अदालतों में “जुबान केसरी” की भरमार, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने याचिकाओं पर थूक के लाल दागों पर लगाई फटकार

The Allahabad High Court reprimanded the court for the red spittle stains on petitions: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अदालती याचिकाओं और आवेदनों पर थूक के लाल रंग के दागों को लेकर गंभीर रुख अपनाया है। कोर्ट ने इसे “घिनौना और निंदनीय” अभ्यास करार देते हुए चेतावनी दी है कि यदि ऐसी गंदी आदत न रोकी गई, तो इससे संपर्क में आने वाले लोगों में संक्रमण फैल सकता है। जस्टिस श्री प्रकाश सिंह ने 22 सितंबर को एक धारा 482 सीआरपीसी के तहत दायर आवेदन की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की, जब सुबह से ही 10 से अधिक याचिकाओं पर थूक के दाग नजर आए।

कोर्ट ने नोट किया कि रजिस्ट्री अधिकारी, क्लर्क, शपथ आयुक्त या सरकारी वकीलों के कार्यालय में ही यह अभ्यास हो रहा है, जहां पान या गुटखा चबाने वालों द्वारा पन्ने पलटने के लिए थूक का इस्तेमाल किया जाता है। जस्टिस सिंह ने कहा, “सुबह से ही 10 से अधिक याचिकाओं/आवेदनों में पेपर बुक के पन्ने पलटने के लिए लाल रंग का थूक इस्तेमाल किया गया है। यह अत्यधिक अस्वच्छ स्थिति है, जो न केवल घिनौनी और निंदनीय है, बल्कि बुनियादी नागरिक बोध की कमी को भी दिखा रही है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि यदि ऐसी गंदी प्रथा को रोका न गया, तो इससे जजों, वकीलों और क्लर्कों समेत कई लोगों में संक्रमण का खतरा पैदा हो सकता है, जो किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

इसके जवाब में कोर्ट ने सख्त निर्देश जारी किए हैं। सीनियर रजिस्ट्रार और रजिस्ट्री के प्रभारी अधिकारियों को आदेश दिया गया है कि याचिकाओं, आवेदनों या पेपर बुक को स्वीकार करने से पहले उनकी सावधानीपूर्वक जांच की जाए। किसी भी कागज पर थूक का कोई भी दाग मिलने पर उसे रिजेक्ट कर दिया जाए। साथ ही, गवर्नमेंट एडवोकेट (जीए) और चीफ स्टैंडिंग काउंसल (सीएससी) को अपने कार्यालयों में लिखित निर्देश जारी करने का आदेश दिया गया है ताकि यह प्रथा पूरी तरह बंद हो। कोर्ट ने स्पष्ट कहा कि रजिस्ट्री में तैनात सभी अधिकारी इसकी सख्ती से पालना सुनिश्चित करें।

यह मामला कृष्णा वाटी और अन्य याचिकाकर्ताओं से जुड़ा एक आपराधिक आवेदन था, लेकिन कोर्ट ने सुनवाई से पहले ही इस अस्वच्छता पर ध्यान केंद्रित कर लिया। विशेषज्ञों का मानना है कि पान-गुटखा चबाने की यह आदत न केवल स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है, बल्कि अदालती कार्यप्रणाली की गरिमा को भी ठेस पहुंचाती है। सोशल मीडिया पर इस आदेश को लेकर लोग खुलकर चर्चा कर रहे हैं। कुछ ने इसे सकारात्मक कदम बताया, तो कुछ ने व्यंग्य कसते हुए कहा कि अदालतों में “जुबान केसरी” की भरमार है। एक यूजर ने सुझाव दिया कि कोर्ट को स्वत: संज्ञान लेते हुए पान-गुटखा पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करना चाहिए।

यह घटना अदालतों में स्वच्छता और स्वास्थ्य मानकों को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर देती है, खासकर कोविड-19 महामारी के बाद। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस कदम से उम्मीद है कि अन्य अदालतें भी ऐसी प्रथाओं पर अंकुश लगाएंगी।

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