Malegaon Bomb Blast News: बॉम्बे हाई कोर्ट ने 2008 के मालेगांव बम विस्फोट मामले में पीड़ित परिवारों की अपील के बाद राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) और सात आरोपियों को नोटिस जारी किया है। यह मामला महाराष्ट्र के नासिक जिले के मालेगांव में 29 सितंबर 2008 को हुए उस विस्फोट से संबंधित है, जिसमें छह लोगों की मृत्यु हुई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे।
पृष्ठभूमि और घटनाक्रम
मालेगांव विस्फोट की शुरुआती जांच महाराष्ट्र आतंकवाद निरोधक दस्ते (ATS) ने की थी, जिसे बाद में 2011 में एनआईए को सौंप दिया गया। विशेष एनआईए कोर्ट ने पिछले महीने, 31 जुलाई 2025 को, इस मामले में सभी सात आरोपियों, जिनमें पूर्व बीजेपी सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित शामिल हैं, को बरी कर दिया था। कोर्ट ने कहा था कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को साबित करने में विफल रहा और कोई ठोस सबूत पेश नहीं कर सका।
हालांकि, पीड़ित परिवारों ने इस फैसले को चुनौती देते हुए 9 सितंबर 2025 को बॉम्बे हाई कोर्ट में अपील दायर की। परिवारों का दावा है कि जांच में गंभीर खामियां थीं और एनआईए ने मामले की गंभीरता को कम करने के लिए दबाव में काम किया। उनकी अपील में कहा गया है कि साजिश के मामलों में परिस्थितिजन्य साक्ष्य भी महत्वपूर्ण होते हैं, जिन्हें कोर्ट ने अनदेखा कर दिया।
कोर्ट की कार्रवाई
बॉम्बे हाई कोर्ट की खंडपीठ, जिसमें जस्टिस ए.एस. गडकरी और जस्टिस आर.आर. भोसले शामिल हैं, ने इस मामले की सुनवाई की और छह सप्ताह बाद अगली सुनवाई की तारीख तय की। कोर्ट ने एनआईए और सभी सात आरोपियों, जिनमें प्रज्ञा सिंह ठाकुर, प्रसाद पुरोहित, मेजर (सेवानिवृत्त) रमेश उपाध्याय, अजय रहिरकर, सुधाकर द्विवेदी, सुधाकर चतुर्वेदी और समीर कुलकर्णी शामिल हैं, को नोटिस जारी किए हैं।
विशेष कोर्ट के फैसले पर सवाल
विशेष एनआईए कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि विस्फोट तो हुआ, लेकिन यह साबित नहीं हो सका कि बम उस मोटरसाइकिल में रखा गया था, जिसे अभियोजन पक्ष ने संदिग्ध माना था। कोर्ट ने यह भी नोट किया कि कुछ चिकित्सा प्रमाणपत्रों में हेराफेरी पाई गई, जिसके कारण घायलों की संख्या 101 के बजाय 95 मानी गई। इसके अलावा, जांच अधिकारी द्वारा घटनास्थल का स्केच नहीं बनाया गया और न ही उंगलियों के निशान या अन्य साक्ष्य एकत्र किए गए, जिससे सबूत दूषित हो गए।
पीड़ित परिवारों का आरोप
पीड़ित परिवारों का कहना है कि एनआईए के विशेष लोक अभियोजक पर दबाव था, जिसके कारण मामले की गति धीमी हुई। उन्होंने यह भी दावा किया कि 2008 के बाद से अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में इसी तरह के विस्फोट न होना, इस साजिश की गंभीरता को दिखाया है। परिवारों ने मांग की है कि कोर्ट इस मामले की गहन जांच सुनिश्चित करे और दोषियों को सजा दिलाए।
आगे की राह
एनआईए ने अभी तक इस फैसले के खिलाफ अपनी अपील दायर नहीं की है, लेकिन पीड़ित परिवारों की अपील कोर्ट में विचाराधीन है। इस मामले में 323 अभियोजन गवाहों और 8 बचाव पक्ष के गवाहों की गवाही के बाद फैसला आया था, जो 17 साल की लंबी कानूनी प्रक्रिया का परिणाम है। अब यह देखना होगा कि हाई कोर्ट इस मामले में क्या दिशा तय करता है और पीड़ितों को न्याय मिलता है या नहीं।

