CBI tightens its grip on Sonam Wangchuk: लद्दाख में राज्य के दर्जे और छठी अनुसूची के विस्तार की मांग को लेकर बुधवार को भड़की हिंसा ने पूरे क्षेत्र को हिला दिया है। चार लोगों की मौत और 80 से अधिक घायलों के बीच जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने केंद्र सरकार पर ‘बलि का बकरा’ बनाने का गंभीर आरोप लगाया है। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर उन्हें जनसुरक्षा कानून (पीएसए) के तहत जेल भेजा गया, तो यह सरकार के लिए उनकी आजादी से कहीं ज्यादा मुश्किलें खड़ी करेगा। दूसरी ओर, गृह मंत्रालय ने हिंसा के लिए वांगचुक के ‘भड़काऊ बयानों’ को जिम्मेदार ठहराते हुए सीबीआई को उनके संगठन की विदेशी फंडिंग की जांच सौंप दी है।
हिंसा की जड़ में युवाओं की बेचैनी
सोनम वांगचुक, जो हाल ही में 15 दिनों की भूख हड़ताल समाप्त कर चुके हैं, ने कहा कि लेह की हिंसा युवाओं की लंबे समय से दबी नाराजगी का नतीजा है। उन्होंने बताया कि 2019 में आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद केंद्र ने लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा और छूटी अनुसूची का विस्तार देने का वादा किया था, लेकिन छह साल बाद भी बेरोजगारी, अधूरे वादे और आंशिक आरक्षण (जैसे एसटी कोटा को 84% तक बढ़ाना) से लोग तंग आ चुके हैं। “सरकार असली मुद्दों से ध्यान भटका रही है। वे मुझे दोष देकर शांति की बजाय आग भड़का रही हैं,” वांगचुक ने कहा।
अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी यह मुद्दा छाया हुआ है। अल जजीरा ने इसे ‘जेन-जेड प्रोटेस्ट वेव’ करार देते हुए बताया कि वांगचुक ने पहले ही चेतावनी दी थी कि शांतिपूर्ण आंदोलन अगर अनदेखा किया गया, तो युवा हिंसा की राह पर चल पड़ेंगे। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, लेह में कर्फ्यू लगाने के बावजूद हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं, और सरकार ने वांगचुक को ‘राजनीतिक रूप से प्रेरित’ बताते हुए हिंसा भड़काने का आरोप लगाया है, जिसे उन्होंने सिरे से खारिज कर दिया।
सीबीआई जांच
हिंसा के एक दिन बाद ही गृह मंत्रालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को वांगचुक के हिमालयन इंस्टीट्यूट ऑफ अल्टरनेटिव्स, लेह (एचआईएएल) फाउंडेशन पर एफसीआरए (फॉरेन कंट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट) उल्लंघन की जांच का आदेश दिया। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, जांच में विदेशी फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग के लिंक सामने आए हैं, जो कथित तौर पर लद्दाख आंदोलन को फंड कर रही हैं। द फेडरल ने बताया कि यह जांच हिंसा के ठीक बाद शुरू की गई, जिससे राजनीतिक साजिश के आरोप लग रहे हैं। कुछ सोशल मीडिया पोस्ट्स में दावा किया गया है कि कांग्रेस काउंसलर फुंटसोग स्टैंजिन त्सेपाग ने हिंसा को भड़काया, और यह ‘गहरी साजिश’ का हिस्सा है।
एनडीटीवी ने वांगचुक की जर्नी को कवर करते हुए बताया कि वे ‘फुंसुख वांगडू’ (3 इडियट्स फिल्म के किरदार) के असली प्रेरणा स्रोत हैं, लेकिन अब वे आंदोलन के केंद्र में हैं। उन्होंने कहा, “मैं शांति का प्रतीक हूं, लेकिन सरकार की अनदेखी ने युवाओं को मजबूर किया।” हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, बीजेपी ने कांग्रेस पर भी हिंसा भड़काने का आरोप लगाया है।
सोशल मीडिया पर बंटी राय
एक्स (पूर्व ट्विटर) पर #LadakhViolence ट्रेंड कर रहा है। एक यूजर ने लिखा, “वांगचुक की शांतिपूर्ण हड़ताल लद्दाख की गरिमा का प्रतीक थी, लेकिन हिंसा ने उसे दागदार कर दिया।” वहीं, दूसरे ने कहा, “सीबीआई जांच से साफ है कि विदेशी फंडिंग और कांग्रेस की साजिश के पीछे वांगचुक हैं।” एक अन्य पोस्ट में सवाल उठाया गया, “सरकार पहले से बातचीत कर रही थी, फिर हिंसा क्यों? यह ‘मॉबोक्रेसी’ का खेल लगता है।”
क्या है लद्दाख की असली मांग?
लद्दाख को 2019 में केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद से स्थानीय लोग पूर्ण राज्य का दर्जा, विधानसभा बहाली, भूमि और नौकरियों में स्थानीय आरक्षण, और पर्यावरण संरक्षण के लिए छठी अनुसूची का विस्तार मांग रहे हैं। लेह एपेक्स बॉडी और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस के नेतृत्व में आंदोलन चल रहा है। हिंसा में गुस्साई भीड़ ने बीजेपी कार्यालय, हिल काउंसिल और वाहनों को निशाना बनाया, जिसके जवाब में पुलिस ने आंसू गैस का इस्तेमाल किया। उपराज्यपाल बृज कैलाश ने इसे ‘सुनियोजित साजिश’ बताया और दोषियों को बख्शने की बात से इनकार किया।
बातचीत या टकराव?
गृह मंत्रालय ने कहा कि 25-26 सितंबर और 6 अक्टूबर को उच्च स्तरीय बैठकें होंगी। इंडिया टुडे की लाइव रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञों ने जमीनी विश्लेषण की मांग की है ताकि हिंसा के असली कारण पता चलें। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह संवाद हिंसा की आग बुझा पाएगा, या वांगचुक जैसे कार्यकर्ताओं पर शिकंजा और तनाव बढ़ाएगा?
लद्दाख की यह घटना न सिर्फ क्षेत्रीय राजनीति को प्रभावित कर रही है, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र-राज्य संबंधों पर सवाल खड़े कर रही है।

