्मेसी से सामग्री खरीदें, लेकिन यह गरीबों के लिए बोझ बन रहा है। मंत्रालय से अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन मामला गंभीर होने से उम्मीद है कि शीघ्र हस्तक्षेप होगा।

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