बिहार चुनाव से ठीक पहले लॉन्च हुई ‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’, महिलाओं में उत्साह तो है, लेकिन ‘जुमला’ का सवाल भी गूंज रहा

The ‘Chief Minister Women’s Employment Scheme’ was launched just before the Bihar elections: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की सरगर्मियों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए ‘मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना’ का शुभारंभ किया। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मौजूदगी में इस योजना के तहत राज्य की 75 लाख महिलाओं के बैंक खातों में सीधे 10-10 हजार रुपये की पहली किस्त हस्तांतरित की गई, जिसकी कुल राशि 7,500 करोड़ रुपये है। पीएम मोदी ने कहा, “बहन-बेटियां अब आत्मनिर्भर होंगी। यह योजना बिहार की महिलाओं को स्वरोजगार के नए अवसर देगी और उनके सपनों को पंख लगाएगी।” लेकिन सवाल यह उठ रहा है कि क्या यह वाकई महिलाओं का सशक्तिकरण करेगी या सिर्फ वोटों की जंग में एक ‘जुमला’ साबित होगी? बिहार की महिलाओं की प्रतिक्रियाएं मिली-जुली हैं—कुछ उत्साहित हैं, तो कुछ संशय में।

बिहार सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना का लक्ष्य राज्य के हर परिवार की एक महिला को स्वरोजगार के लिए वित्तीय सहायता देना है। पहली किस्त के रूप में 10,000 रुपये डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर) के जरिए दिए गए हैं। इसके बाद, रोजगार शुरू करने पर मूल्यांकन के आधार पर 2 लाख रुपये तक की अतिरिक्त सहायता मिलेगी। योजना जीविका (बिहार ग्रामीण आजीविका प्रोत्साहन सोसाइटी) से जुड़ी महिलाओं को प्राथमिकता देगी, जो खेती, पशुपालन, हस्तशिल्प, सिलाई-बुनाई या छोटे व्यवसायों में निवेश कर सकेंगी। अब तक 1.11 करोड़ से अधिक महिलाओं ने आवेदन किया है, जो योजना की लोकप्रियता का संकेत देता है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे “महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का ऐतिहासिक कदम” बताया, जबकि पीएम मोदी ने जोर दिया कि “डबल इंजन सरकार बिहार की मातृशक्ति के लिए समर्पित है।” योजना का बजट राज्य सरकार का है, लेकिन केंद्र की भागीदारी से इसे राष्ट्रीय स्तर पर प्रचारित किया जा रहा है।

पटना, मुजफ्फरपुर और भागलपुर जैसे जिलों से सोशल मीडिया और स्थानीय रिपोर्ट्स में महिलाओं की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। कई जीविका दीदियां योजना से उत्साहित हैं। शेओहर जिले की एक महिला ने सोशल मीडिया पर लिखा, “यह राशि हमारे छोटे व्यवसाय को नई जान देगी। अब हम परिवार की रीढ़ बन सकेंगी।” वहीं, भागलपुर की रीता देवी ने एक वीडियो में कहा, “मोदी जी-नीतीश जी की जोड़ी से बिहार बदल रहा है। 10 हजार रुपये से हम सिलाई का काम बढ़ाएंगी।” एनडीए समर्थक महिलाएं इसे “आत्मनिर्भर भारत” की दिशा में कदम बता रही हैं।
लेकिन कई महिलाओं में निराशा भी झलक रही है। दरभंगा की एक ग्रामीण महिला ने बताया, “पिछली योजनाओं में पैसे आए, लेकिन ट्रेनिंग और बाजार की कमी से काम रुका। यह भी चुनावी ड्रामा तो नहीं?” सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा गया, “नीतीश जी की योजना है, मोदी जी सिर्फ रिबन काट रहे हैं। वाहवाही लेने का तरीका बदल गया!” विपक्षी आरजेडी की राष्ट्रीय प्रवक्ता कंचना यादव ने पुरानी घटनाओं का हवाला देते हुए कहा, “मोदी जी के गुंडे गरीब महिलाओं को काम पर जाने से रोकते हैं, अब ये 10 हजार देकर वोट मांग रहे हैं। बिहार की बहनें श्राप दे रही हैं।”

‘जुमला’ या सच्ची पहल? विपक्ष का तीखा प्रहार
चुनावी माहौल में योजना को ‘रेवड़ी राजनीति’ का तमगा मिल चुका है। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने अपनी ‘माई-बहिन मान योजना’ (मासिक 2,500 रुपये) का जिक्र करते हुए इसे “चुनावी स्टंट” कहा। उन्होंने कहा, “एनडीए 10 हजार एकमुश्त दे रहा है, लेकिन हम स्थायी आय सुनिश्चित करेंगे।” भाजपा के खगड़िया जिले के एक पोस्ट में दावा किया गया कि “1.4 लाख महिलाएं पहले से लखपति दीदी बन चुकी हैं, यह योजना उन्हें और मजबूत करेगी।” लेकिन आलोचक सवाल उठा रहे हैं—क्या ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रेनिंग, बाजार लिंकेज और फॉलो-अप होगा? एक पत्रकार ने ट्वीट किया, “7500 करोड़ का ऐलान तो ठीक, लेकिन क्रियान्वयन पर नजर रखनी होगी। वरना जुमला साबित हो जाएगा।”

विश्लेषकों का मानना है कि बिहार में महिलाओं का वोटर आधार (लगभग 50%) निर्णायक है। 2020 के चुनाव में महिलाओं ने एनडीए को फायदा पहुंचाया था, और यह योजना उसी फॉर्मूले को दोहराने की कोशिश लगती है। लेकिन अगर लाभार्थी महिलाओं को वाकई स्वरोजगार मिला, तो यह नीतीश-मोदी की जोड़ी के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकती है।

कुल मिलाकर, योजना ने बिहार की महिलाओं में उम्मीद जगाई है, लेकिन ‘जुमला’ का डर भी कम नहीं। आने वाले महीनों में इसका असर चुनावी समीकरण पर दिखेगा। क्या यह आत्मनिर्भरता की नई कहानी लिखेगी या वोटों की होड़ में खो जाएगी? समय बताएगा।

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