नेपाल में जन-आंदोलन, रैपर, पत्रकार और समाजसेवी की तिकड़ी, नई सरकार का चेहरा कौन?

Kathmandu News: नेपाल में पिछले कुछ दिनों से चल रहे जन-आंदोलन ने राजनीतिक परिदृश्य को पूरी तरह बदल दिया है। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद अब सवाल यह उठ रहा है कि नई सरकार का नेतृत्व कौन संभालेगा? इस आंदोलन के केंद्र में तीन प्रमुख चेहरे उभरे हैं- रैपर और काठमांडू के मेयर बालेन शाह, पत्रकार से राजनेता बने रवि लामिछाने और समाजसेवी सुदन गुरुंग। ये तीनों युवा पीढ़ी (जेन-जेड) के बीच बेहद लोकप्रिय हैं और आंदोलन को दिशा देने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

आंदोलन की शुरुआत सोमवार से हुई, जब सरकार द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स (पूर्व ट्विटर) और यूट्यूब समेत 26 ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने के फैसले के खिलाफ युवाओं ने सड़कों पर उतरना शुरू किया। हालांकि, प्रदर्शन की जड़ें भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, वंशवाद और राजनीतिक अस्थिरता में गहरी हैं। काठमांडू में प्रदर्शनकारियों ने संसद भवन में घुसने की कोशिश की, जिसके दौरान पुलिस के साथ हिंसक झड़पें हुईं। एक पत्रकार को गोली लगने की घटना भी सामने आई, जिससे आंदोलन और उग्र हो गया। अब तक 19 लोगों की मौत की खबरें हैं, और प्रदर्शन पूरे देश में फैल चुके हैं।

इस आंदोलन की अगुवाई में सुदन गुरुंग का नाम सबसे आगे है। ‘हामी नेपाल’ नामक एनजीओ के संस्थापक गुरुंग एक समाजसेवी हैं, जिन्होंने एक आवाज पर पूरे देश को एकजुट कर दिखाया। उन्होंने प्रदर्शनकारियों से अपील की कि वे शांतिपूर्ण तरीके से अपनी मांगें रखें, लेकिन सरकार की सख्ती ने स्थिति को बिगाड़ दिया। वहीं, रवि लामिछाने, जो पहले एक प्रमुख पत्रकार थे और अब राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी के नेता हैं, को आंदोलन का राजनीतिक चेहरा माना जा रहा है। उनकी लोकप्रियता टीवी शोज और सोशल मीडिया से बनी है, जहां वे भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं।

लेकिन युवाओं के बीच सबसे ज्यादा चर्चा बालेन शाह की हो रही है। रैपर से राजनीति में आए शाह काठमांडू के मेयर हैं और उनकी रैप गाने सामाजिक मुद्दों पर आधारित होते हैं। सोशल मीडिया पर उनके समर्थन में पोस्टों की बाढ़ आई हुई है। कई रिपोर्ट्स में उन्हें नए प्रधानमंत्री की रेस में सबसे आगे बताया जा रहा है। शाह ने खुद आंदोलन का समर्थन किया है और कहा है कि नेपाल को युवा नेतृत्व की जरूरत है।
ओली के इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल ने सोशल मीडिया प्रतिबंध हटाने की घोषणा की, लेकिन प्रदर्शनकारी नई सरकार की मांग पर अड़े हैं। सेना की भूमिका पर भी सस्पेंस बना हुआ है, क्योंकि कुछ रिपोर्ट्स में सेना के हस्तक्षेप की आशंका जताई जा रही है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर नई सरकार में इन तीनों में से किसी एक को प्रमुख भूमिका मिली, तो नेपाल में युवा क्रांति का नया अध्याय शुरू हो सकता है।

फिलहाल, काठमांडू में तनाव बरकरार है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस स्थिति पर नजर रखे हुए है। चीन की चुप्पी भी चर्चा का विषय बनी हुई है, क्योंकि ओली सरकार चीन-समर्थक मानी जाती थी। आने वाले दिनों में नेपाल की राजनीति किस करवट बैठेगी, यह देखना बाकी है।

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